अय्यारी को बनाया जंग-ए-आजादी का हथियार
अभय प्रताप ¨सह, हमीरपुर अय्यारी यानी वेश बदलने की कला, जिसे सबसे ज्यादा जासूस अपने काम में इस्
अभय प्रताप ¨सह, हमीरपुर
अय्यारी यानी वेश बदलने की कला, जिसे सबसे ज्यादा जासूस अपने काम में इस्तेमाल करते हैं। इस कला में माहिर थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामलाल वर्मा। आजादी के आंदोलन में इसके चलते उन्होंने कई बार अंग्रेजों को चकमा दिया। इसके अलावा उन्होंने ग्रामीणों को जुए और शराब से दूर रखने के लिए हमेशा प्रेरित किया। सुमेरपुर विकास खंड के पौथिया गांव में वर्ष 1912 में जन्में रामलाल वर्मा 22 वर्ष की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। जिले के अन्य साथियों के साथ उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
उस समय अखबार प्रकाशित होता था ¨हद केसरी। अखबार की प्रतियां राठ क्षेत्र में पहुंचाकर रामलाल वर्मा लोगों में इसके माध्यम से देश भक्ति का जज्बा पैदा करते थे। यह बात अंग्रेजों को खटकी तो उनकी खोजबीन शुरू होने लगी। बस यहीं से उन्होंने अय्यारी को अपना हथियार बनाया और वेश बदलकर अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने लगे। बिदोखर गांव को उन्होंने अपने सेनानी साथियों के संग ठिकाना बनाया। इसकी खबर होने पर अंग्रेजों ने 1942 में आग लगा दी। इसमें ग्रामीणों का भारी नुकसान हुआ। इसी घटना में एक बच्चे को बचाने के चक्कर में सेनानी रामलाल वर्मा झुलस गए और उनकी आंखों की रोशनी चली गई। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और हाथ में तिरंगे के साथ इंकलाब जिंदाबाद का नारा उनकी पहचान बन गया।
शराबियों के आगे लेट जाते थे
गांव में शराब की दुकान खुली तो लोगों का जमावड़ा भी लगने लगा। लोगों का नशा छुड़ाने के लिए वह उनके आगे लेट जाते थे और कहते थे कि उन्हें लांघकर शराब की दुकान पर जाना। किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वह उन्हें लांघकर शराब पीने जाए, बस इस अभियान ने गांव के लोगों का नशा छुड़ा दिया था। वर्ष 1980 में सेनानी रामलाल वर्मा के निधन के बाद उनकी याद में गांव में एक शहीद चबूतरा बना। उनकी याद में जनवरी में वालीलीबाल प्रतियोगिता का आयोजन होता है।