श्रद्धा, विश्वास व पूजा, स्वार्थ पर नहीं आधारित
स िप्रधान है। किसी की सेवा करना भगवान की ही सेवा है। स्वामी जी ने ज्ञानयोग तथा भक्तियोग को विस्तार से समझाया।
हरदोई : गंगा के पावन तट राम नगरिया में चल रही श्रीमद् भागवत कथा सुनाते हुए आचार्य विमलेश दीक्षित ने बताया कि श्रद्धा, विश्वास व पूजा स्वार्थ पर आधारित नहीं होना चाहिए। कहा कि हमारी पूजा व प्रार्थना स्वार्थ पर टिकी होती है। थोड़े से चमत्कार देखने पर हमारी श्रद्धा जागने लगती है। कहा कि सच्चा विश्वास यह नहीं कि वृंदावन गए और दो-चार लाख का फायदा हो गया। यह अंधविश्वास है। प्रभु के चरणों में जाकर भी नुकसान हो जाए और प्रभु की भक्ति कम न हो यही सच्चा विश्वास है। हर परिस्थिति में जीव प्रभु को धन्यवाद दे यही सच्चा विश्वास है। विधायक मानवेन्द्र ¨सह रानू, शंकर बक्श ¨सह व भानू प्रताप ¨सह, शिवम ¨सह मौजूद रहे। वहीं दूसरी तरफ श्री विघ्नेश्ववरनाथ महादेव मंदिर आशानगर में हरिद्वार धाम से पधारे ब्रह्मलीन पूज्यस्वामी अक्षयानंद जी महाराज नें कहा कि हमें आपको सुदामा जी की तरह परम संतोषी होना चाहिए। शास्त्रों में उसी को दरिद्र बताया गया है जो असंतुष्ट है। व्यक्ति के जीवन में चाहे कितना भी धन वैभव क्यों न हो किन्तु यदि सब कुछ होने के बाद भी संतोष नहीं है तो सारा धन धूल के समान है। हम सबको प्राप्त को ही पर्याप्त समझते हुए आनंदित रहना चाहिए।
श्री स्वामी जी नें कर्मयोग समझाते हुए कहा कि कुछ भी यदि स्वार्थ से या फल पाने की आशा से किया जाए तो कर्म तो होगा लेकिन कर्म योग नहीं। उन्नति का साधन सेवा है इससे ही आत्मशुद्धि होती है। अन्त: करण की शुद्धि करने के तीन उपाय हैं, सेवा, त्याग और प्रेम जिसमें सेवा भाव प्रधान है। किसी की सेवा करना भगवान की ही सेवा है।