जरा घुंघरू को 'घुट्टंी' पिला दो तो फिर झंकार देख लो
सुनिये वित्तमंत्री जी बिसावर के घुंघरू कुटीर उद्योग को सरकारी संरक्षण के साथ-साथ मूलभूत सुविधाओं की भी दरकार प्वाइंटर- 15 कारखाने चांदी-गिलेट पेराई के संचालित हैं बिसावर क्षेत्र में 700 परिवारों की रोजी-रोटी घुंघरू कारोबार से चलती है। 6 हजार लोग जुड़े हैं इस कारोबार से 70 गांवों में फैला है चांदी के घुंघरू का कुटीर कारोबार
संवाद सूत्र बिसावर (सादाबाद) : प्रदेशभर में पहचान बनाने वाले बिसावर के घुंघरू उद्योग को सरकारी संरक्षण की जरूरत है। इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में घुंघरू उद्योग की झंकार कम होती जा रही है। रही-सही कसर चांदी के दामों की उछाल ने पूरी कर दी है। चांदी के आसमान छूते दाम से यह उद्यम बहुत मुश्किल के दौर से गुजर रहा है। उद्यमियों को केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के इस बार पेश होने जा रहे बजट से बहुत उम्मीदें हैं। उनकी ख्वाहिश है इस बार इस कुटीर उद्योग को राहत की घुट्टंी जरूर मिलेगी।
घुंघरू कारोबार :
सादाबाद तहसील की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है बिसावर। यहां के लोग वर्ष 1920 में मुंबई से इस काम को सीखकर लौटे थे। उन्होंने घुंघरू बनाने की शुरुआत अपने घरों में की। धीरे-धीरे यह काम कई गांवों में फैल गया। पांच साल पहले तक यहां 2 दर्जन से अधिक चांदी व गिलेट की पेराई करने वाले कारखाने थे। वर्तमान में यहां करीब 15 कारखाने संचालित हैं। इनमें करीब 50 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार होता है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत :
पांच साल पहले तक यहां दो दर्जन से अधिक चांदी व गिलेट की पेराई करने वाले कारखाने थे। इंफ्रास्ट्रक्चर, सुरक्षा, बिजली आदि जरूरतों का हमेशा यहां अभाव रहा। इसके चलते करीब 10 कारखाने बंद हो गए। फिलहाल यहां 15 कारखाने संचालित हैं। जिनमें चांदी की पेराई कर पत्ती बनाई जाती है। फिर उसकी कटाई कर घुंघरू तैयार किए जाते हैं। ट्रांसपोर्टेशन के हिसाब से बिसावर की लोकेशन ठीक है। यहां से मथुरा और आगरा जनपद की सीमाएं थोड़ी ही दूरी पर हैं। सरकार अगर यहां मूलभूत सुविधाओं, आधुनिकीकरण पर ध्यान दे तो यह कारोबार फिर से आसमान छू सकता है।
उद्योग का दर्जा मिले :
सुरक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव में यह कारोबार बड़े शहरों में विस्थापित हो रहा है। घुंघरू बनाने वाले कारीगर अपने काम को बंद करके आगरा, मथुरा, लखनऊ, कानपुर, राजकोट (गुजरात) इत्यादि स्थानों से चांदी लाकर उन्हीं व्यापारियों के घुंघरू का कार्य कर रहे हैं, जो रजिस्टर्ड फर्म हैं, क्योंकि जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद माल पकड़े जाने के भय से कारीगरों ने अपना माल तैयार करना पूरी तरह से बंद कर दिया है। अब यह लोग यह कार्य मजदूरी पर ही कर रहे हैं। यहां के कारोबारियों की मांग है कि घुंघरू कारोबार को उद्योग का दर्जा दिलाकर इसे कुटीर उद्योग के रूप में स्थापित कराने के बाद प्रोत्साहन दिया जाए। इससे यहां घुंघरू तैयार कर अन्य जगहों पर सप्लाई किए जा सकें और कारोबार में वृद्धि हो।
इन गावों में होता है काम :
बिसावर, तसिगा, ताजपुर, पचावरी, भुर्का, जटोई, गढ़ उमराव, गहचौली, गुखरौली समेत 10 ग्राम पंचायतों के करीब 70 गांवों में घुंघरू का काम होता है। यहां के रहने वाले लोग आगरा, मथुरा, लखनऊ तक माल सप्लाई करते हैं। घुंघरू बनाने से पूर्व चांदी की पत्ती बनाई जाती है। इस कार्य से करीब 700 परिवार जुड़े हुए हैं लगभग 6000 महिला पुरुष इस धंधे में मजदूरी करते हैं। इनका कहना है
घुंघरू उद्योग को लघु उद्योग का दर्जा दिलाने के लिए वायदे बहुत हुए। सरकारें बनती रहीं लेकिन इस उद्यम पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इसे कुटीर उद्योग बनाकर संरक्षण मिलना चाहिए।
-पराग अग्रवाल, कारखाना संचालक इस उद्योग को अब सरकारी संरक्षण की दरकार है। यदि सरकार इसे इन्फ्रास्ट्रक्चर और बुनियादी सुविधाएं दे तो यह धंधा और बढ़ेगा, जिससे इस क्षेत्र को विशेष पहचान मिलेगी।
-मनीष अग्रवाल, कारखाना संचालक इसे कुटीर उद्योग में शामिल किया जाएगा तो लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। नई पीढ़ी के लोग भी इससे जुड़ेंगे और उनके लिए आय का बेहतर साधन साबित होगा।
-अमित अग्रवाल, कारखाना संचालक
बिसावर चौकी को थाने का दर्जा दिलाने के लिए लगातार मांग की जा रही है। थाना होगा तो सुरक्षा व्यवस्था भी और बढ़ेगी और लोगों में डर कम होगा।
-मनीष चौधरी, कारखाना संचालक