Move to Jagran APP

आप ही बताइए, आखिर हम महिलाएं कहां जाएं? Gorakhpur News

घर से बाहर निकलो तो टायलेट जाना हो या बच्चे को दूध पिलाना हर जगह हमें ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि मासिक धर्म के दौरान भी हम ही समस्या से घिरी रहती हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Wed, 27 Nov 2019 08:00 AM (IST)Updated: Wed, 27 Nov 2019 11:03 AM (IST)
आप ही बताइए, आखिर हम महिलाएं कहां जाएं?  Gorakhpur News
आप ही बताइए, आखिर हम महिलाएं कहां जाएं? Gorakhpur News

 गोरखपुर, जेएनएन। मैं महिला हूं। मेरी अपनी समस्याएं हैं। इन्हें मैं सार्वजनिक नहीं कर सकती। पूरा परिवार चलाती हूं, घर के काम भी आसानी से करती हूं पर समस्याओं पर खुलकर बात करने में झिझकती हूं। समाज का ऐसा ताना-बाना भी है कि पुरुषों के लिए सबकुछ और हमारे लिए कुछ भी नहीं। घर से बाहर निकलो तो टायलेट जाना हो या बच्चे को दूध पिलाना, हर जगह हमें ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि मासिक धर्म के दौरान भी हम ही समस्या से घिरी रहती हैं। यह किसी एक महिला का नहीं बल्कि हर उस महिला का दर्द है जो घर से बाहर निकलती है। डर ऐसा कि बाहर पानी ही नहीं पीती हैं। घर में बच्चे को स्तनपान कराती हैं लेकिन बाहर निकलने पर डिब्बे का दूध बोतल में रखकर निकलती हैं। महिलाओं को समस्याओं से निजात दिलाने के लिए दैनिक जागरण उनकी आवाज बन रहा है। सार्वजनिक स्थानों पर टायलेट, ब्रेस्ट फीडिंग रूम, सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और सेनेटरी नैपकिन इंसीनिरेटर मशीन लगवाने के लिए हम अभियान चलाएंगे। इसमें घरेलू से लेकर कामकाजी सभी महिलाओं से हम बात करें और अफसरों से बात कर समस्या दूर कराने की दिशा में प्रयास करेंगे।

loksabha election banner

इसके लिए मुझे घर आना पड़ा

दंत चिकित्‍सक डा. शाल्‍वी कुमार का कहना है कि घर में शादी थी। खरीदारी के लिए अपनी एक दोस्त के साथ गोलघर गई। पांच महीने की छोटी बिटिया माही गोद में थी। बाजार में काफी समय लग गया। माही भूख से रोने लगी। उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं मानी। आस-पास जगह खोजने की कोशिश की, पर कोई ऐसी जगह नहीं मिली जहां बैठकर उसे दूध पिला सकूं। डेढ़ घंटे बाद घर पहुंचकर उसे दूध पिलाया। शहर के मुख्य बाजार में महिलाओं के लिए एक ऐसी जगह तो होनी ही चाहिए, जहां वो अपने बच्चे को दूध तो पिला सके।

शहर में महिलाओं के लिए थोड़ी सी भी जगह नहीं

शिक्षक रितिका लालवानी का कहना है कि शॉपिंग के लिए उर्दू बाजार गई थी। भीड़ काफी थी, इसलिए सामान पसंद करने में समय लग रहा था। अभी खरीदारी बची ही थी कि असहज महसूस करने लगी। ये क्या निश्चित अवधि से चार दिन पहले ही माहवारी शुरू हो गई थी तुरंत एक दुकान से सेनेटरी नैपकिन लिया। खरीद तो लिया पर इस्तेमाल के लिए कहां जाऊं? कुछ समझ नहीं आ रहा था। शर्माते, सकुचाते हुए घर का रुख किया। बहुत परेशान हुई उस दिन। लगा कि हर आने-जाने वाली नजरें मुझे ही घूर रही हैं। शहर का व्यस्ततम बाजार और महिलाओं के लिए थोड़ी सी भी जगह नहीं।

महिलाओं की परेशानियों का निस्‍तारण होना चाहिए

बैंककर्मी स्‍मृति मौर्या का कहना है कि नौकरी के सिलसिले में कई बार लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ती है। ऐसे ही एक बार सहकर्मियों के साथ विजिट पर जा रही थी। वॉशरूम की जरूरत महसूस हुई। शहर से होते हुए चौरीचौरा की तरफ रुख किया। गाड़ी चलती रही लेकिन मेरी निगाहें शौचालय की तलाश करती रहीं। साथ में सारे पुरुष सहकर्मी थे। संकोच के कारण किसी से कह भी नहीं पा रही थी। अंतत: होटल पहुंची और वॉशरूम गई। आज जब शहर में तमाम बदलाव हो रहे हैं। महिलाओं की परेशानियों का निस्तारण होना चाहिए।

अब इस तरफ भी ध्‍यान दिया जाए

असिस्‍टेंट प्रोफेसर डा. प्रियंका श्रीवास्‍तव का कहना है कि परिवार के साथ तारामंडल गई थी। वहां खूब खाया-पिया, सेल्फी ली और घूमते रहे। कुछ देर बाद वॉशरूम की जरूरत महसूस हुई। सब इधर-उधर तलाशने लगे पर कहीं सार्वजनिक शौचालय नहीं दिखा। आनन-फानन वापस आना पड़ा। मन खराब हो गया। घूमने की इतनी अच्छी जगह पर महिलाओं की सुविधा का कोई ख्याल नहीं। अब समय आ गया है कि इस तरफ लोगों का ध्यान जाए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.