आवास योजना में लाभार्थियों की मजदूरों के नाम पर फर्जीवाड़ा Hardoi News
प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों को नहीं दी जाती 90 दिन की मजदूरी। कागजी लिखापढ़ी कराकर चहेतों के खातों में भेज दिया जाता लाभार्थी का श्रमांश।
हरदोई, जेएनएन। प्रधानमंत्री आवास योजना में लाभार्थी को श्रमांश में चूना लगाकर लाखों का फर्जीवाड़ा किया जाता है। लाभार्थी को आवास के लिए एक लाख 20 हजार रुपये, शौचालय के लिए 12 हजार रुपये मिलते हैं। मनरेगा में 90 दिन की मजदूरी लाभार्थी को अलग से दी जाती है। पूर्व में 175 रुपये के हिसाब सेे 15 हजार 750 रुपये के दिए जाते थे, अब श्रमांश 182 रुपये प्रतिदिन हो गया है। माना जाता है कि 90 दिन में आवास निर्माण हो जाएगा और लाभार्थी उसमें काम करता है, वैसे तो आवासों में शुरू से ही खेल होते हैं, लेकिन लाभार्थियों की मजदूरी के नाम पर तो खुलेआम खिलवाड़ किया जाता है। खबर में शामिल दो प्रकरण को महज समझाने के लिए हैं। ऐसा कोई गांव नहीं जहां पर ऐसे खेल न हो रहे हैं। मजदूरी के नाम पर लाखों रुपये का फर्जीवाड़ा कर लिया जाता है।
केस 1 - बेंहदर विकास खंड के बहलोलपुर में सोशल आडिट के दौरान मजदूरों के श्रमांश में फर्जीवाड़े की पोल खुली। 40 मजदूरों के 90 दिन के श्रमांश के दो लाख 49 हजार 900 रुपयों को दूसरों के खातों में भेजे जाने की पुष्टि हुई।
केस 2 - बिलग्राम विकास खंड के नूरपुर हथौड़ा में सुनीता देवी, सत्यपाल, नन्हीं, सालिकराम,शिवराज, विमला देवी आदि के आवास बने। इन लाभार्थियों के नाम पर 175 रुपये प्रति दिन का श्रमांश दूसरों के खातों में भेजा गया। जिसकी लिखापढ़ी में साक्ष्य हैं।
कैसे होता खेल
श्रमांश लाभार्थी के खाते में भेजा जाता है। यह उसी स्थिति में किसी दूसरे को दिया जा सकता है, जब लाभार्थी के जाब कार्ड पर 100 दिन पूरे हो चुके हों या फिर वह काम करने में सक्षम न हो। जानकारों के अनुसार इसी का फायदा उठाया जाता है। आवास निर्माण शुरू होने के समय ही लाभार्थी सेे कोई भी कारण दिखाकर खुद काम न करने की बात लिखवा ली जाती है। फिर प्रधान अपने चहेते का जाब कार्ड चढ़ा देते हैं। उसी के खाते में रुपये भेजे जाते। कुछ रुपये उसे देेकर बाकी खुद रख लिए जाते हैं।
हर वर्ष होता लाखों का खेल
आवाास योजना में देखा जाए तो वर्ष 2018-19 में जिले में कुल 9704 आवास आए थे। जिसमें से 9526 के पूर्ण हो चुके हैं। इसी तरह वर्ष 2019-20 में 4025 आवासों का लक्ष्य है। जिसमें से 3253 स्वीकृत हुए और 2445 पूर्ण हो चुके हैं। पूर्व में 175 रुपये प्रति दिन था जोकि अब 182 रुपयेे प्रतिदिन हो गया है। एक दो गांवों में नहीं अधिकांश में लाभार्थी की मजदूरी के नाम पर खेल चल रहा है। लाभार्थी और उन्हें मिलने वाले रुपयों को ही जोड़कर देखा जाए तो लाखों रुपयेे का खेल होता है। वह भी खुलेआम,होता हैै। धनराशि किसके खाते में भेजे गई, इसकी जांच हो जाए तो पूरे खेल की पोल ही खुल जाए।
लाभार्थी बोले
हर विकास खंड के लाभार्थी मजदूरी न मिलने की बात कहते हैं। हां कुछ को दवा लिया जाता है। उन्हें डर रहता है कि कहीं मजदूरी मांगे तो कोई और दूसरी जांच न शुरू हो जाए, लेकिन सैकड़ो लाभार्थी खुद बताते हैं। हरियावां विकास खंड केे कटिघरा निवासी खुशीराम को मजदूरी का एक पैसा नहीं मिला। आशा देवी कहती हैं कि उन्हें तो पता भी नहीं कि मजदूरी भी मिलती हैै। आवास मिल गया यही बहुत। कुशमा पत्नी मुकेश के नाम पर किसने काम किया, उन्हें पता तक नहीं है। अश्वनी कहते हैं कि उन्होंने तो आवास में पूरा काम किया। उनका आवास था, तो किया, लेकिन रुपये एक नहीं मिला।