परदेश से आए कामगारों का धैर्य बढ़ाएं, आगे की राह सुझाएं
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नहरदोई : कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए 21 दिन के लॉकडाउन के बीच विभिन्न राज्यों और शहरों से गांव वापस आए लोगों के साथ इस समय धीरज के साथ पेश आने की जरूरत है। एक ही झटके में इतना बड़ा फैसला लेकर वह गांव इसलिए लौटे हैं कि वहां उनका दुख-दर्द बेहतर तरीके से समझने वाले अपने लोग हैं। ऐसे में सभी की जिम्मेदारी उनके प्रति बढ़ जाती है कि उनके हौसले को बढ़ाने को लोग आगे आएं ताकि कोई भी अपने को अकेला न समझे। पीएम से लेकर स्वास्थ्य विभाग और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा लगातार यह अपील की जा रही है कि इस मुसीबत की घड़ी में किसी के भी मन में एक पल के लिए यह भाव न आने पाए कि वह अकेला है क्योंकि इस समय उसके साथ पूरा देश खड़ा है। कोरोना वायरस के चलते जो हालात पैदा हुए हैं वह स्थाई रूप से रहने वाली नहीं हैं, कुछ ही दिनों में यह मुश्किल समय समाप्त हो जाएगा और फिर से जिदगी चल पड़ेगी। ऐसे लोगों के सामने किसी भी तरह की दया को प्रतिबिबित करने के बजाय जीत के भाव से पेश आएं, क्योंकि ऐसे समय में आगे के रोजी-रोजगार की चिता उनको हर पल सता रही होगी। ऐसे में वह कोई गलत कदम उठाने को न मजबूर हों, इस बारे में भी सभी को सोचना चाहिए। उनको इस मनोदशा से उबारने के लिए ही सरकार उनकी काउंसिलिग के लिए मनोचिकित्सकों की भी मदद ले रही है। जनप्रतिनिधि मदद को आगे आ रहे हैं। शाहाबाद विधायक रजनी तिवारी ने ककराघटा पहुंचकर लोगों को फल बांटे, तो समाजसेवी धनंजय मिश्र ने विद्यालय में रुके ग्रामीणों को अपने स्तर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया। लोग क्या कहेंगे का भाव मन में न आए : मनोचिकित्सकों का कहना है कि गांव आने वालों के साथ सम्मान का व्यवहार करें और समझाने की कोशिश करें कि उन्होंने समाज और घर-परिवार के लिए बहुत कुछ किया है। इस समय उनके द्वारा लिया गया यह फैसला बहुत ही सही है। इस तरह के व्यवहार से उनके मन में यह भाव आने ही नहीं पाएगा कि लोग क्या कहेंगे। इसके साथ ही यदि किसी के कोरोना से संक्रमित होने की बात भी सामने आती है तो उसके साथ किसी भी तरह के दुर्व्यवहार करने से बचें। इसके लिए जरूरत सिर्फ सावधानी बरतने की है क्योंकि सतर्कता में ही कोरोना का सही इलाज निहित है।