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हौसले के पखों से भरी सपनों की उड़ान

मंजिलें उन्हें मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है। टड़ियावां क्षेत्र के बेलहरा निवासी रेनू ने यह सच साबित करके दिखा दिया है। रेनू के परिवार में कोई पढ़ता-लिखता नहीं था, लेकिन वह पढ़ना चाहती थी। बचपन में गोबर बीन कर कंडे थापती तालाब के किनारे भसीड़े खोद कर उन्हें बाजार में बेचती और घर में भाई-बहनों की देखभाल करती थीं। पढ़ने की इच्छा मन में ही थी और उसे उड़ान ने पंख दिए। किसी तरह हाईस्कूल किया। पिता ने शादी कर ली। ससुराल वालों ने पढ़ाया लिखाया अब रेनू प्राइमरी स्कूल में टीचर है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 11:13 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 11:13 PM (IST)
हौसले के पखों से भरी सपनों की उड़ान
हौसले के पखों से भरी सपनों की उड़ान

हरदोई : मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। टड़ियावां विकास खंड के बलेहरा के मजरा करौंदी निवासी रेनू ने यह सच साबित कर दिखा दिया है। बचपन में गोबर बीनती थी, छोटे भाई बहनों की देखभाल करती। पढ़ाई से तो कोसों दूर थी, लेकिन अपनी लगन और मेहनत के दम पर मुकाम हासिल कर लिया। उड़ान से एक साल में ही कक्षा पांच तक की पढ़ाई पूरी की। पिता ने शादी कर दी तो ससुराल में पति ने हौसला बढ़ाया और आज रेनू परिषदीय विद्यालय में शिक्षिका है।

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टड़ियावां विकास खंड के बेलहरा गांव के करौंदी मजरा निवासी विनय प्रकाश मेहनत मजदूरी कर पत्नी व पांच बच्चों का पालन पोषण करते। बड़ी पुत्री रेनू पढ़ना चाहती थी पर न साधन था न संसाधन। गोबर बीनकर कंडा पाथती, तालाब के किनारे भसीड़े खोदकर बाजार में बेचती। घर में छोटे भाई बहनों की देखभाल करती। रेनू का पाला में ननिहाल है, वहां पर सर्वोदय आश्रम टड़ियावां की तरफ से उड़ान कार्यक्रम में बच्चे पढ़ते थे। रेनू भी ननिहाल गई थी और वहीं पर शिक्षिका महेश्वरी से उसकी मुलाकात हो गई। रेनू ने उन्हें अपनी बात बताई, महेश्वरी ने साथ दिया, रेनू ने मामा से जिद की और फिर सर्वोदय आश्रम में प्रवेश ले लिया। आश्रम की संचालिका उर्मिला श्रीवास्तव बताती हैं कि उड़ान कार्यक्रम में रेनू ने एक साल में ही कक्षा पांच तक की पढ़ाई की और आश्रम में ही कक्षा छह में प्रवेश लेकर हाईस्कूल किया। हाईस्कूल कर रेनू गांव लौटी तो पिता ने पढ़ा नहीं पाया और उसकी शादी कर दी। रेनू खाली समय में किताबें पढ़ती रहती। उसकी लगन को देखकर ससुर ने पढ़ाई की हामी भर दी और रेनू ने फिर से प्राइवेट हाईस्कूल किया। फिर गांधी इंटर कालेज बेनीगंज से ही इंटर किया। उसी दौरान रेनू के पति की नौकरी लग गई, रेनू शहर में आ गई और फिर सीएसएन कालेज से उसने स्नातक किया। मेरिट इतनी अच्छी आई कि उसका बीटीसी में प्रवेश हो गया। बीटीसी करते ही उसका परिषदीय विद्यालय में बतौर शिक्षिका चयन हो गया। अब रेनू प्राथमिक विद्यालय सरैंया में पढ़ाती है। रेनू ने खुद पढ़ने के लिए संघर्ष किया, लेकिन उसके बच्चे अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं। बड़ी पुत्री सेंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ती है तो छोटी बेटी केंद्रीय विद्यालय में। रेनू की सफलता पर उसके परिवार वाले भी खुश हैं।


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