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परिसर से : गुरुजी को मिला अर्धांगिनी का साथ Gorakhpur New

पढ़ें गोरखपुर से प्रभात कुमार पाठक का साप्‍ताहिक कॉलम-परिसर से...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Mon, 11 May 2020 11:00 PM (IST)Updated: Mon, 11 May 2020 11:00 PM (IST)
परिसर से : गुरुजी को मिला अर्धांगिनी का साथ Gorakhpur New
परिसर से : गुरुजी को मिला अर्धांगिनी का साथ Gorakhpur New

प्रभात कुमार पाठक, गोरखपुर। गुरुजी अक्सर सोशल मीडिया पर अपने पारिवारिक जीवन की तस्वीरें डालकर खुशी का इजहार करते रहते हैं। इस बार उनकी खुशी दोगुनी नजर आ रही है। वजह, लंबे समय बाद अपनी अर्धांगिनी से उनकी मुलाकात हुई है। बात लॉकडाउन से पहले की है। गुरुजी इसी शहर में थे और पत्नी दूसरे शहर में। तभी आफत कोरोना आया और लॉकडाउन की घोषणा हो गई। अचानक यह घोषणा उनपर कहर बनकर टूट पड़ी। गुरुजी बेचारे यहां अकेले रह गए। यानी गुरुजी यहां लॉक हो गए और उनकी अर्धांगिनी वहां। एक-एक दिन पहाड़ जैसा बीतने लगा। 50 दिन बाद जब 'जीवन संगिनी से मुलाकात हुई, तो गुरुजी की खुशी का ठिकाना न रहा। अब तो यह खुशी छुपाए नहीं छुप रही। गुरुजी फेसबुक पर जुदाई के आंकड़ों के साथ अपना प्रेम भी दर्शा रहे हैं। यहां से लेकर राजधानी तक के लोगों को दुआएं देकर संबंधों का समीकरण भी सेट कर लिया है।

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याद आ रही 'चाय की दुकान

शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में आरटीओ का आशय वहां आसपास की दुकानों से होता है। यहां हर दिन होने वाली बहस काशी के अस्सीघाट वाले 'पप्पू की दुकान से कम महत्वपूर्ण नहीं होती। पुराने से लेकर नए तक सभी तरह के गुरुजन शाम होते ही यहां जुट जाते हैं। फिर छिड़ जाती है देश-दुनिया में होने वाली गतिविधियों पर बहस। कुछ देर के लिए तो चाय की दुकान दूसरा कैंपस बन जाती है। यहां सिर्फ बहस ही नहीं होती बल्कि रणनीति भी बनाई व बिगाड़ी जाती है। परिसर में जिनकी एक-दूसरे से नहीं बनती, वह लोग भी यहीं आकर भड़ास निकालते हैं। लॉकडाउन के कारण लंबे समय से यहां बैठकी नहीं हुई। ऐसे में गुरुजी का परेशान होना लाजिमी है। बीच-बीच में वह दोपहिया वाहन से आकर आरटीओ के चक्कर लगा लेते हैं। इस उम्मीद में कि दुकान खुली होगी। बहरहाल गुरुजी की परेशानी इन दिनों चर्चा में है।

मिसाल बना गुरुजी का 'त्याग

शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर से पिछले महीने एक गुरुजी विदा हुए। उनकी सेवानिवृत्ति से एक महत्वपूर्ण पद रिक्त हो गया। फिर क्या था, इस पद को लेकर भी त्रिकोणीय लड़ाई शुरू हो गई। विवाद से परेशान बड़े साहब ने फैसला सुनाया और चौथे को कमान सौंप दी। परिसर में चर्चा छिड़ गई कि इनके बीच तालमेल रहता, तो आज यह नौबत नहीं आती। बड़े साहब ने भी एक वरिष्ठ गुरुजी को बुलाकर समझाया और बोले, यहां तो किसी के अंदर त्याग की भावना ही नहीं है। यह बात तीर की तरह गुरुजी को चुभ गई। उन्होंने आव देखा न ताव, अपने त्याग का प्रमाण बड़े साहब को दे डाला। एक माह के अंदर सेवानिवृत्त होने वाले वरिष्ठ गुरुजी को महत्वपूर्ण पद के साथ वह सम्मान भी मिल गया, जिसके लिए हर शिक्षक परेशान रहता है। गुरुजी का त्याग मिसाल बना तो वह खुद ब खुद चर्चा में आ गए।

तकनीक से अनजान हैं साहेबान

लॉकडाउन में बैठक, संगोष्ठी व अन्य कार्यक्रम आयोजित तो हो रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन। सेमिनार का नाम वेबिनार हो गया है। तरह-तरह के एप हैं, जिन पर सैकड़ों लोग एक साथ जुड़कर घर बैठे संवाद कर रहे हैं। कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए शारीरिक दूरी का पालन आवश्यक है। इसके चलते ऑनलाइन कार्यक्रमों का चलन बढ़ा है। इन दिनों शिक्षण संस्थानों में सभी महत्वपूर्ण बैठकें भी ऑनलाइन हो रही हैं। घर बैठे लोग पासवर्ड या लिंक के जरिये बैठक में प्रतिभाग कर रहे हैं। दुखद यह है कि इन बैठकों में भाग लेने वाले तमाम लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते या फिर नए जमाने की तकनीक से अनजान हैं। उन्हें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। यही वजह है कि ऑनलाइन रहने के दौरान लोग बिना आवाज म्यूट किए घर में खाने-पीने की चीजें मांगते हैं। कुछ लोग परिवार के सदस्यों के साथ गप्पे भी लड़ाते हैं। 


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