यायावर : लॉकडाउन में दावत की छूट, कर रहे शूट Gorakhpur News
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कौशल त्रिपाठी, गोरखपुर। कोरोना वायरस का फैलाव रोकने और उसकी चेन तोडऩे के लिए प्रशासन ने दावतों के आयोजन पर रोक तो लगा रखी है, लेकिन इसका पालन कराने में जिम्मेदार विफल हो गए हैं। प्रभावशाली लोग न केवल दावतों का आयोजन कर रहे हैं बल्कि इसी में अपने दुश्मनों को भी ठिकाने लगा रहे हैं। जिले में इस माह आयोजित दावतों में गुंडों ने शहर से लेकर देहात के तीन इलाकों में एक प्रापर्टी डीलर व दो चचेरे भाइयों को शूट कर दिया तो दक्षिणांचल में दो सगे भाइयों को चाकू मार दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि जिम्मेदार लॉकडाउन में दावतों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा पा रहे हैं। वैसे दावतों का दौर जारी है और जिम्मेदार जानकर भी उन पर रोक लगाने के लिए तैयार नहीं हैं। समय की मांग है कि इस पर कड़ाई से रोक लगाई जाए और लगातार बढ़ते कोरोना के मामलों की चेन तोड़ी जाए।
था बुखार, नहीं मिले मददगार
कोरोना का खौफ इस कदर बढ़ गया है कि योद्धा भी सहारा देने की बजाय अपना हाथ खींचने लगे हैं। ऐसा ही एक वाक्या सोमवार को हुआ, जब बुखार से पीडि़त एक राहगीर इंतजार करना रहा, लेकिन पुलिस भी उसकी मददगार नहीं बनी। ऐसे में एक नागरिक ने अपनी जान की परवाह किए बगैर बुखार पीडि़त साइकिल सवार को न केवल एंबुलेंस पर लादा बल्कि उसे जिला अस्पताल भिजवाने में मदद भी की। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मौजूद पुलिसकर्मी दूर से ही नागरिक को हिदायत देते रहे। बीमार के जाते ही इलाके को सैनिटाइज कराकर जिम्मेदारी पूरी कर ली गई। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन्हें योद्धा कहा जा रहा है वह मदद को आगे क्यों नहीं आए। यह हाल शहर ही नहीं गांवों का भी है जहां अब मदद के नाम पर सिर्फ खानापूरी हो रही है। क्वारंटाइन लोगों के साथ भी यह भेदभाव हो रहा है।
समझौता नीति से न्याय मिलना नामुमकिन
कोरोना के नाम पर पुलिस दूसरा कोई काम नहीं कर रही। थानों में पीडि़तों को न्याय दिलाने की बजाय समझौता नीति लागू कर दी गई है। अफसोसजनक पहलू यह है कि भूमि विवाद व हत्या का प्रयास जैसे गंभीर मामले में भी समझौता कानून लागू है। अब तो अधिकांश थानेदारों ने शांतिभंग में भी चालान करना बंद कर दिया है। सवाल उठता है कि पीडि़त कैसे अपनी फरियाद कप्तान तक पहुंचाएं। बीते 23 मई को दक्षिणांचल के एक थाना क्षेत्र में चार लोगों ने युवक को बेहोश होने तक पीटा। प्राणघातक हमले के इस मामले में पुलिस ने एनसीआर दर्ज किया तो घायल युवक के पिता ने सीओ से गुहार लगाई लेकिन न्याय नहीं मिला। थानेदारों ने दबी जुबान स्वीकारा कि साहब के मना करने की वजह से शांतिभंग में चालान करना बंद करना पड़ा। यही नहीं कार्यालयों में 30 फीसद उपस्थिति आदेश का भी पालन नहीं हो रहा है।
शारीरिक दूरी बनाइये, मानसिक नहीं
लॉकडाउन से पहले तक बीमार पडऩे या मौत होने पर पड़ोसी व रिश्तेदार मदद के साथ-साथ हिम्मत भी बढ़ाते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। कोरोना संक्रमित के परिवार से लोग शारीरिक की बजाय मानसिक दूरी बना ले रहे हैं। हाल ही में सिकरीगंज व बेलीपार के एक गांव में महानगरों से आए कोरोना संक्रमित की मौत पर उनके परिवार को अपमान का सामना करना पड़ा। कई जगहों पर लोग मरीज से संवेदनहीनता दिखा रहे हैं। मरीज व परिवार से ऐसा व्यवहार कर रहे हैं, जैसे उसने कोई अपराध कर दिया है। अपने लोग भी मदद को तैयार नहीं हैं। कोरोना को फैलने से रोकने के लिए तत्पर जिम्मेदार भी अपमानित हो रहे ऐसे परिवारों की पीड़ा बांटने में रुचि नहीं दिखा रहे। कोरोना से लड़ें, बीमार से नहीं के प्रचार के बाद भी अपमान का दंश बढ़ रहा है। ऐसे में इस पर जल्द रोक लगाने की जरूरत है।