दिल्ली से बेहद करीब ब्रजघाट में भगवान राम की वंशावली तलाश रहे हैं लोग Hapur News
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पूछे जाने वाले इस सवाल के बाद लोग राम के वंशजों की तलाश में जुट गए हैं। पिछले एक सप्ताह से लोग ब्रजघाट के पुरोहितों के पास बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं।
हापुड़/ब्रजघाट [राम मोहन शर्मा]। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई चल रही है। नौ अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राम लला पक्ष से उत्सुकता में एक सवाल पूछा था कि क्या राम का कोई वंशज है? सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पूछे जाने वाले इस सवाल के बाद लोग भगवान राम के वंशजों की तलाश में जुट गए हैं। पिछले एक सप्ताह से लोग ब्रजघाट के पुरोहितों के पास भगवान राम के वंशजों की तलाश में आ रहे हैं। वंशज न मिलने पर मायूस होकर लौट रहे हैं।
गंगा नगरी गढ़मुक्तेश्वर का इतिहास महाभारतकाल से जुड़ा है। यहां भगवान श्री कृष्ण द्वारा कार्तिक पूर्णिमा से पूर्व चतुदर्शी पर दीपदान किए गए थे। इसके अलावा मोझ दायिनी मां गंगा यहां से होकर गुजर रही है। गंगा नगरी किनारे अंतिम संस्कार होते हैं।
राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश के लोगों के यहां अंतिम संस्कार होने के अलावा वंशावली अपने-अपने पुरोहितों के पास दर्ज कराई जाती है। लोगों को उम्मीद है कि कहीं भगवान राम के वंशज पुरोहितों की पोथियों में दर्ज हैं।
वंशावलियों को दर्ज करने वाले पुरोहित राजकुमार लालू शर्मा ने बताया कि पिछले दिनों न्यायालय द्वारा भगवान राम की वंशजों के संबंध में जानकारी मांगे जाने पर अब हरियाणा, राजस्थान, पंजाब के लोग ब्रजघाट आकर भगवान राम की वंशाली मांग रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां मौजूद वंशावली करीब एक हजार पुरानी है, लेकिन भगवान उससे पहले हुआ करते थे। उन्होंने बताया कि लोगों द्वारा भगवान राम की वंशावली की जानकारी करने से गंगा नगरी में चर्चा का विषय बना हुआ है। बता दें कि देश की शीर्ष न्यायालय में अयोध्या मंदिर मामले पर रोजाना सुनवाई हो रही है।
सुनवाई के दौरान नौ अगस्त को भगवान राम के वंशजों के संबंध में जानकारी मांगी गई। जिसके बाद देश में चर्चा शुरू हो गई है कि भगवान राम के वंशजों को खोजा जाए। वंश कहां से शुरू हुआ और व्यक्ति किसका वंशज है। इसे जानने के तरीके भी पौराणिक हैं।
आखिर क्या है वंशावली की विशेषता
पुरोहित राजकुमार उर्फ लालू शर्मा ने बताया कि पहले वर्ण, जाति या समाज नहीं होते थे। पहले समुदाय कुल और कुटुंब होते थे। कुल और कुटुंब के लोगों के कुल देवता या देवी होती थीं। इससे कई पीढ़ियों के बाद भी लोगों को ये पता होता था कि उनका कुल या कुल देवता का स्थान कहां है। गोत्र को वंश भी कहते हैं, यह एक ऋषि के माध्यम से शुरू होता है। आगे चलकर यही गोत्र वंश परिचय के रूप में समाज में प्रतिष्ठित हो गया। एक समान गोत्र वाले एक ही ऋषि परंपरा के प्रतिनिधि होने के कारण भाई-बहन समझे जाते हैं।
न्यायालय में विचाराधीन मुकदमों में निभाते हैं अहम भूमिका
राजकुमार उर्फ लालू शर्मा बताते हैं कि पुरोहितों के पास मौजूद पोथियां न्यायालय में विचाराधीन मुकदमों में अहम भूमिका निभाती हैं। पोथियों में दर्ज रिकॉर्ड की प्रतियों की फॉरेंसिक लैब में जांच कराई जाती है। जिससे पता चलता है कि यह पत्रवली लगभग इतने वर्ष पुरानी है। पुरोहितों की न्यायालय में गवाही भी होती है।