खामोश मतदाता, बेताब नेता
हरदोई अरे भइया काहे परेशान हऊ। हमता आपई के हईं। आप से बचिके कहां जईं। मंगलवार दोपहर के गांव के बाहर चौपाल पर बैठे कुछ लोगों से एक दल के समर्थक मिलने पहुंचे तो उन्होंने ऐसा ही जवाब दिया।
हरदोई: अरे भइया, काहे परेशान हऊ। हमता आपई के हईं। आप से बचिके कहां जईं। मंगलवार दोपहर के गांव के बाहर चौपाल पर बैठे कुछ लोगों से एक दल के समर्थक मिलने पहुंचे तो उन्होंने ऐसा ही जवाब दिया। यह उनका नहीं, अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों ऐसे ही शब्द सुनाई पड़ रहे हैं। हालांकि यह किसी एक के लिए नहीं। मकान पर न किसी का झंडा लगाते और न ही पोस्टर। चुनाव प्रचार में जो भी प्रत्याशी गांव में जाता है। अधिकांश ग्रामीण उससे ऐसा ही कहते हैं, इसके अलावा वह कुछ बोलना नहीं चाहते हैं, लेकिन उनकी खामोशी नेताओं को बेताब कर रही है। सबसे खास बात जो मतदाता खामोश हैं वही चुनावी हवा को भी बदलते हैं।
चुनाव मैदान में अब वह दौर नहीं रह गया जब मकान पर एक दल का झंडा लग जाता था तो वह मकान झंडा लगे प्रत्याशी का समर्थक मान लिया जाता था, कहीं न कहीं घरों के लोग उनके साथ गांवों में जनसंपर्क करने भी जाते थे, पर अब ऐसा नहीं रह गया है। नेताओं को देखते देखते जनता भी बदल गई है। जब नेताओं का एक दल नहीं रह गया तो फिर भला मतदाता एक दल के कैसे रहें। अधिकांश घरों में किसी की भी कोई प्रचार सामग्री नहीं लगाई जाती थी। गांवों में जो भी प्रत्याशी या उसके समर्थक जाते हैं। ग्रामीण उसी के साथ होने का वादा कर देते। बहुत से लोग इस दावे को अपना वोटबैंक मान लेते हैं लेकिन जो होशियार नेता हैं वह समझते हैं कि उनके वादे की तरह मतदाताओं का भी वादा है पर मतदाता खुलना नहीं चाहते हैं। प्रत्याशी और समर्थकों को यही बेताब कर भी रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि वह जो देश की तरक्की विकास और किसानों का भला करेगा उसी को वोट देंगे। प्रत्याशियों और नेताओं को वह परख रहे हैं।