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अधूरी रह गई आस, नहीं बुझ सकी प्यास

घोटाले की कहानी-4 सहपऊ क्षेत्र में टीटीएसपी की अधिकांश टंकियां कुछ दिन के बाद ही हो गई थीं बंद किसकी कारस्तानी -गांव वाले बोले परियोजना की जांच हो तो बड़ा घोटाला आएगा सामने -जैसे-जैसे उम्मीदें टूटती गईं लोगों ने वैकल्पिक व्यवस्था से किया गुजारा

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Dec 2019 12:31 AM (IST)Updated: Sat, 07 Dec 2019 12:31 AM (IST)
अधूरी रह गई आस, नहीं बुझ सकी प्यास
अधूरी रह गई आस, नहीं बुझ सकी प्यास

जागरण संवाददाता, हाथरस : हाथरस जनपद को शुद्ध पेयजल दिलाने के लिए नौ बरस पहले शुरू की गई टैंक टाइप स्टैंड पोस्ट (टीटीएसपी) परियोजना पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, मगर इससे शुद्ध पेयजल कुछ दिन ही नसीब हुआ। बाद में तो पूरा सिस्टम ही ठप हो गया। बेहतर देखभाल के अभाव व्यवस्था फेल हो गई।

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अन्य ब्लॉकों की तरह सहपऊ ब्लॉक के सैकड़ों गांवों में भी परियोजना शुरू की गई थी। शुरुआत में ऐसा लगा कि पानी के लिए लोगों की भागदौड़ रुक जाएगी और खारे पानी की बीमारी से निजात मिल जाएगी, मगर कुछ दिन में ही सपना टूट गया। टीटीएसपी परियोजना के तहत जिन गांवों में भी काम हुआ, वहां न तो खारे पानी से निजात मिली और न ही लंबे समय तक परियोजना जिदा रही। तमाम टंकियों का काम आधा अधूरा छोड़ दिया गया। शासन से मिले धन का बंदरबांट हो गया। लोगों के बोल

टीटीएसपी परियोजना के तहत छोटी-छोटी टंकियों का निर्माण करवाया गया था। कुछ गांवों में इन टंकियों से पानी की आपूर्ति हुई थी लेकिन बाद में फेल हो गईं। अब तमाम टंकियां कबाड़ बन गई हैं।

-भोला सिंह पानी के लिए लगाई गईं इन टंकियों से कोई फायदा नहीं हुआ। लगभग सभी बंद हो चुकी हैं। अब तो गांव वालों ने पेयजल व्यवस्था सुधार की उम्मीद ही छोड़ दी है। कई बार शिकायतें भी की गईं, मगर सुने कौन।

-लक्ष्मण प्रसाद पेयजल व्यवस्था बहाल कराने के लिए कई बार कनेक्शन के लिए भागदौड़ भी की, मगर कोई सुनता कहां है। करोड़ों रुपये का बंटरबांट अधिकारियों ने कर लिया, इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए।

-सतीश शर्मा करीब दो साल तक पानी मिलता रहा। इसके बाद टंकियों से पानी की आपूर्ति पूरी तरह बंद हो गई। गड़बड़ी को ठीक कराने की किसी ने कोई व्यवस्था नहीं की। कई बार प्रधान से लेकर अधिकारियों तक को अवगत करा चुके हैं।

-भोला शंकर हमारे घर के पास टंकी पिछले तीन साल से खराब पड़ी है। अब तो गांव-गांव लोगों ने अपनी जेब से पैसा खर्च करके सबमर्सिबल पंप लगवा ली है। सरकारी सिस्टम के सहारे रहने का मतलब तो प्यासे रह जाना है।

-बैकुंठी देवी सिस्टम की सुनो

मेरे कार्यकाल से पहले गांव और आसपास के गांवों में तमाम टंकियां पेयजल व्यवस्था बेहतर करने के लिए लगाई गईं थीं, मगर कुछ समय बाद ही सभी टंकियां दम तोड़ गईं। अब तो ये टंकियां पूरी तरह बेकार होनी चाहिए। इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए।

-रोहित कुमार, ग्राम प्रधान, मढ़ा पिथु वर्जन --

यह कहना बिल्कुल गलत है कि प्रधानों के हवाले टंकियां नहीं की गईं। पहले वाले अफसरों ने ये काम किया। तमाम प्रधानों की वह फाइल आफिस में मौजूद हैं। पूरे मामले से अपने उच्च अधिकारियों को अवगत करा चुका हूं।

-आरके शर्मा, अधिशासी अभियंता जल निगम, हाथरस


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