हरदोई का महिला स्वाधार गृह सील कर अधीक्षिका को जेल भेजा, अब संचालक की तलाश
निराश्रित महिलाओं को स्वरोजगारपरक प्रशिक्षण देने के लिए बेनीगंज में संचालित आयशा स्वाधार गृह में फर्जीवाड़े में पुलिस ने अधीक्षिका आरती सिंह को गिरफ्तार कर लिया।
हरदोई(जेएनएन)। समाज की पीड़ित एवं निराश्रित महिलाओं को आश्रय एवं स्वरोजगारपरक प्रशिक्षण देने के लिए बेनीगंज में संचालित आयशा स्वाधार गृह में फर्जीवाड़े के खेल में पुलिस ने अधीक्षिका आरती सिंह पत्नी महेंद्र सिंह, निवासी आनंदनगर कानपुर नगर को बुधवार की सुबह गिरफ्तार कर लिया। वहीं, इस मामले में संचालक मोहम्मद रजी की पुलिस तलाश कर रही है। बता दें, सोमवार को जिलाधिकारी पुलकित खरे के निरीक्षण के बाद हकीकत सामने आई थी।
ये है पूरा मामला:
गौरतलब है कि स्वाधार गृह में महिलाओं को एनजीओ के माध्यम से आवासीय प्रशिक्षण देने का खेल कागजों पर चल रहा था। सोमवार को जिलाधिकारी पुलकित खरे के निरीक्षण में मौके पर सिर्फ दो महिलाएं थीं, जबकि रजिस्टर पर 32 का पंजीकरण किया गया था। खुलासा हुआ कि महिलाओं का 400 रुपये के भुगतान पर पंजीकरण किया जाता था, जिन्हें कार्रवाई से बचने के लिए निरीक्षण के समय बुला लिया जाता था। पुलिस ने धोखाधड़ी आदि में जिला प्रोबेशन अधिकारी की तहरीर पर एफआइआर दर्ज की। शुरुआती जाच में महिलाओं की संख्या के नाम पर वित्तीय अनियमितता की बात सामने आई है। महिलाओं का पुलिस ने मेडिकल भी कराया है और जांच भी हो रही है।
महिलाओं ने खोली पोल:
डीएम के निरक्षण में मौजूद मिलीं दो महिलाओं ने खुलासा किया। बताया गया कि पड़ताल में सलेमपुर निवासी सुशीला पत्नी राजेश, अल्लीपुर निवासी राजरानी, कस्बा के आजादटोला निवासी लक्ष्मी पत्नी बहादुर एवं प्रतापनगर चौराहा निवासी श्यामसुंदरी ने बताया कि वह परिवार के साथ ही अपने घरों में रहती हैं। वहा पर आने के कारण में बताया कि स्वाधार गृह में पंजीकरण एवं बुलाए जाने के एवज में 400-400 रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं। ऐसी ही अन्य महिलाएं भी हैं।
किचन एवं कक्षों में नहीं मिली सामग्री :
स्वाधार के निरीक्षण में किचन में कोई सामग्री नहीं मिली। वहीं दो कक्षों में ही बिस्तर आदि पड़े थे, जबकि अन्य काफी दिनों बंद होने की गवाही दे रहे थे और उनमें केवल तखत ही पड़े थे। इसकी पुष्टि इस बात से ही हुई कि पंजीकृत महिलाएं निरीक्षण के समय ही बुलाई जाती थीं, ऐसे में उनके लिए खाना आदि की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती थी।