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फर्जी निवास प्रमाणपत्रों में एनआइसी की भूमिका जांच रही सीबीआइ

पत्रों में एनआइसी की भूमिका जांचने में जुटी

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 Mar 2020 11:01 PM (IST)Updated: Thu, 19 Mar 2020 11:01 PM (IST)
फर्जी निवास प्रमाणपत्रों में एनआइसी  की भूमिका जांच रही सीबीआइ
फर्जी निवास प्रमाणपत्रों में एनआइसी की भूमिका जांच रही सीबीआइ

जागरण संवाददाता, हमीरपुर : सेना भर्ती के लिए निवास प्रमाणपत्र बनाने में जमकर धांधली की गई। लेखपालों के आवेदकों के संबंधित गांव का न होने की रिपोर्ट के बावजूद प्रमाणपत्र बना दिए गए। खास बात यह है कि प्रमाणपत्र नए के बजाय पुराने फार्मेट में जारी किए गए। गुरुवार को लेखपालों, तत्कालीन तहसील कर्मियों, प्रधानों, दो वकीलों, एकल खिड़की से प्रमाणपत्र बनवाने वाले ठेकेदार व कर्मियों से पूछताछ में ये तथ्य सामने आने के बाद सीबीआइ टीम एनआइसी (नेशनल इंफार्मेशन सेंटर) की भूमिका की जांच कर साक्ष्य जुटा रही है।

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चार साल पहले कानपुर में हुई सेना भर्ती रैली में फर्जी निवास प्रमाणपत्रों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश व हरियाणा के 34 लोगों ने नौकरी पा ली थी। कुरारा पुलिस की सक्रियता से मामला खुलने के बाद अब सीबीआइ जांच तेज कर रही है। मामले में 40 नामजद व अन्य लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया था। सीबीआइ की तीन सदस्यीय टीम मौदहा बांध कैंप कार्यालय में रुक कर जांच कर रही है। टीम ने राजस्व निरीक्षक जयकरन सचान, कुरारा के तत्कालीन लेखपाल प्रमोद कुमार, मोहम्मद अली समेत कई लोगों से पूछताछ की।

यूं बनाए जाते थे प्रमाणपत्र

तहसील कर्मचारी ने बताया कि जनसेवा केंद्र या लोकवाणी केंद्रों से आवेदक का आधार व फोटो अपलोड कर आवेदन ऑनलाइन किया जाता था। एसडीएम पोर्टल पर पहुंचने पर आवेदन जांच के लिए भेजा जाता था। बनाए गए फर्जी प्रमाणपत्रों में लेखपाल की रिपोर्ट में ही आवेदकों को संबंधित गांव का निवासी न होना बताया गया। इसके बाद भी फर्जी निवास प्रमाणपत्र राज्य सरकार की वेबसाइट पर डाल दिए गए। यह काम पासवार्ड जानने वाला व्यक्ति ही कर सकता है। ऐसे में एनआइसी की भूमिका जांच के घेरे में है। एनआइसी के तत्कालीन लिपिक प्रकाश सौरभ से भी पूछताछ की गई।

देरी से रिपोर्ट का पूछा कारण

लेखपालों ने बताया कि सीबीआइ ने उनसे तहसील से जांच को मिले आवेदनों में रिपोर्ट लगाने के समय के बाबत पूछताछ की। नियत समय से अधिक देरी पर राजस्व निरीक्षक से कार्रवाई के संबंध में पूछताछ की।

पुराने फार्मेट में जारी हुए प्रमाणपत्र

तहसील कर्मचारी ने बताया कि साल 2014 के बाद जिले में ऑनलाइन निवास प्रमाणपत्र जारी करने की व्यवस्था थी। जिसका फार्मेट पूर्व के फार्मेट से अलग था। जारी हुए फर्जी प्रमाणपत्र 2015-16 में जारी हुए लेकिन उनका फार्मेट साल 2012 से 2014 जैसा है।

एकल खिड़की संचालक से पूछताछ

साल 2012 में आय, जाति व निवास प्रमाणपत्र जारी करने को एकल खिड़की व्यवस्था थी। इसका ठेका नवीन कुमार निवासी मेजा प्रयागराज के पास था। पांच से छह कर्मचारी वहां काम देखते थे। सीबीआइ ने ठेकेदार से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि प्रमाण पत्र जारी होने से पूर्व उनका ठेका समाप्त हो गया था और ऑनलाइन बनने लगे थे। (इनसर्ट) दो वकील जांच के लिए लखनऊ तलब

दो वकीलों से भी सीबीआइ ने पूछताछ की। वकीलों ने ही आवेदन संबंधित लिपिकों तक पहुंचाए थे। वकीलों ने सीबीआइ को बताया कि एक प्रमाणपत्र के एवज में तीन सौ रुपये मिलते थे। 200 रुपये लिपिक को देते थे। सीबीआइ ने उन्हें लखनऊ तलब किया है।


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