रूम फ्रेशनर नहीं, पौधों से महका रहे घर
लाइफ स्टाइल) प्रकृति प्रेम पंखापान आदि प्रजाति के पौधे बढ़ा रहे हैं घरों की रौनक बदलता जीवन फूलों की बगिया होने प्रदूषण मुक्त रहता है घरों का वातावरण आर्टीफिशियल पौधों-फूलों और पत्तियों की जगह ये पौधे उपयोगी हैं
संवाद सहयोगी, हाथरस : पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर लोगों के नजरिए व रहन-सहन में फर्क देखने को मिल रहा है। अपने दैनिक जीवन में लोग पौधों का महत्व समझ रहे हैं। इसलिए घरों में पौधे लगाने का क्रेज जागा है। केवल शो के लिए नहीं, बल्कि घर को महकाने व परिवार को स्वस्थ रखने के लिए भी औषधीय पौधों को तरजीह दे रहे हैं।
लोगों में क्रेज को देखते हुए अब जगह-जगह नर्सरी खुलती जा रही हैं। अलीगढ़ व आगरा रोड पर ऐसी कई प्राइवेट नर्सरी हैं। सड़क किनारे फूल-पत्तियों वाली यह नर्सरी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रही है। घरों को आर्टीफिशियली सजाने से वह खुशी नहीं मिलती जितनी की फूल-पत्तियों वाले जीवित पेड़ पौधों से मिलती है। इनसे घर का वातावरण महकता रहता है। बाजार में आर्टीफिशियल सामान की भले ही भरमार हो पर शहर में अलीगढ़ रोड पर थाना हाथरस गेट कोतवाली के समीप छोटी सी अस्थाई नर्सरी कुछ दिनों के लिए रखी हुई है। नर्सरी रूप में इस दुकान पर विभिन्न प्रजातियों के पौधे घरों को सजाने के लिए उपलब्ध हैं। इनमें कॉटन, मिल्का, ड्राप्स, पोलियस, मोरपंखी, टोपीकृष्णा, देशी गुलाब सहित, तुलसी आदि अनेक प्रकार के उपयोगी पौधे व फल-सब्जी के साथ दवाओं में काम आने वाले पौधे भी यहां मौजूद हैं। इनकी कीमत भी दस रुपये से लेकर तीन सौ रुपये तक रखी गई है। इतना ही नहीं ये पौधे अधिकतर गमले में ही अपना जीवन व्यतीत करने वाली प्रजाति के हैं। घरों को प्रदूषण मुक्त भी रखती है फूलों की बगिया
इन पौधों से घरों में प्राकृतिक वातावरण बना रहता है। घर को महकाने के साथ आसपास का वातावरण प्रदूषण मुक्त रहता है। तरह-तरह के फूल-पत्तियों वाले पौधे घरों के वातावरण को खुशनुमा बनाये रखते हैं। देखरेख है आसान
अलीगढ़ रोड स्थित नर्सरी के संचालक प्रेम सिंह ने बताया कि इन पौधों की देखरेख आसान है। पौधों को जिदा रखने के लिये इन्हे रोपण करने के बाद प्रतिदिन पानी देने की जरूरत नहीं है। ज्यादा पानी देने से पौधा समय पूर्व ही मर जाता है। पौधा रोपण के दो-तीन दिन बाद ही जरूरत पड़ने पर ही पानी दिया जाना चाहिए। इसके अलावा जैविक खाद के साथ कुछ दवाओं का भी प्रयोग पौधों को जीवित रखने के लिए निर्धारित मात्रा में ही करना चाहिए।