ताक पर नियम, ताकती रहतीं किताबें
- पहले पुरानी किताबों से पढ़ाई कर लेते थे बचे अब हर साल बदल जाते हैं प्रकाशक
संवाद सहयोगी, हाथरस : एक समय था, जब पुरानी किताबों के जरिए ही पढ़ाई हो जाती थी। बाजारों में भी आधे मूल्य में पुरानी किताबें मिल जाती थीं। लेकिन, अब यदि किसी बच्चे ने पुरानी किताबें ले भी लीं तो स्कूलों में उनसे पढ़ने नहीं दिया जाता। कमीशन के खेल में हर साल किताबों के प्रकाशक बदल दिए जाते हैं। नियमानुसार विशेष परिस्थिति में ही किताबों को बदला जाना चाहिए, लेकिन स्कूल संचालक नियमों को भी ताक पर रख देते हैं। इस वजह से अभिभावकों की जेब पर भार पड़ता है और किताबों का प्रयोग सिर्फ एक ही साल हो पाता है। अधिकारी नहीं देते ध्यान
स्कूल संचालकों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए अभिभावकों के विरोध के बाद जिला शिक्षा समिति का गठन हुआ था। लेकिन, फिर भी स्कूल संचालकों पर लगाम नहीं लगी।
मजबूरी में खरीदनी पड़ती किताबें
स्कूलों में हर साल प्रकाशकों के बदल जाने के कारण अभिभावकों को मजबूरी में महंगी किताबें खरीदनी पड़ती है। किताबों के महंगी होने के कारण तमाम अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दिला पाते हैं। स्कूल ड्रेस के नाम पर भी अभिभावकों को छला जाता है। हफ्ते में कई-कई ड्रेस बदलकर बच्चों को जानी पड़ती हैं। पहले पुरानी किताबों का था चलन
कुछ सालों पहले तक एक ही किताब के सेट से एक परिवार के कई बच्चे पढ़ाई कर लेते थे। कक्षा पास करने के बाद जब परिवार का दूसरा बच्चा उस क्लास में आता था, तो पुरानी किताबों से ही काम चल जाता था। अभिभावक भी बच्चों की किताबों को ढंग से संभाल कर रखते थे। लेकिन ये सब अब खत्म हो गया है। अभिभावकों से बातचीत
पहले पुरानी किताबों से ही काम चल जाता था, जिससे जेब पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता था। अब हर साल नई किताबें खरीदनी पड़ती हैं।
राज कुमारी छोटे बच्चों की किताबें कम होनी चाहिए। उन्हें खेल-खेल में शिक्षा दी जानी चाहिए। स्कूलों नई किताबों के लिए अभिभावकों पर दबाव न डालें।
संगीता कौशिक बच्चों की किताबों में हर साल बदलाव नहीं होना चाहिए। महंगी शिक्षा के कारण ही गरीब परिवार के बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पाती।
पूनम शर्मा