Gorakhpur Lockdown Day 5 : कड़ा संघर्ष, लंबा सफर, प्रशासन ने पहुंचाया घर Gorakhpur News
Gorakhpur Lockdown Day 5 विभिन्न शहरों से बसों से करीब दो हजार लोग गोरखपुर पहुंचे। जिला प्रशासन ने यहां से बसें चलवाकर उन्हें मंजिल तक पहुंचाया।
गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। दिल्ली की मायापुरी में स्टील कंपनी में काम करने वाले अभिषेक विश्वकर्मा 50 किमी पैदल चलकर किसी तरह उत्तर प्रदेश की सीमा पर पहुंचे। वहां से बस से लखनऊ होते हुए गोरखपुर रेलवे बस स्टैंड पहुंचे। यहां से जिला प्रशासन ने बस चलाकर उन्हें महराजगंज के बृजमनगंज स्थित उनके घर भेजा। इकलौते अभिषेक नहीं बल्कि दिल्ली, हापुड़, अवध, आलमबाग, मेरठ और सहारनपुर से कड़े संघर्षों के बाद 22 बसों से करीब दो हजार लोग शनिवार को गोरखपुर पहुंचे। जिला प्रशासन ने यहां से बसें चलवाकर उन्हें मंजिल तक पहुंचाया।
विभिन्न रूटों पर चलाई गईं 14 बसें
रेलवे बस डिपो परिसर से शाम छह बजे तक दिल्ली, लखनऊ, तमकुही, मेहरौना, सोनौली, ठुठीबारी आदि विभिन्न रूटों पर कुल 14 बसें चलाई गईं। बाहर से आए लोग अपने घर पहुंच गए। लेकिन इस दौरान शारीरिक दूरी का पालन नहीं हो पाया। हालांकि रोडवेज प्रशासन उन्हें दूर-दूर बैठने के लिए लगातार प्रेरित करता रहा।
करेंगे खेती, नहीं जाएंगे परदेस
कोरोना वायरस ने रोजी-रोटी पर भी पहरा लगा दिया है। बड़े शहरों से अपने घर लौट रहे पूर्वांचल के लोगों ने बताया कि कोरोना ने रोजी के साथ रोटी भी छीन लिया है। घर पर रहकर खेती कर लेंगे, लेकिन परदेस कमाने नहीं जाएंगे।
गोरखपुर रेलवे बस डिपो पर बातचीत के दौरान लोगों ने बताया कि दिल्ली जैसे शहरों में 50 रुपये किलो आलू मिल रहा है। 200 रुपये में सिर्फ पांच किलो आटा है। कब तक उधारी खाएंगे। न बाहर से रोग लेकर आएंगे और न घर वाले परेशान होंगे। यह कहते ही मजदूर चुप हो गए, जैसे उनके पास अब कोई शब्द ही नहीं था।
कंपनी बंद होने के बाद खाने-पीने का संकट हो गया। कंपनी ने पैसे नहीं दिए। पैदल चलकर यूपी बार्डर पहुंचा। 524 रुपये किराया देकर बस से लखनऊ और वहां से 570 रुपये में गोरखपुर रेलवे बस स्टैंड पहुंचे। यहां से जिला प्रशासन बस चलवाकर घर भेज रहा है। यह बड़ा उपकार है। - अभिषेक विश्वकर्मा, बृजमनगंज, महराजगंज
बस से लखनऊ आया और वहां से गोरखपुर पहुंचा हूं। दो दिन हो गए, खाना नसीब नहीं हुआ। दिल्ली में बहुत परेशानी बढ़ गई है। रहना मुश्किल है। - बृजेश कुमार, कप्तानगंज- कुशीनगर
घर वाले भी परेशान थे। 22 मार्च के बाद एक-दो दिन तो किसी तरह कट गए, लेकिन देशभर में लॉकडाउन होने पर सभी साथी भागने लगे। अब वहां कोई नहीं रह गया है। - रोशन गौड़, कप्तानगंज- कुशीनगर
जब रोजी नहीं रहेगी तो रोटी कहां से मिलेगी। आखिर कब तक सड़क पर पड़े रहते। सबकुछ बंद हो गया है। कोई सुविधा नहीं मिल रही है। घर पर रहना ही अच्छा है। - परशुराम, बाघापार- महराजगंज
जहां ठहरे थे वहां खाना बनना बंद हो गया था। यूपी और बिहार के सभी लोग अपने घर के लिए निकल गए हैं। स्थानीय लोग डर के मारे बात करने से भी कतराने लगे हैं। - लक्ष्मण, घुघली- महराजगंज