कटआउट 2: फेफड़ों पर एक साथ आठ ओर से अटैक करता है वायु प्रदूषण
जागरण संवाददाता हापुड़ वर्तमान में कोरोना महामारी से जंग लड़ी जा रही है वहीं दूसरी ओ
जागरण संवाददाता, हापुड़
वर्तमान में कोरोना महामारी से जंग लड़ी जा रही है वहीं दूसरी ओर लोगों की सेहत पर वायु प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है। प्रदूषण का सीधा असर हृदय, फेफड़े सहित शरीर के अन्य अंगों पर पड़ता है। कोरोना और प्रदूषण की दोहरी मार में लोगों को अपना खास ख्याल रखने की जरूरत है। खास करके उन लोगों को जिनको फेफड़ों की बीमारी है या सांस लेने में तकलीफ रहती है।
डिप्टी सीएमओ डॉ. दिनेश खत्री ने बताया कि कोरोना और फ्लू वायरस फेफड़ों के लिए खतरनाक होते हैं। जहरीली हवा भी सांस लेने की क्षमता को लगातार घटा रही है। मानक से अधिक पीएम 2.5 की मात्रा शरीर में पहुंचने से फेफड़े की कार्यक्षमता को घटा सकती है। वायुमंडल में नाइट्रोजन, सल्फर और मोनोआक्साइड की मात्रा बढ़ने से फेफड़ों पर आठ बीमारियों का एक साथ खतरा है। इन मरीजों पर कोरोना संक्रमण का खतरा भी ज्यादा है।
उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण से आठ बड़े खतरे पैदा हो सकते हैं। इसमें अस्थमा, सीओपीडी, ब्रांकाइटिस, इम्फेसिमा, फेफड़ों का कैंसर, सिस्टिक फाइब्रोसिस, निमोनिया, एलर्जी बीमारी शामिल हैं। अस्थमा प्रदूषण से सांस की नलियों में लगातार सूजन से बनता है। इससे सास फूलना, एलर्जी और कई प्रकार के संक्रमण होने लगते हैं। क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) मौतों की बड़ी वजह है। लंबे समय तक धूमपान, जेनेटिक गड़बड़ियों और वायु प्रदूषण से यह बीमारी होती है। ब्रांकाइटिस सीओपीडी का ही एक प्रकार है। इसे पुराने कफ की बीमारी भी कहते हैं। एक्यूट ब्राकाइटिस एक वायरस की वजह से होता है।
उन्होंने बताया कि इम्फेसिमा भी सीओपीडी का एक प्रकार है। यह लंबे समय तक धूमपान से होता है। इसमें सांस लेने में कठिनाई होती है। धूमपान फेफड़ों की नलियों व सतह पर जख्म या निशान बना देते हैं। लंग्स के डीएनए में म्यूटेशन से ट्यूमर बन जाता है, जो फेफड़ों का कैंसर कहलाता है। सिस्टिक फाइब्रोसिस में जीन में गड़बडियों से सख्त और मोटा म्यूकस बनने के साथ ही लंग्स में संक्रमण रहता है। निमोनिया फेफड़ों में बैक्टीरिया, वायरस व फंगस से होता है। कई मरीजों में तीन हफ्तों के अंदर ठीक हो जाता है। कफ, बुखार, ठंड लगना और सास फूलना इसके लक्षण हैं।
एलर्जी में शरीर में किसी बाहरी चीज के प्रवेश पर प्रतिरोधक क्षमता प्रतिक्रिया करती है। हिस्टामिन्स रिलीज होने से एलर्जी होती है। वायु प्रदूषण, धूल, पालतू जीव व कई प्रकार के खानपान से भी होती है। यह गले, नाक व फेफड़े को प्रभावित करती है।