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महिलाएं बनीं मुफ्ती, फतवा देकर सऊदी अरब की कंपनी से लागू भी कराया

रसूलपुर की मुफ्तिया गाजिया खानम बीते एक साल से शरई मामलों में महिलाओं की रहनुमाई कर रही हैं। एक मसले का खुशआइंद (अच्छा) हल चर्चा का विषय बन गया है। मुफ्तिया गाजिया खानम का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं में जागरूकता आ रही है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 06:41 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 08:25 PM (IST)
महिलाएं बनीं मुफ्ती, फतवा देकर सऊदी अरब की कंपनी से लागू भी कराया
फतवा के संबंध में प्रतीकात्‍मक फाइल फोटो।

कासिफ अली, गोरखपुर। महिलाएं भी मुफ्ती बनकर मुस्लिम समाज की रहनुमाई कर रही हैं। शरई मामलों में वह न केवल फतवे जारी कर रही हैं बल्कि उसका असर भी नजर आ रहा है। हाल में ही एक मसले में उनके फतवे ने नजीर कायम की है। सऊदी अरब की कंपनी में काम करने वाले शौहर ने गुजारा भत्ता देना बंद किया तो परेशान हाल बीबी ने महिला मुफ्ती से मदद की अपील की। मुफ्तिया ने इसे गंभीरता से लेते हुए पति के कंपनी को मामले से अवगत कराया, जिस पर कंपनी ने शौहर को न सिर्फ चेतावनी दी बल्कि वेतन का एक हिस्सा भी बीबी के खाते में डलवाया। अब यह रकम हर माह उसे मिलेगी। इसके अलावा शहर की कई मुफ्तिया विरासत, घरेलू कलह, जीवन-यापन, धर्म-कर्म के मसले के अलावा मियां-बीबी के रिश्तों में आई खटास को दूर करने में भी अहम रोल अदा कर रहीं हैं। 

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एक साल से शरई मामलों में महिलाओं की रहनुमाई कर रहीं मुफ्तिया गाजिया खानम

रसूलपुर की मुफ्तिया गाजिया खानम बीते एक साल से शरई मामलों में महिलाओं की रहनुमाई कर रही हैं। एक मसले का खुशआइंद (अच्छा) हल चर्चा का विषय बन गया है। तीन माह पूर्व पीपीगंज की जरीना (बदला हुआ नाम) ने मुफ्तिया गाजिया खानम को अपनी परेशानी से अवगत कराया। जरीना के मुताबिक शौहर मो. वहाब (बदला हुआ नाम) सऊदी अरब में नौकरी करते हैं। सालभर से घर खर्च के लिए पैसे नहीं भेज रहे हैं। फोन करने पर रिसीव नहीं करते, जबकि रिश्तेदारों से संपर्क में रहते हैं। ऐसी सूरत में शरई नजरिए से उन्हें क्या करना चाहिए। इस पर मुफ्तिया ने पता लेकर महिला के शौहर को पत्र भेजकर आरोपों के सिलसिले में सफाई मांगी। एक माह तक जवाब नहीं आया तो मुफ्तिया ने वहाब से मोबाइल पर संपर्क किया, लेकिन उसने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। इसके बाद मुफ्तिया ने वहाब की कंपनी को ई-मेल कर मामले से अवगत कराया। एक सप्ताह बाद कंपनी के अधिकारी ने फोनकर इस सिलसिले में कार्रवाई का आश्वासन दिया। साथ ही बताया कि कर्मचारी हर माह वेतन का 40 फीसद हिस्सा बीबी को भेजेगा। सप्ताह में दो दिन फोन कर हालचाल मालूम करेगा। ऐसा न करने पर उसकी सेवा समाप्त कर दी जाएगी। इसका असर भी हुआ, इस माह जरीना के खाते में करीब 13 हजार रुपये आए हैं।

महिलाओं में आ रही जागरूकता

मुफ्तिया गाजिया खानम का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं में जागरूकता आ रही है। महिलाएं अपने मसले लेकर आती हैं और खुलकर बात करती हैं। जिसका शरीयत की रोशनी में हल निकाला जाता है। बीते एक साल में पचास से ज्यादा मसले हल कराए गए हैं।

क्या होता है फतवा

आसान शब्दों में कहा जाए तो इस्लाम से जुड़े किसी मसले पर कुरान और हदीस की रोशनी में जो हुक्म जारी किया जाए वो फतवा है। पैगंबर मोहम्मद ने इस्लाम के हिसाब से जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया उसकी जो प्रामाणिक मिसालें हैं उन्हें हदीस कहते हैं। फतवा हर मौलवी या इमाम जारी नहीं कर सकता है। फतवा कोई मुफ्ती ही जारी कर सकता है। मुफ्ती बनने के लिए शरिया कानून, कुरान और हदीस का गहन अध्ययन जरूरी होता है। ज्यादातर फतवों में परिस्थिति और संदर्भ ही जुड़ा होता है। ऐसे में ये फतवे सब पर लागू नहीं हो सकते। फतवा एक तरह की राय होती है और उसे मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।


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