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नलकूप चालक का बड़ा बेटा DM तो छोटा बना PCS, पसीने से सींचा बच्चों का भविष्य

299 रुपये पगार और खेती कर बच्चों को पढ़ाया 1983 में सिंचाई विभाग में मिली थी नौकरी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 24 Feb 2019 01:47 PM (IST)Updated: Sun, 24 Feb 2019 01:47 PM (IST)
नलकूप चालक का बड़ा बेटा DM तो छोटा बना PCS, पसीने से सींचा बच्चों का भविष्य
नलकूप चालक का बड़ा बेटा DM तो छोटा बना PCS, पसीने से सींचा बच्चों का भविष्य

हरदोई, [पंकज मिश्रा]। बेटा पढ़ाई में अच्छा था। उसने पिता से कहा, या तो डीएम बनूंगा या फिर गांव में घास काटूंगा। बेटे का ऐसा जज्बा देखकर पिता ने अपना सर्वस्व उसकी पढ़ाई-लिखाई में लगा दिया। दिन-रात एक कर दिया और अंतत: बेटा डीएम बन गया। बेटे से ज्यादा यह उस पिता की सफलता थी, जिसने अपनी सारी खुशियां उसका भविष्य संवारने में न्योछावर कर दीं। यह उनके संघषों का ही परिणाम था कि अब छोटे बेटे का भी पीसीएस (राज्य लोकसेवा) में चयन हो गया है।

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हरदोई, उप्र के सुरसा विकास खंड स्थित महेशपुर गांव निवासी बिंद्रा सिंह बहुत ही साधारण परिवार के हैं। खेती-बाड़ी कर परिवार चलाते थे। 1983 में उन्हें सिंचाई विभाग में अंशकालिक नलकूप चालक की नौकरी मिल गई। उस समय मात्र 299 रुपये ही मिलते थे। बच्चे बड़े होने लगे तो उनकी पढ़ाई की चिंता सताने लगी। नौकरी के साथ गांव और आसपास के लोगों का खेत बटाई पर लेकर खेती करना शुरू कर दिया। दिन-रात मेहनत की।

वह कहते हैं, बच्चों को कभी हताश नहीं होने दिया। इस बीच 1997 में वह स्थायी नलकूप चालक बन गए। बड़े बेटे कौशलेंद्र सिंह ने हरदोई के आरआर इंटर कॉलेज से 12वीं किया। आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद चला गया। छोटा बेटा भूपेंद्र सिंह गांव में पढ़ा, फिर बहराइच में नानी के घर पढ़ाई की। बिंद्रा सिंह व उनकी पत्नी रानी सिंह बताती हैं कि उन्होंने बच्चों की पढ़ाई की खातिर कभी भविष्य की चिंता नहीं की और जैसे भी बना बच्चों को पढ़ाया। बड़ा पुत्र कौशलेंद्र सिंह साल 2009 में आइएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अफसर बन गया। वर्तमान में मध्य प्रदेश के विदिशा में जिलाधिकारी है। बड़ी पुत्री प्रियंका सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में पीएचडी कर रही है। वहीं, छोटी प्रतिभा सिंह लविवि से एलएलबी करने के बाद पीसीएस-जे की तैयारी में जुटी है।

पिता ने सिखाया लक्ष्य हासिल करना

सामान्य परिवार का होने के बावजूद माता-पिता ने कभी संसाधनों की कमी नहीं होने दी। बिंद्रा सिंह का कहना है कि जीवन में कभी हार नहीं मानना। अपने लक्ष्य को कैसे हासिल करें, यह भी पिताजी ने सिखाया। यही वजह रही कि पहली बार यूपीएससी की परीक्षा देने पर आइआरएस और फिर आइएएस के लिए चयन हुआ। मेरा विषय हिंदी साहित्य था। माता-पिता की मेहनत और संस्कार से ही आज मैं इस मुकाम पर हूं।


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