Hapur News: गांव की थाती, परंपरा और संस्कृतिक धरोहर समेटे गंगा की रेती में बसा मिनी भारत
हापुड़ में गंगा किनारे कार्तिक मेले में भारत की संस्कृति का संगम देखने को मिल रहा है। दस लाख से ज़्यादा लोग यहाँ जुटे हैं, जिनकी पसंद अलग है, पर मनोभाव एक है - माँ गंगा के प्रति आस्था। मेले में गाँव की संस्कृति, खेल, मनोरंजन और आध्यात्मिक रंग देखने को मिल रहे हैं। लोग गंगा स्नान कर और लोक संगीत का आनंद ले रहे हैं।

गढ़मुक्तेश्वर में गंगा किनारे रेत पर फैला हुआ तंबुओं का शहर। - अशरफ चौधरी
ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। गंगा के किनारे जुटे 10 लाख से ज्यादा लोग अलग-अलग क्षेत्र और संस्कृति के हैं। उनकी मान्यताएं और पसंद अलग-अलग हैं। खाने-पीने और मनोरंजन के साधन भी अलग हैं, लेकिन मनोभाव एक जैसे हैं। मां गंगा को समर्पित आस्था और मस्ती भरी दिनचर्या के बीच कार्तिक मेले में लघु भारत के दर्शन हो रहे हैं। गांव-देहात की थाती, अपनी क्षेत्रीय परंपरा और सांस्कृति धरोहर को समेटे सभी चिंताहीन हैं।
गंगा स्नान, मनोरंजन और आरती-कथा में भगवान का ध्यान ही उनकी दिनचर्या है। महाभारतकाल से लग रहा कार्तिक गंगा मेला अपनी अनुठी मस्ती और सांस्कृति छाप के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। कथानक है कि महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बावजूद पांडव चिंताग्रस्त थे। अपनों का खून बहाने के बाद मिली जीत को भी वह सहर्ष स्वीकार नहीं कर रहे थे। तब योगीराज श्रीकृष्ण उनको लेकर गढ़मुक्तेश्वर में गंगा तट पर आए थे।
यहां पर पड़ाव डाला और गंगा स्नान के बाद उनको आध्यात्मिक उपदेश करते थे, जिससे वह युद्ध के अपराध बोध से मुक्ति पा सकें। उसके बाद से हर साल गंगा तट तक कार्तिक गंगा मेला लगता है। जिस स्थान पर पांडवों के घोड़ों का अस्तबल बनाया गया था, वहां पर घोड़ों का मेला आज भी लगता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा चिंतामुक्ति का जो भाव पांड़वों में उत्पन्न कराया गया था वह आज भी यथावत है।
यही कारण है कि गंगा तट पर करीब गंगा के किनारे पहुंचे ही चिंताएं दूर हो जाती हैं और मस्ती छा जाती है। मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से भी लोगों का संपर्क बाहरी दुनिया से कम हो जाता है। ऐसे में लोग गंगा मेले की मस्ती में भी आनंद लेते हैं। उत्तरी भारत का एतिहासिक गंगा मेला परंपरागत रूप में नजर आ रहा है।
जिला प्रशासन ने इसकी तैयारियां कई महीने पहले से आरंभ कर दी थीं। मेले को गांव की थाती समेटे हुए प्राचीन रूप दिया गया है। मेले के मध्य भाग व मेरठ सेक्टर में भ्रमण करने पर ठेठ गवई अंदाज दिखता है। खेल और मनोरंजन भी उसी तरह के हैं। मेला क्षेत्र में कबड्डी, कुश्ती और ऊंची-लंबी कूद की प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं।
वहीं दूसरी ओर रागनी, आल्हा और महिला गायन के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। मेले में चूल्हे पर बनीं पानी के हाथ की रोटी और घर के बिलोने वाली छाछ वाले होटल भी हैं। नई पीढ़ी को मेले में गांव के दर्शन हों रहे हैं और बुजुर्ग मेले के बदलते स्वरूप मके दीदार कर रहे हैं। गंगा खादर में लगने वाले मेले में ठेठ गवई संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है।
मेले में परंपरागत मनोरंजन के साथ ही गांव की थाती और देसी संस्कृति-आध्यात्म की झलक भी उपस्थित है। खेल और मनोरंजन भी पुराने देसी रूप में हैं। मनोरंजन के लिए रागनी, आल्हा और देहाती गीतों की महफिल सज रही हैं। लोक कलाकार इस प्रस्तुति से माहौल को और जीवंत कर रहे हैं। इससे नई पीढ़ी गांव की परंपरा से जुड़ रही है और बड़े-बुजुर्गों भी अपनी पुरानी यादें ताज़ा करने का अवसर छोड़ना नहीं चाहते। महिलाएं भी गीत और नृत्य से भरपूर आनंद उठा रही हैं।
हम चाहते हैं मेला अपनी ग्रामीण संस्कृति और परंपराओं का वाहक नजर आए। उसकी तैयारी हमने कई महीने पहले से आरंभ कर दी थी। हमारा प्रयास है कि मेलों में आ गई कुरीतियों-बुराइयों से बचा जाए। पशुओं पर अत्याचार न हों और मेला क्षेत्र से जुआ-शराब को दूर रखा जाए। मेले को उसका स्वरूप दिया जाना और जनमानस का उसको अपनाना जरूर है।
- अभिषेक पांडेय, जिलाधिकारी

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