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हिन्दी को सरल बनाने के पक्षधर थे आचार्य रामचंद्र

जयंती पर विशेष आचार्य शुक्ल के लेखन की निशानी पाकड़ का पेड़ गांव में मौजूद है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 06:34 AM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 06:34 AM (IST)
हिन्दी को सरल बनाने के पक्षधर थे आचार्य रामचंद्र
हिन्दी को सरल बनाने के पक्षधर थे आचार्य रामचंद्र

बस्ती, जेएनएन : हिदी समालोचना के प्रतिमान आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिदी भाषा के प्रति बेहद आग्रही थे। वह हिदी को जन सामान्य की समझने वाली भाषा बनाने के पक्षधर रहे। उनका कहना था कि शब्दालंकार कविता के लिए है। गद्य में शब्द के उसी पर्याय का प्रयोग किया जाना चाहिए जो सहजता में बोला जाता हो। कविता की भाषा में रवि, मार्तड, भास्कर, विधु हो सकता है लेकिन गद्य में सूर्य ही सर्वाधिक उपयुक्त है। उनके कई पत्रों और लेख में हिदी को सरल बनाने संबंधी साक्ष्य मिलते हैं। हम जिस आचार्य शुक्ल की बात कर रहे हैं वह बस्ती के अगौना गांव के रहने वाले थे। प्रारंभिक पढ़ाई यहीं हुईं इसके बाद की वाराणसी में। वह बीएचयू के हिदी विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे।

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गद्य कोष के अनुसार आचार्य शुक्ल ने तत्कालीन संपादकों की शिक्षा और प्रस्तुतिकरण को लेकर आलोचना की तो इस पर बहस शुरू हो गई थी। आचार्य ने अपने लेख में कहा था कि हो सकता है कि उनके कथन को निराशावादी दृष्टिकोण के रूप में अथवा हिन्दी के विकास से सम्बन्धित व्यक्तियों को अपमानित करने की चतुर युक्ति के रूप में लिया जाय। द इंडियन पीपुल नामक पत्र में यह लेख प्रकाशित हुआ तो व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। इसके पक्ष-विपक्ष में अनेक लोगों ने विचार लिखे थे। ऐसे ही लोगों में एक थे बीडी मलावी। इन्होंने द इंडियन पीपुल में ही हिन्दी साहित्य नामक पत्र लिखकर इस पर विरोध दर्ज कराया था। पुन: आचार्य शुक्ल ने मलावी के पत्र का प्रत्युत्तर हिन्दी साहित्य पर टिप्पणी शीर्षक लेख से दिया था। इस तरह से काफी दिनों तक भाषा की प्रस्तुति को लेकर बहस हुई। गांव में निशानी बची है पाकड़ का पेड़

आचार्य शुक्ल के गांव में पैतृक आवास पर पुस्तकालय और धर्मशाला बना हुआ है। परिसर में ही आदमकद प्रतिमा है। गांव में वह पाकड़ का पेड़ अब भी है जिसके छांव के नीचे आचार्य वाराणसी जाने के पहले तक पढ़ाई लिखाई किया करते थे। वह चार भाई और चार बहनों में सबसे बड़े थे। खेतीबारी की जो जमीन थी वह आचार्य राम चंद्र शुक्ल के नाम संचालित बालिका इंटर कालेज के नाम कर दिया गया है। छोटे भाई जगदीश चंद्र शुक्ल के पुत्र 84 वर्षीय कैलाश चंद्र लखनऊ में रहते हैं। बताया कि पैदाइश मिर्जापुर की है। गांव के लोगों से जुड़ाव बना हुआ है। गांव में आचार्य की चार अक्टूबर को जयंती के अवसर पर वर्ष 1978 से निरंतर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।


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