International Yoga Day: नाथ योगी की नगरी से नगर-नगर पहुंचा योग, योगानंद ने क्रिया योग को दिया वैश्विक आयाम
Yoga day 2021 पूरी दुनिया को क्रिया योग का पाठ पढ़ाने वाले योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक परमहंस योगानंद का शारीरिक के साथ आध्यात्मिक जन्म भी गोरखपुर में ही हुआ था। गुरु मत्स्येंद्रनाथ के बाद हठ योग के आचार्य शिवातारी महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने यहीं पर धूनी रमाई थी।
गोरखपुर, जेएनएन। आत्म साक्षात्कार के लिए आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया तेज करने वाला क्रिया योग हो या मन को सांसारिक प्रवाह से विरत कर अंतर्मुखी होते हुए कुंडलिनी जागरण के लिए किया जाने वाला हठ योग, दोनों के नवीन वैश्विक आयाम का आधार गुरु गोरक्षनाथ की नगरी गोरखपुर ही रही। योग की दोनों धाराएं नाथ योगी की नगरी से होते हुए दुनिया भर में पहुंची।
गुरु मत्स्येंद्रनाथ के बाद हठ योग के सबसे बड़े आचार्य शिवातारी महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने यहीं पर धूनी रमाई थी। उनके सिद्धांतों को उनके शिष्य स्वात्माराम ने 'हठ योग प्रदीपिका में कलमबद्ध किया और आज विश्व उसका लाभ ले रहा है। वहीं, पूरी दुनिया को क्रिया योग का पाठ पढ़ाने वाले योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक परमहंस योगानंद का शारीरिक के साथ आध्यात्मिक जन्म भी गोरखपुर में ही हुआ था। यहां पनपी आध्यात्मिक चेतना ही बरेली, वाराणसी, रांची और कोलकाता प्रवास के दौरान ईश्वरीय साक्षात्कार और क्रिया योग को वैश्विक आयाम देने की गति को तीव्र कर रही थी।
गोरखपुर में गुजरा योगानंद का बचपन
योगदा सत्संग ध्यान मंडली के शहर अध्यक्ष प्रो. आरसी श्रीवास्तव बताते हैं कि परमहंस योगानंद का जन्म 128 साल पहले पांच जनवरी 1893 को कोतवाली के पास मुफ्तीपुर मोहल्ले में हुआ था। मां-पिता ने उनका नाम मुकुंदलाल रखा। उनके पिता भगवती चरण घोष बंगाल-नागपुर रेलवे के अधिकारी बतौर यहां तैनात थे। योगानंद के बचपन के आठ वर्ष यहीं गुजरे। यह आठ वर्ष आध्यात्मिक चेतना से परिपूर्ण थे। इसका जिक्र न केवल उनकी आत्मकथा योगी कथामृत में है, बल्कि उनके छोटे भाई सानंदलाल घोष की पुस्तक 'मेजदाÓ (मंझला भाई) में भी है। पिता की नौकरी के कारण योगानंद बरेली, वाराणसी व रांची में भी रहे।
गोरखनाथ मंदिर में मिले थे ध्यानामग्न
मुकुंद की मां रोज शाम को उन्हें गोरखनाथ मंदिर लेकर जाती थीं। एक दिन उत्सव के कारण नहीं जा पाईं। मुकुंद अकेले चले गए। बाद में तलाश शुरू हुई तो वह गोरखनाथ मंदिर में ध्यानमग्न मिले। लोगों के आग्रह के बावजूद पिता ने उन्हें आवाज नहीं लगाई। भोर में मुकंद का ध्यान टूटने पर ही उन्हेंं घर लाया गया। ऐसे ही आध्यात्मिक विकास के क्रम में उनका साक्षात्कार श्यामाचरण लाहिड़ी उपाख्य लाहिड़ी महाशय के गुरु बाबाजी से हुआ था। उन्होंने ही योगानंद को बताया कि ईश्वर साक्षात्कार की वैज्ञानिक प्रणाली क्रिया योग के वैश्विक प्रसार के लिए उन्हें चुना गया है।
भादुड़ी महाशय ने सिखाया-साधन को साध्य मत समझना
आध्यात्मिक विकास की यात्रा में योगानंद जी ने कई महान विभूतियों से बहुत कुछ सीखा। योगी कथामृत में उल्लेख है कि भादुड़ी महाशय ने उनसे कहा था-'साधन को ही साध्य समझ लेने की भूल नहीं करना।Ó उन्होंने मनोविनोद भी किया था कि साधारणतया लोगों को ध्यानयोग से जलयोग (जलपान) अधिक अ'छा लगता है। मुलाकात की इसी वार्ता में भादुड़ी महाशय ने यह भी बताया था योगशास्त्र का ज्ञान उन सभी के लिए है, जो उसे प्राप्त करने के इ'छुक हैैं। एक समान रूप से है। पुस्तक में उल्लेख है- 'जिसे मानव की मुक्ति के लिए ऋषियों ने अनिवार्य समझा है, उसे पाश्चात्य लोगों के लिए हल्का करने की आवश्यकता नहीं है। बाह्य अनुभव भिन्न होते हुए भी सबकी आत्मा एक समान ही है, और जब तक योग का कुछ न कुछ अभ्यास नहीं किया जाता, तब तक न ही पाश्चात्य और नही पौर्वात्य लोग उन्नति कर सकते हैैं।