चौपाल: गेहूं का मिल जाए सही दाम, यही सबसे बड़ा सम्मान
16 एचआरडी 03 - आग से हर साल होता है करोड़ों का नुकसान - रोकी तो नहीं जा सकती पर लग तो सकता अंकुश आग तबाही मचाए थी मचाए है। दैवीय आपदा को रोक पाना संभव नहीं है लेकिन सिस्टम अगर ध्यान देता तो अग्निकांडों की संख्या कम होती आग लगती भी तो नुकसान रोका जा सकता था। पर अफसोस की बात कभी भी यह सिसायत का मुद्दा नहीं बन सका। आग में किसानों के अरमान चलते रहे और हुक्मरान आराम से सोते रहे। वर्षों से संसाधनों की मांग होती चली आई। सरकार ने अग्निशमन केंद्र तो खोले लेकिन संसाधनों का अभाव रहा। संख्याबल की कमी से फायर कर्मी आग से जूझते रहे। कहीं पहुंच पाए तो कहीं जब तक पहुंचे केवल राख मिली। हर वर्ष करोड़ों का नुकसान हो जाता है। चुनाव के अन्य मुद्दों में अगर इसे भी शामिल किया जाता तो कम से कम कुछ तो होता पर ऐसा नहीं हो सका। आग की तबाही जारी है। हर वर्ष होने वाली तबाही पर पेश है रिपोर्ट... र्ष हादसे और नुकसान बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2015 से 201
हरदोई: गांवों में चुनावी बयार खूब चल रही है लेकिन किसान खेतीबाड़ी में व्यस्त हैं। बैठकों के लिए उनके पास समय नहीं है। हां इतना है कि जब भी बैठते हैं चर्चाएं चुनावी ही होती हैं। राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों से लेकर लंबी बहस शुरू हो जाती है। हर व्यक्ति सरकारों के हिसाब किताब को अपने अपने तरीके से प्रस्तुत करता है। हां उनका कहना है कि लुभावने वादों से ज्यादा वह किसानों की उपज सही दाम मिल जाने की ज्यादा वकालत करते हैं। उनका कहना है कि 72 हजार तो सपना है। गांव की कहावत न नौ मन तेल होगा न राधे नाचेगी. कहते हुए बोले कि उन्हें गेहूं का बिना किसी झंझट के सरकारी मूल्य मिल जाए यही बहुत है।
चुनावी सरगर्मी का जायजा लेने निकल रही जागरण की टीम बावन क्षेत्र से होते हुए हुसैनपुर सहोरा गांव पहुंच गई। देखा तो कुछ लोग बैठे थे, उनके बीच चुनावी बहस छिड़ी थी। कुछ को तो खुद की, किसी को देश की सुरक्षा की ज्यादा चिता थी। छोटकौनू सिंह कहते हैं कि 72 हजार देने की बात पर बोले भइया इतना पहले से ध्यान दिया होता तो किसान न जाने कहां पहुंच चुके होते। उनकी बात को राजपाल ने काटा, बोले नेतागिरी की बात नहीं, लेकिन कांग्रेस ने किया तो है। सुभाष चंद्र बोले गेहूं के लिए पिछले साल सेंटरों पर घूमते रहे। महेंद्र कहते हैं कि भइया किसानों की फसल का सही दाम मिल जाए इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं है। बस किसान परेशान न हों। गन्ना किसान परेशान हैं। बिचौलिए मौज काटते हैं। महेंद्र चौहान बोले हम जो सेना को लेकर भी राजनीति होने लगे, देश के बारे में सोचते नहीं। बस कह दिया कि फला रेजीमेंट बनाने की बात कह रहे हैं। एक दो नहीं जितने भी लोग बैठे थे, सभी का एक ही मत था कि लुभावने वादों से अच्छा है कि ऐसी बात कहें जो पूरी कर सकें।