जहां राम, वही अयोध्या
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मल्लावां : शांति सत्संग मंच श्यामपुर के 46वें आध्यात्मिक प्रवचन व संत सम्मेलन के समापन पर जगद्गुरु शंकराचार्य आत्मानंद सरस्वती जी महाराज व देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए संत महात्माओं ने धर्म, संस्कार, आचरण व चरित्र पर प्रकाश डालते हुए श्रोताओं को भाव विभोर किया।
कानपुर की सरिता शुक्ला ने बताया कि जहां राम उपस्थित रहते हैं, वही अयोध्या है, जहां राम नहीं है, वह मृत के समान स्थान है। मनुष्य जब पृथ्वी पर आता है, तो उसकी पहली आवश्यकता है। रोटी, कपड़ा और मकान। मनुष्य जीवन में जो कार्य करता है उसका उसे फल मिलता है। जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी आत्मानंद सरस्वती ने बताया कि महात्मा जीव आत्मा को परमात्मा से मिलाता है। हनुमान जी अपने परम भक्तों को भगवान राम के दर्शन कराते हैं। तुलसीदास जी ने लिखा है कि राम से अधिक राम कर दासा। महात्मा या संत की परिभाषा भेष नहीं है। संत का अर्थ है सत्तव व उद्देश्य होता है। हमारी संस्कृति अच्छी होनी चाहिए भेष नहीं। रामचरितमानस में दो प्रकार के संत हैं पूर्णिमा हनुमान जी और भरत जी हनुमान जी के चरित्र की ऊंचाई सुमेरू पर्वत से भी ऊंची है और भरत जी की गहराई सागर से भी कह रही है । झांसी के परीक्षा पीठाधीश्वर स्वामी महावीरदास ने हनुमान के चरित्र पर प्रकाश डाला। उनका भी यही कहना था कि महात्मा ही परमात्मा को जीवात्मा से मिलाता है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के देवता हनुमान जी और वह सभी युगों में पूजे जाएंगे।
पं. अशोक शास्त्री ने भी हनुमान के चरित्र के ऊपर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त और उनका पूर्ण जीवन परमात्मा के लिए समर्पित था। तभी आज हर स्थानों पर हनुमान जी का पूजन अर्चन किया जाता है।