दो साल से ठप है गन्ना शोध संस्थान का कार्य, जंग लग रहा मशीनों में
गोरखपुर:के गन्ना शोध संस्थान 50 एकड़ भूमि की जरूरत है। जमीन अभी तक नहीं मिल पाई। इसलिए दो साल से कोई कार्य नहीं हो रहा है।
गोरखपुर: शहर के कूड़ाघाट में एम्स बनने के बाद वहा स्थापित गन्ना शोध संस्थान अब पिपराइच स्थित बंद पुरानी चीनी मिल परिसर में सिफ्ट हो चुका है। किंतु बजट के अभाव में लगभग दो साल से गन्ना शोध का काम ठप्प है। फलत: किसानों को शोधित नई प्रजातियों के गन्ना बीज पाने के लिए दूरस्थ संस्थानों का चक्कर काटना पड़ रहा है।
बता दें कि पिपराइच में नई चीनी मिल परियोजना का कार्य जोरों पर चल रहा है। मिल लगने से किसानों का झुकाव भी गन्ने की खेती केप्रति बढ़ा है। चीनी मिल किसानों को तरह-तरह से प्रोत्साहित भी कर रही है, लेकिन गन्ना बीज की स्थानीय स्तर पर मिल रही सुविधा बंद होने से किसान परेशान हैं। गन्ना समिति के अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार सिंह का कहना है कि किसानों को गन्ना बीज प्राप्त करने के लिए सेवरही आदि दूरस्थ स्थानों का चक्कर काटना पड़ रहा है। काम न होने से जंग लग रहा है शोधन संयंत्र में
गन्ना शोध संस्थान में कार्यरत वैज्ञानिक सहित 17 कर्मचारियों के पास जहां कोई काम नहीं है, वहीं लाखों रुपये कीमती बीज शोधन संयत्र, बीओडी, कृषि उपकरण, जनरेटर, ट्रैक्टर आदि मशीने लंबे समय से उपयोग में नहीं आने से जंग खा रही हैं। इस बावत पूछे जाने पर गन्ना शोध केंद्र के प्रभारी मुन्ना शाही ने बताया कि एक पखवाड़े पहले शोध संस्थान शाहजहापुर के निदेशक डा.जे सिंह पिपराइच के दौरे पर आए थे। उन्होंने बताया है कि पिपराइच शोध केंद्र के लिए 28.99 करोड़ रुपये आवटन की माग शासन से हुई है। गन्ना शोध प्रारंभ करने केलिए विभाग को चाहिए 50 एकड़ भूमि:
गन्ना शोध संस्थान गोरखपुर से पिपराईच में स्थापित तो हो गया है। किंतु शोध का काम पूरा करने केलिए उसे तीन गाव के 361 किसानों के 50 एकड़ भूमि संस्थान को अब तक सरकार उपलब्ध नहीं करा सकी। ऐसे में फरवरी 2017 से ही गन्ना संस्थान के माध्यम से होने वाला शोध का काम ठप चल रहा है।
बता दें कि चीनी मिल निरीक्षण के दौरान गत माह पूर्व यहा दौरे पर आए प्रदेश के गन्ना राज्य मंत्री सुरेश राणा के समक्ष भी शोध संस्थान के लिए बजट का मामला स्थानीय जन प्रतिनिधियों ने प्रमुखता से उठाया था। लेकिन आश्वासन के बावजूद भूमि अधिग्रहण के लिए विभाग द्वारा भेजा गया बजट स्वीकृत होकर नहीं लौटा। केंद्र प्रभारी मुन्ना शाही ने बताया कि किसानों से भूमि अधिग्रहण संबंधित सहमति पत्र एक साल पहले ही भरवा ली गई है। आए दिन किसान अपनी भूमि रजिस्ट्री केबावत कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं।