खाते से धन निकालने तड़के चार बजे बैंक पहुंच गई वृद्धा
सुरेंद्र अग्रवाल कुलपहाड़ (महोबा) जिंदगी भी खू
सुरेंद्र अग्रवाल, कुलपहाड़ (महोबा) : जिंदगी भी खूब खेल खेलती है। यह खुशी देती है। यह गम भी देती है। यह जीने का संबल भी देती है। यह बहुत कुछ छीन भी लेती है। बेसहारा व लाचार फिर अपनी किस्मत पर आंसू बहाते नजर आते हैं। अपने गांव से करीब सात किमी लाठी टेक कर पैदल बैंक पहुंचने वाली 70 वर्षीय बेनीबाई भी ऐसी बदकिस्मती का ही शिकार हैं। ग्राहकों की लंबी लाइन व सामाजिक तिरस्कार से बचने के लिए उनका शनिवार भोर प्रहर चार बजे बैंक पहुंच जाना काफी कुछ सोचने पर विवश करता है। अपने खाते से पैसा निकालने की उन्हें जल्दी इसलिए थी कि कुरूप होने के कारण लोग उन्हें कहीं लाइन या बैंक से भगा न दें।
कस्बे से लगभग सात किलोमीटर दूर लाडपुर निवासी बेनीबाई का इस दुनिया में कोई अपना नही है। उम्र के चौथे पड़ाव में उनके चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई हैं। चेहरे की चमक भी जाती रही है। गांव के लोग उन्हें देखकर इधर-उधर हो जाते हैं। न उनसे कोई बात करता है न ही कोई उनके पास बैठना चाहता है। हसरत भरी निगाहों से वे जिसे भी देखती हैं,वो इनसे कन्नी काट लेता है। गरीबी व लाचारी में जीवन व्यतीत करने वाली बेनीबाई को कुछ लोगों ने बताया कि सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन का एक हजार रुपया उनके खाते में डाल दिया है। दाने-दाने को मोहताज इस वृद्धा ने पहले तो लोगों से सहायता की याचना की। न मिलने के बाद शनिवार को भोर प्रहर चार बजे कस्बे स्थित एसबीआइ की शाखा के गेट पर पहुंच गई। इसके पीछे उनका उद्देश्य था अपने खाते से पैसा निकालना व लोगों के अपमान से बचना।
यही नहीं, हालात की मारी बेनीबाई बेहद खुद्दार भी हैं। बैंक गेट की ओर सुबह घूम रहे एक सज्जन ने जानकारी के बाद जब उनकी आर्थिक सहायता करनी चाही तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। बस यही कहा कि
उनके खाते से पैसा निकलवा दिया जाए। खैर, प्रात: दस बजे बैंक खुलने के बाद उनके खाते से धन निकलवाकर उन्हें ससम्मान दे दिया गया। धन पाने के बाद बेहद खुश बेनीबाई सात किमी पैदल चलकर अपने गांव लौट गई। लीड बैंक मैनेजर अनूप यादव ने बताया कि ऐसे लोगों की सहायता के लिए आधिकारिक रूप से कुछ लोग कार्य कर रहे हैं। बशर्ते उन्हें इस आशय की सूचना मिल जाए।