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उनई अपने वोट की चिता, हमई अपनी फसल की

हरदोई फसल तैयार है। किसानों की हर साल वाली और नेताओं की पंचशाला। अंतर केवल इतना है कि किसानों को 12 महीने फसल की रखवाली करनी होती है और नेताओं को पांच साल बाद चंद दिन।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 11:05 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 11:05 PM (IST)
उनई अपने वोट की चिता, हमई अपनी फसल की
उनई अपने वोट की चिता, हमई अपनी फसल की

हरदोई: फसल तैयार है। किसानों की हर साल वाली और नेताओं की पंचशाला। अंतर केवल इतना है कि किसानों को 12 महीने फसल की रखवाली करनी होती है और नेताओं को पांच साल बाद चंद दिन। गर्मी के साथ चुनावी सरगर्मी बढ़ रही है। नेता और उनके समर्थक गांवों में वोट मांगने जा रहे हैं, लेकिन किसान खेत में हैं। शुक्रवार की सुबह पिहानी चुंगी से सदईबेहटा की तरफ बाइक बढ़ाई। सड़क के दोनों तरफ खेतों में सोने जैसी खड़ी गेंहू की फसल। खेतों में काम कर रहे लोग, धीरे धीरे आगे बढ़ते गए और मछरेहता के पास एक खेत में पहुंचे। छुन्नीलाल गेंहू काट रहे थे, पूछा जल्दी काट रहे। बोले का कहईं अगर पानी बरसि गओ तो सब खराब हुई जई। चुनाव और नेताओं के बारे में पूछा तो बोले भइया अगर फसल न काटी ता पूरे साल का करीं, जइता अभई आए फिर पांच साल का चले जाईं।

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अन्नदाताओं के पास नेता चक्कर लगा रहे हैं। गेंहू की फसल काट रहे राजपाल बोले भइया का बताबई, अगर जई लोग एक बारि में इतनो कामु करि दें ता चुनाव में इतनो दऊरिवे न पड़ई पर चुनाव मा ही दिखात हई फिर गायब हुई जात। जिधर देखो। उधर किसान खेतों में ही नजर आते हैं। अधिकांश किसानों का कहना है कि नेताओं को तो अपने वोट की चिता है. उन लोगों को तो अपना परिवार भी देखना है। अगर फसल समय पर घर नहीं पहुंची तो वह लोग क्या करेंगे।


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