शौर्य गाथाः दो गोलियां लगने के बाद भी दुश्मनों से लड़ते रहे ग्रेनेडियर धर्मवीर
आपरेशन रक्षक के दौरान तीन आतंकवादियों को ढेर करने के बाद भी ग्रेनेडियर धर्म सिंह तोमर आमने-सामने की फायरिंग में बुरी तरह घायल हो गए थे। बावजूद इसके उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा और आतंकवादियों से लोहा लेते रहे।
पिलखुवा(हापुड़) [संजीव वर्मा]। आपरेशन रक्षक के दौरान तीन आतंकवादियों को ढेर करने के बाद भी ग्रेनेडियर धर्म सिंह तोमर आमने-सामने की फायरिंग में बुरी तरह घायल हो गए थे। बावजूद इसके उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा और आतंकवादियों से लोहा लेते रहे। सभी आतंकवादियों को ढेर करने के बाद वह बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह वीरगति को प्राप्त हो गए। धर्म सिंह का यह शौर्य आज भी गांव वालों को जुबानी याद है।
धर्म सिंह की उस समय उम्र मात्र 25 वर्ष थी। उनका जन्म 1974 में हुआ था। पांच भाई-बहनों में वे सबसे बड़े थे। वे 1996 में सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के बाद वह ग्रेनेडियर्स में शामिल हुए और मिसाइल पायलट बन गए थे। जुलाई, 1999 में कारगिल युद्ध समाप्त होने पर भारतीय सेना की ओर से आपरेशन रक्षक चलाया गया था। 24 अक्तूबर, 1999 को रात में करीब नौ बजे जम्मू-कश्मीर के गंदरबल के पास एक सुरंग में छिपे बैठे आतंकियों ने भारतीय सेना पर हमला बोल दिया। दोनों ओर से घंटों गोलियां चली थीं। ग्रेनेडियर धर्म सिंह ने आतंकियों का डटकर मुकाबला किया और तीन आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया। इसी बीच उन्हें दो गोली लग गई।
हापुड़ जनपद के पिलखुवा स्थित सिखेड़ा गांव में रह रहीं उनकी मां कुंती देवी कहती हैं कि उन्होंने बेटे की शहादत पर आंसू नहीं बहाए बल्कि अपने दूसरे पुत्र सचिन को देश की सेवा के लिए तैयार किया। सचिन तोमर वर्ष 2016 में सेना में भर्ती हुए और वर्तमान में वे शाहजहांपुर में तैनात हैं।
करवाचौथ के दिन पति की लंबी आयु के लिए पत्नी व्रत रखकर पूजा करती है। विधि का विधान देखिए कि उसी दिन धर्म सिंह तोमर का पार्थिव शरीर गांव में पहुंचा। उनकी शादी 4 मई, 1998 को बुलंदशहर निवासी राजरानी से हुई थी। 1999 में दशहरा पर्व पर वह घर आए थे। लेकिन, जम्मू-कश्मीर में हालात बिगड़ने के कारण दो दिन बाद ही वह ड्यूटी पर चले गए। धर्म सिंह तोमर इंटर की शिक्षा हासिल करने के बाद सेना में भर्ती हो गए थे।
बचपन से ही उनमें देश के लिए कुछ करने का जज्बा था। 15 अगस्त और 26 जनवरी को गांव में तिरंगा लेकर वे घूमा करते थे। उसी जज्बे के साथ एक दिन वह सेना में भर्ती होकर भारत मां की सेवा करते हुए शहीद हो गए।