आठ पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर शहीद हुए थे गजपाल
किशोर वाष्र्णेय हाथरस कारगिल युद्ध के दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद ऑपरेशन विजय
किशोर वाष्र्णेय, हाथरस : कारगिल युद्ध के दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद ऑपरेशन विजय की वर्षगांठ मनाई जा रही है। इस ऑपरेशन में वीरगति प्राप्त करने वालों की बहादुरी के किस्से सुनकर आज भी आंखें नम हो जाती हैं। क्षेत्र के गांव नगला चौधरी निवासी जांबाज गजपाल चौधरी की कहानी उन्हीं में से एक है। देश की आजादी की वर्षगांठ पर सेना की नौकरी ज्वाइन करने वाले गजपाल सिंह व उनके साथियों ने आठ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था। कारगिल में हुए ऑपरेशन विजय के दौरान क्षेत्र में शहीद होने वाली फेहरिस्त में सबसे पहला नाम उन्हीं का है।
ऐसे हुए बलिदान
गजपाल सिंह ने स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1996 के मौके पर सेना को ज्वाइन किया था। जम्मू कश्मीर में रेकी के लिए तीन टोलियों को भेजा गया था। एक टोली में गजपाल सिंह भी शामिल थे। इसके बाद 1999 में हुए कारगिल युद्ध में 30 मई को जाट रेजीमेंट के गजपाल सिंह बरेली से टोली के साथ सीमा पर पाकिस्तान का सामना करने के लिए भेजे गए सीमा पर पाकिस्तानियों से जंग लड़ते-लड़ते छह जवानों के साथ गजपाल सिंह भी वीरगति को प्राप् हुए। उनकी टोली ने कुल आठ पाकिस्तानियों को भी मार गिराया। 30 मई 1999 को पाकिस्तानियों के साथ हुए युद्ध में झूला ब्रिज से उनका पार्थिव शरीर बर्फ में गिर गया। डेढ़ माह बाद उनका पार्थिव शरीर जब बर्फ से निकला तब 17 जुलाई 1999 को जब गांव पहुंचा तो सबकी आंखें नम हो गई।
गर्व से हो गया सीना चौड़ा
गजपाल सिंह के पिता रामकिशन सिह (सेवानिवृत्त सूबेदार) का कहना है कि उन्होंने भी सेना में सर्विस की कई युद्ध में भाग भी लिया, लेकिन उनके पुत्र गजपाल सिंह जो देश के स्वतंत्रता दिवस को सेना में भर्ती हुए और महज तीन वर्ष में ही एक बड़े युद्ध का हिस्सा बनकर शहीद हुए अपने पुत्र के इस पराक्रम से उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। पिता रामकिशन ने बताया कि शहीद का पिता होने से ज्यादा गर्व की बात नहीं हो सकती थी। गजपाल सिंह ने शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही भारतीय सेना में जाने का इच्छा जाहिर की थी।