चौपाल : हे कोरोना मां, सबका भला करो Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से जितेन्द्र पांडये का साप्ताहिक कालम-चौपाल...
जितेन्द्र पाण्डेय, गोरखपुर। सुबह के करीब 8 बजने वाले थे। बाइक से ऑफिस के लिए निकला था कि रास्ते में एक गांव के पास दर्जनों महिलाएं हाथ में पूजन का लोटा लेकर आंचल से मुंह ढंककर जा रही थीं। सभी एक-दूसरे से एक मीटर की दूरी पर थीं। उन्हेंं जाते देख मन में विचार आया कि हर गांव की अपनी परंपरा होती है। मेरे जिले में भी एक गांव है, जहां के लोग एक दिन के लिए पूरा गांव खाली कर देते हैं। उनका मानना है कि इससे गांव में सुख-शांति रहती है। महिलाओं को आगे बढ़ते देख मन में विचार आया कि देखूं यहां क्या होने वाला है। महिलाएं एक नीम के पेड़ के पास पहुंचकर रुक गईं और विनती करने लगीं, हे माताजी आपको हर किसी ने देख लिया। तमाम लोगों को आपका आशीर्वाद भी मिल गया। अब जहां से आईं हैं, वहीं चले जाइए। हे कोरोना मां, सबका कल्याण करिये।
पास हैं, तभी मिल रहा मुफ्त राशन
सरकारी राशन की दुकान पर पड़ोस वाले चाचा से बगलवाली आंटीजी झगड़ रहीं थीं। उनकी तेज आवाज सुनकर मैं भी वहां पहुंच गया। आंटी, चाचा पर बरस रही थीं कि मैं, यहीं खड़ी रहूंगी क्या कर लोगों तुम? बड़े आए हो नसीहत देने वाले। मुफ्त का गल्ला जो मिल रहा है, पास होने की देन है। मुंह पर मास्क न लगाने की देन है। हाथ गंदे रखने की देन है। बीमारी जितनी ज्यादा फैलेगी, राशन उतने दिन तक मुफ्त मिलेगा। राशन लेने के लिए लाइन में दूर नहीं, पास खड़े होने की जरूरत है। कतार में खड़ी कई अन्य महिलाएं भी आंटी का पक्ष लेने लगीं। बहन जी ठीक कह रही हैं। सभी ने कहा कि इतने वर्ष से वह देखती आ रही हैं कि आज तक कभी सरकार को मुफ्त राशन वितरित करने की नहीं सूझी। ऐसे में भला मानिए कोरोना का, जो मुफ्त में राशन मिल रहा है।
साहब तो उतारते ही नहीं मास्क
दो दिन पहले एक काम से चरगांवा जाना हुआ। वहां खेती-किसानी विभाग से जुड़े कुछ लोग चर्चा कर रहे थे कि जबसे कोरोना आया है, साहब को बड़ा आराम है। पहले तो बैठक में बड़े साहब के सामने वह बैठने से घबराते थे। 10 मिनट पूर्व ही पहुंच जाते थे और तंबाकू खाकर मन-मस्तिष्क को तरोताजा कर लेते थे। यह समस्या उन्हें यहां से लेकर लखनऊ तक होती थी, पर अब किसी की भी बैठक हो, साहब बिंदास बैठते हैं। तंबाकू मुंह में दबाते हैं और ऊपर से मास्क। बैठक में तो लोग एक-दो बार मास्क उतार भी देते हैं, लेकिन साहब तो बिना मास्क के रहते ही नही हैं। फिजिकल डिस्टेंसिंग भी मेंटेन करते हैं। जबसे कोरोना आया है साहब कभी पीले मास्क में होते हैं, तो कभी हरे में। उनके फैशन की भी चर्चा होती है, लेकिन वे कहते हैं कि हम जागरूकता का संदेश दे रहे हैं।
इनके योगदान को समझिए
दो दिन पूर्व पड़ोस वाले चाचा को चाची ने कूट दिया। रास्ते में फटे कुर्ते में मौजूद चाचा को देखकर दया आ रही थी। कुछ देर तक चाचा वहीं पड़े रहे। उसके बाद वहां से उठे और सड़क के बीचोबीच पहुंच दाहिने हाथ को माइक की भांति आगे ले आए। उनकी सभा शुरू हो गई। चाचा ने कहा कि कोरोना संक्रमण के चलते देश की हालत क्या है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। पूरी अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई है। ऐसे में शराब ही एकमात्र जरिया है, जिससे अर्थव्यवस्था सुधारी जा सकती है। पहले रात को एक-एक पैग लेता था। इधर कुछ दिनों से दिन में भी पैग लेना शुरू किया है। सैनिटाइजेशन के लिहाज से भी यह ठीक था, लेकिन पिटाई हो गई। चाचा, लोगों से सवाल करते दिखे कि देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देना, क्या गलत है? अर्थव्यवस्था ठीक रहेगी, तभी तो लोगों को रोजगार मिल सकेगा।