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तेल के खेल का 'स्टेडियम' है हाथरस

कमल वाष्र्णेय, हाथरस : सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर मिलने वाला मिट्टी का तेल काले तेल कार

By JagranEdited By: Published: Wed, 23 May 2018 11:43 PM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 11:43 PM (IST)
तेल के खेल का 'स्टेडियम' है हाथरस
तेल के खेल का 'स्टेडियम' है हाथरस

कमल वाष्र्णेय, हाथरस : सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर मिलने वाला मिट्टी का तेल काले तेल कारोबार की रीढ़ है। गरीबों के हक को डकार कर अवैध कारोबारी करोड़पति बने हैं। इस खेल में प्रशासनिक तंत्र के शामिल होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। वरना कोटे का माल डिपो से राशन की दुकानों की जगह इन अवैध गोदामों तक कैसे पहुंच जाता है? हालांकि इस बार एसडीएम सदर ने जड़ तक पहुंचने का आश्वासन दिया है, लेकिन कार्रवाई की हकीकत समय ही बताएगा।

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मिट्टी के तेल का खेल : हाथरस में पेट्रोल व डीजल में मिलावट का खेल कोई नया नहीं है। मिट्टी के तेल के डिपो से शुरू होने वाली यह गड़बड़ी पेट्रोल पंप व पेटी डीलरों तक होती है। डिपो संचालक अपना आधे से अधिक कोटा बेच देते हैं। यह तेल तीन गुने दाम में नोएडा व बुलंदशहर स्थित फैक्ट्रियों के अलावा जिले की पेट्रोल पंपों व पेटी डीलरों को बेचा जाता है। इससे तारकोल की मदद से फैक्ट्रियों के लिए ईंधन भी तैयार होता है। कुछ तेल माफिया ऐसे हैं, जो कि डिपो से तेल खरीदकर अपने यहां स्टॉक करते हैं तथा फिर उसे मुनाफे के साथ बेचते हैं। वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने दूरदराज व ग्रामीण क्षेत्रों के हालातों पर ¨चता जताई थी। इससे सीधे पेटी डीलर मिलावट खोरी के शक में थे। बुधवार रात जिन गोदामों पर कार्रवाई की गई, वहां तारपीन का तेल भी मिला। मिट्टी के तेल से बनने वाला यह तारपीन का तेल रंग-रोगन बनाने के काम में आता है।

रंग का अंतर : दो दशक पहले तक मिट्टी का तेल रंगहीन आता था। पर जब कालाबाजारी का दौर शुरू हुआ तो सरकार ने सब्सिडी वाले मिट्टी के तेल का रंग नीला कर दिया। इससे तेल माफिया के आगे अड़चन तो आई, लेकिन उन्होंने उसका भी तरीका इजाद कर लिया। माफिया मिट्टी के तेल में एसिड मिलाने लगे। एसिड से मिट्टी का तेल रंग छोड़ देता था, जिससे वह आसानी से डीजल में मिल जाता था। एसिड से वाहन के इंजन पर अधिक प्रभाव पड़ता था। वर्तमान में तेल माफिया व मिलावटखोर एसिड नहीं, बल्कि विशेष तरह का पाउडर मिलाते हैं। सफेद पाउडर का यह कट्टा 600 से 700 रुपये का आता है। एक कट्टे में बीस किलो पाउडर होता है। तेल माफिया डिपो से तेल खरीदकर अपने गोपनीय स्थान पर जमीन के अंदर बनाए टैंकों में भरते हैं। फिर मात्रा के अनुसार पाउडर मिलाया जाता है। थोड़ी देर बाद पाउडर बैठ जाता है तथा मिट्टी का तेल अपना रंग छोड़ देता है। इसके बाद इसे पेटी डीलर व पंप संचालकों को बेचा जाता है।

मनमाफिक मुनाफा : मिलावट के इस खेल में मुनाफा इच्छानुसार है। डिपो संचालकों को प्रति लीटर मिट्टी के तेल पर .71 रुपये कमीशन मिलता है तथा राशन डीलर को .35 रुपये। फुटकर में प्रति लीटर तेल की कीमत 16.30 रुपये है। डिपो संचालक इसे जिले में 28 से 30 रुपये प्रति लीटर तथा बाहर 35 रुपये प्रति लीटर तक बेच देते हैं। पंप संचालकों को कमीशन से संतोष नहीं। इसलिए ये 28 रुपये प्रति लीटर ब्लैक में मिट्टी का तेल खरीदकर डीजल में मिलाते हैं। मिलावट का अनुपात अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। जितना मिलावट कर लो उतना ही मुनाफा। सख्ती के कारण पंपों पर मिलावट कम हुई है, लेकिन इस तरह के अवैध गोदामों पर कोई शिकंजा नहीं। मथुरा रिफायनरी के चलते मुरसान, चंदपा, हाथरस व हसायन काले तेल कारोबार के गढ़ हैं।


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