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विकृत मानसिकता व सिस्टम के मारों का सहारा बने मुकेश

शोषण के विरुद्ध अधिकार) दुष्कर्म पीड़िता के परिवार को दिलाया न्याय निश्शुल्क लड़ा मुकदमा सचे प्रहरी अन्य दुष्कर्म पीड़िताओं की मदद को हुए खड़े आरोपितों को दिलाई सजा वकालत में उतरने से पहले ही लोगों के लिए जूझकर न्याय दिलाते रहे

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 12:41 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 06:04 AM (IST)
विकृत मानसिकता व सिस्टम के मारों का सहारा बने मुकेश
विकृत मानसिकता व सिस्टम के मारों का सहारा बने मुकेश

कमल वाष्र्णेय, हाथरस :

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अधिवक्ता बनने से पहले ही पीड़ितों के लिए मुकेश चतुर्वेदी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था। वकील बने तो वर्ष 2012 में दुष्कर्म की शिकार नाबालिग के परिवार को न्याय दिलाकर ही दम लिया। पुलिस-प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोला। मानवाधिकार आयोग के जरिए पीड़ित परिवार को मुआवजा भी दिलाया। इस तरह के कई मामलों में मजलूमों की लड़ाई नि:स्वार्थ भाव से लड़ी।

परिचय : जलेसर रोड के रहने वाले मुकेश चतुर्वेदी पेशे से अधिवक्ता हैं। विधि छात्र रहते हुए ही वे समाज सेवा के क्षेत्र में उतर आए थे। उनकी पत्नी ममता चौधरी भी अधिवक्ता हैं तथा साथ में प्रेक्टिस करती हैं। अधिवक्ता बनने से पहले भी मुकेश ने कई पीड़ितों व उनके परिवार को न्याय दिलवाने में मदद की। साल 2012 वाले मामले से ही उन्हें पहचान मिली। इसके बाद कई पीड़ित परिवारों की मदद की, जो धन के अभाव में न्याय की लड़ाई नहीं लड़ पा रहे थे।

पीड़ित पिता का बने सहारा :

घटना 19 जून 2012 की है। हाथरस जंक्शन की नाबालिग लड़की लापता हुई। न मिलने पर पिता थाने पहुंचे, पर पुलिस ने अनसुना कर दिया। मुकदमा दर्ज करने के लिए 20 हजार रुपये की मांग की थी। परिचित के जरिए मुकेश चतुर्वेदी को इस बात की जानकारी हुई। लड़की के पिता के साथ अधिकारियों से मिले, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। लगातार प्रयास करने पर एक महीने बाद मुकदमा दर्ज हो सका था। पुलिस ने मामला तो दर्ज किया, पर लड़की की तलाश नहीं की। पिता धरने पर बैठे, अनशन किया। साथ में मुकेश भी थे, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। एक सितंबर 2012 को लड़की मरणासन्न हालत में मुजफ्फरनगर में मिली थी। वह चोटिल थी। चेहरे पर तेजाब डाला गया था। आंखें जला दी गई थीं। आरोपित दूसरे समुदाय के थे। इसलिए मामला काफी हाईलाइट हुआ। पांच दिन बाद लड़की की मौत हो गई थी। इसके बाद भी जंक्शन पुलिस ने लापरवाही बरती। हिदूवादी संगठन भी पीड़ित परिवार की मदद को उतरे थे। तब कहीं जाकर दोषी पकड़े गए।

पीड़िता पिता की आर्थिक स्थिति खराब थी। शव लाने तक के लिए रुपये नहीं थे। मुकेश चतुर्वेदी ने परिवार की मदद की। कोर्ट में पैरवी के लिए भी खड़े हुए। पांच जनवरी 2018 को आरोपित को आजीवन कारावास की सजा दिलाई। इसके अलावा हाथरस जंक्शन के तत्कालीन एसओ के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में शिकायत की। आयोग ने एसओ पर 1.50 लाख का जुर्माना लगाया था, जो कि पीड़िता के पिता को मिला था।

अन्य मामले : इसी तरह छह वर्ष की बच्ची के यौन शोषण में पीड़ित परिवार की मदद की। शहर में 11 दिसंबर 2014 को छह साल की बच्ची के साथ दुकानदार ने गलत हरकत की थी। इस मामले में वे परिवार के साथ खड़े हुए। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार का मुकदमा लड़ा। बच्ची के पिता पर समझौते का दबाव डाला गया। ऐसे समय में मुकेश परिवार का सहारा बने तथा आरोपित को सजा दिलाई। चार फरवरी 2015 को एक पिता ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ गलत काम किया था। इस मामले में भी बच्ची को न्याय दिलाया। बच्ची की मां भी कार्रवाई से पीछे हट गई थी। इस मामले में भी वे लड़की के साथ खड़े रहे तथा सजा दिलाकर ही माने।


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