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अपनों का ही शिकार बन रहीं मासूम

बाल अपराध में अधिकतर करीबी व्यक्ति ही होता है शामिल, अनदेखी दुखदाई

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Feb 2019 01:03 AM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 01:03 AM (IST)
अपनों का ही शिकार बन रहीं मासूम
अपनों का ही शिकार बन रहीं मासूम

जागरण संवाददाता, हाथरस : कठोर कानून के बावजूद मासूमों से द¨रदगी की घटनाओं पर विराम नहीं लग रहा। साल 2018 में भी कई सनसनीखेज घटनाएं हुईं, जिन्होंने लोगों को झकझोर कर रख दिया। बच्चियों से दुष्कर्म के मामलों में मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया, फिर भी समाज में छिपे बैठे विकृत मानसिकता के लोग अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे। हैरत की बात यह है कि 90 फीसद मामलों में कोई करीबी ही होता है। अभिभावक की नजर बचते ही घटना हो जाती है।

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घिनौनी वारदातें : समाज में मासूम आज भी असुरक्षित हैं। हर साल कई बच्चे विकृत मानसिकता का शिकार होते हैं। 29 जनवरी 2018 को चंदपा में ढाई साल की बच्ची से दुष्कर्म हुआ था। आरोपित लहूलुहान हालत में बच्ची को खेत में छोड़कर भाग गया था। 18 अप्रैल 2018 को लापता हुई आठ वर्षीय बच्ची का शव पड़ोसी की छत पर बोरे में मिला था। पड़ोसी ने ही गलत काम के उद्देश्य से उसका अपहरण किया था तथा विफल होने पर हत्या कर दी थी। इसी तरह 16 अगस्त 2017 की रात सहपऊ में सात वर्षीय बच्चे का अपहरण हो गया था। दूसरे दिन बच्चे का शव नग्न अवस्था में मिला था। पड़ोसी ने कुकर्म में विफल होने पर गला रेतकर हत्या की थी। 16 जनवरी 2015 को सिकंदराराऊ में बाइक मिस्त्री की छह साल की बेटी का अपहरण कर दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। दूसरे दिन कूड़े के ढेर में बच्ची का शव मिला था। घटना में मोहल्ले का ही युवक निकला, जिसे परिवार अच्छी तरह जानता था।

नहीं रुक रहीं घटनाएं :

बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं में अधिकतर कोई रिश्तेदार या पड़ोसी होता है। कानून तो कठोर हुए पर पुलिस-प्रशासन लोगों को जागरूक नहीं करता। अभिभावकों को आगाह किया जाए तो घटनाएं रुक सकती हैं। 25 दिसंबर 2018 को बिसावर में तीन नाबालिग लड़कों ने दूसरे समुदाय की बच्ची से दुष्कर्म का प्रयास किया था। मामला काफी तूल पकड़ा। 17 जून 2018 को सहपऊ के मोहल्ला अहेरियान में धार्मिक कार्यक्रम से पड़ोसी सात वर्षीय बच्चे को उठाकर ले गया और कुकर्म किया था। 13 मई 2018 को मोहल्ला नवीपुर में गाय को रोटी डालने गई आठ साल की बच्ची को पड़ोसी चाचा बहला-फुसला कर ले गया तथा उसके साथ अश्लील हरकतें की। कठुआ कांड के बाद

लाया गया अध्यादेश

हाथरस : पिछले साल जम्मू-कश्मीर के कठुआ, गुजरात के सूरत और यूपी के उन्नाव में हुई मासूमों से दुष्कर्म की घटनाओं से पूरा देश हिल गया था। इसके बाद से कठोर सजा के प्रावधान की मांग की जा रही थी। तब अप्रैल 2018 में केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आई थी। इसके तहत पॉक्सो एक्ट, आइपीसी व सीआरपीसी में संशोधन किया गया। अधिवक्ता हरीश शर्मा के अनुसार संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है। इसके अलावा बाल यौन उत्पीड़न से संबंधित अन्य मामलो में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। सासनी वाले मामले में पुलिस ने आइपीसी की धारा 376 व पॉक्सा एक्ट की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज किया है। इसमें आजीवन कारावास से लेकर मौत तक की सजा का प्रावधान है। पॉक्सो के लिए विशेष न्यायालय

बच्चों के यौन शोषण के मामलों के प्रति न्यायपालिका भी गंभीर है। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट-2012 के लागू होने के बाद जिला न्यायालय में इसके लिए विशेष न्यायालय का गठन हुआ है। एडीजे कोर्ट-प्रथम में पॉक्सो एक्ट के मामलों की सुनवाई होती है।


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