हाथरस के इतिहास पर मेले में मंथन
संवाद सहयोगी, हाथरस : मेला श्री दाऊजी महाराज के रिसीवर शिविर में 'हाथरस के इतिहास' कार्यक्रम के त
संवाद सहयोगी, हाथरस : मेला श्री दाऊजी महाराज के रिसीवर शिविर में 'हाथरस के इतिहास' कार्यक्रम के तहत विभिन्न विद्वानों ने हाथरस के स्वर्णिम अतीत पर विचार रखा। हाथरस के साहित्य को प्रकाशित कर भविष्य के लिए सुरक्षित करने पर जोर दिया गया।
संयोजक अनिल बौहरे ने बताया कि जिले के पहले विधायक नंद किशोर देव वशिष्ठ के सामने देश के प्रधानमंत्री भी सैल्यूट मारते थे। इसका कारण था, वह कांग्रेस सेवा दल के चीफ थे। प्रदेश में कानपुर के बाद हाथरस का उद्योग दूसरे नंबर पर था। यहां दाल-दलहन, कांच, कॉटन मिल, हींग, सोना-चांदी का कारोबार बड़े पैमाने पर था। यहां के विद्वान पंडित देशभर में मशहूर थे। पूरे देश के विद्वानों के काशी में हुए शास्त्रार्थ में यहां के विद्वानों ने सभी को परास्त किया था। ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा हाथरस से ही शुरू होती थी, इसीलिए इसे ब्रज की द्वार देहरी भी कहा जाता है। दाऊबाबा के मेले में एक ओर दाऊबाबा व दूसरी ओर काले खां की मजार मात्र वर्तमान है, इतिहास नहीं। पुरातत्व व पर्यटन विभाग की घोर उपेक्षा के चलते दाऊ बाबा के पूर्व में लगने वाले दंगल व दक्षिण में खानपान बाजार समाप्त हो गए। मजबूरी में मेला उत्तर में बढ़कर काले खां की मजार तक पहुंच गया है। अगर यही उपेक्षा रही तो मंदिर का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। काले खां का भी इतिहास स्पष्ट नहीं है। कहा जाता है कि राजा के जाट तोपची थे काले-माले खां। क्या सत्य है, यह बताने वाला कोई नहीं है। कार्यक्रम में ओज कवि राना मुनि प्रताप सिसौदिया, श्याम पदू, ममता, प्रदीप शर्मा, स्वागताध्यक्ष प्रमिला, अजय किशोर गौड़, इतिहास संकलन योजना के संयोजक डॉ.विध्नेश त्यागी, डा.विशाल बहादुर सक्सेना, विक्रम ¨सह, अध्यक्ष कुंवरपाल भंवर ने दीप प्रज्वलन किया। इस दौरान अतुल आंधीवाल, उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी, सत्यप्रकाश रंगीला, सुभाष ठेनुआं, निम्मी गुप्ता, बासुदेव उपाध्याय, श्यामबाबू ¨चतन, प्रदीप पंडित, चाचा हाथरसी, थान ¨सह कुशवाह, कामिनी ठाकुर, रेनू जैन, पूनम, देवी ¨सह निडर, राकेश रसिक, भजनलाल, एसके वशिष्ठ आदि ने अपने विचार रखे। शुभारंभ जिला पंचायत सदस्य रामेश्वर उपाध्याय व समापन सांसद पत्नी श्वेता चौधरी ने किया।