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जब अटल बोले, मेरा सौभाग्य मैंने बुद्ध की धरती को छू लिया

1957 के चुनाव प्रचार में बलरामपुर में प्रचार करते समय गलती से बस्ती के एक गांव में पहुंच गए थे अटल।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 06:47 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 06:47 PM (IST)
जब अटल बोले, मेरा सौभाग्य मैंने बुद्ध की धरती को छू लिया
जब अटल बोले, मेरा सौभाग्य मैंने बुद्ध की धरती को छू लिया

नीलोत्पल दुबे, गोरखपुर : वक्त था दूसरे लोकसभा चुनाव का और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर संसदीय सीट से जनसंघ के उम्मीदवार थे। जनसंपर्क के दौरान वह जैतापुर सेमरी के दौरै पर आए थे, लेकिन अचानक वह बस्ती जिले की बिस्कोहर सीमा मे दाखिल हो गए। बिस्कोहर के लोग अटल जी को अपने बीच देख कर अभिभूत हो उठे। चंद मिनटों में अटल जी को फूल मालाओं से लाद दिया गया। पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने जब अटल जी को यह बताया कि यह दूसरे जिले का हिस्सा है तो उन्होंने कहा कि क्या हुआ यह दूसरे जिले का हिस्सा है। मेरा शौभाग्य कि मैंने बुद्ध की धरती को छू लिया।

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वर्ष 1957 में जनसंघ ही विपक्ष का इकलौता चेहरा था और जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर दूसरी लोकसभा में अटल जी तीन लोकसभा क्षेत्रों से उम्मीदवार थे। लखनऊ और मथुरा के अलावा उन्होंने बलरामपुर से भी दावेदारी ठोंकी थी। बलरामपुर में अटल जी गाव-गाव जनसंपर्क कर रहे थे। दो मार्च 1957 को वह जैतापुर सेमरी आए हुए थे। सेमरी से सटे हुए सिद्धार्थनगर ( पूर्व में बस्ती) बिस्कोहर कस्बा है। जनसंपर्क के दौरान अटल जी का काफिला ऐतिहासिक कस्बा बिस्कोहर में दाखिल हुआ। लोगों को उम्मीद नहीं थी कि अटल जी उनके बीच आए हैं। बिस्कोहर पश्चिम पेट्रोल पंप के निकट बेलवा गाव के सीवान में जब अटल जी का काफिला पहुंचा तो समर्थकों ने बताया कि हम लोग दूसरे जनपद की सीमा में दाखिल हो चुके हैं, इसपर उन्होंने कहा कि क्या हुआ जो दूसरे जनपद की सीमा में आ गए यह बुद्ध की पावन धरती है जहा आकर मैं धन्य हो गया। अटल जी के पहुंचने की बात क्षेत्र में आग की तरह फैल गई और कुछ ही देर में स्थानीय लोगों ने फूल मालाओं से लाद दिया।

अटल ने लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए स्थानीय भाषा में सबसे मुखातिब होते हुए पूछा कि 'का हाल है सभै जने के' अटल जी का इतना बोलना था कि पूरी पब्लिक अटल जी के नारे लगाने लगी। अटल जी ने यहा जलपान किया व चालीस मिनट तक रुककर लोगों से बातचीत करते रहे। जाते समय उन्होंने दो लाइनें पढ़ीं- मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं। लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं। इन लाइनों को अटल जी ने 1988 में कविता की शक्ल में लिपिबद्ध किया। आज भी ताजी है अटल जी की याद

प्यूरिया निवासी अस्सी वर्षीय लक्ष्मी नेवास कहते हैं कि तब मैं बिस्कोहर में पढ़ता था। अचानक शोर हुआ कि बेलवा में अटल जी पहुंचे हैं। छात्रों के हुजूम के साथ वह भी मौके पर पहुंचे थे। अटल जी ने बच्चों से हाथ मिलाकर पढ़ाई के बारे में पूछताछ की। अहिरौली पड़री के सुकई गिरी बताते हैं कि जिस वक्त अटल जी बेलवा में आए थे वह अपने पिता जी के साथ उक्त गाव में ही एक यजमान के घर रूद्राभिषेक कराने गए थे। शोर मचा कि अटल जी आए हैं मौके पर वह भी पहुंचे और पैर छूकर अटल जी से आशीर्वाद लिया। हरिबंधनपुर के तुलसीराम चौधरी कहते हैं कि जिस वक्त अटल जी बेलवा में आए थे उनकी उम्र बारह वर्ष की थी। बच्चों के साथ वह भी अटल जी को देखने गए थे। जब वह पहुंचे तो अटल जी गुड़ की चाय पी रहे थे। हम बच्चों में भी गुड़ वितरित किया गया था। पूर्व प्रधान महेंद्र नाथ कहते हैं कि वह बिस्कोहर में अपने पिता स्व. पारस नाथ के साथ गाय खरीदने गया थे। शोर मचा कि बेलवा में अटल जी आए हैं। देखने के लिए बेलवा जा पहुंचा। अटल जी उस वक्त स्थानीय लोगों से बात कर रहे थे। उनके पास पहुंचकर आशीर्वाद लिया था। आज भी वह वक्त और अटल जी की वाणी याद है। बारह घटे साथ रहे अटल जी

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाडेय बताते हैं कि वर्ष 1981, 82 में गन्ना मूल्य के भुगतान को लेकर वाल्टरगंज में विपक्ष ने रेल रोको आदोलन किया था। इस आदोलन में विपक्षी नेताओं को पकड़कर लखनऊ जेल में डाला गया। उसी समय लखनऊ जेल में अटल जी से मुलाकात हुई। अटल जी सुबह से लेकर शाम तक हम लोगों के बीच रहे और अपने चुलबुले अंदाज में हम लोगों को राजनीति का पाठ पढ़ाते रहे। देर शाम वह लखनऊ जेल से रिहा हो गए। जाते-जाते उन्होंने कहा कि जमीन से सदा जुड़कर राजनीति करना। उनकी बातें आज भी जेहन में ताजी हैं।


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