कॉलम : ट्रक वाले ही लगा रहे बेड़ा पार Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्ताहिक कॉलम-मुसाफिर हूं यारों...
प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। पीठ पर दुखों का पहाड़ लादे सैकड़ों प्रवासी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक के गेट के बाहर खड़े थे। उनकी आंखें अंदर खड़ी बसों को निहार रही थीं। कुछ अंदर जाने की कोशिश करते, तो सुरक्षाकर्मी रोड़ा बन जाते। जेठ का ताप उनके संताप को और बढ़ा रहा था। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ थे। समझ नहीं आ रहा था कि उनका दोष क्या है? किसी तरह जुगाड़ से राजस्थान, मुंबई और गुजरात से यहां तक पहुंचे हैं। रोडवेज प्रशासन का कहना है कि बसें रेलवे स्टेशन परिसर में खड़ी हैं। जो प्रवासी ट्रेन से आए हैं, उन्हें ही बस से भेजा जा रहा है। तो आखिर, यह बेचारे जाएं कहां? गर्म हवाओं के बीच जीवन और सिस्टम से लड़ रहे श्रमिकों को देख मेरे कदम भी ठिठक गए। कुरेंदते ही सिवान के लल्लन बोल पड़े, आगे कुआं और पीछे खाई है। ट्रेन-बस तो मिलेगी नहीं। ट्रक वाले ही बेड़ा पार लगाएंगे।
प्रवासियों के साथ झूम उठे प्लेटफार्म
चार मई को जब पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन गोरखपुर पहुंची तो 42 दिन से वीरान पड़ा विश्व का सबसे लंबा प्लेटफार्म गुलजार हो उठा। लॉकडाउन में तो ट्रेनों की छुक-छुक और सुरक्षाकर्मियों के कदमताल सुनने को प्लेटफार्म मानो तरस गए थे। 24 घंटे साथ रहने वाले सफाईकर्मी, लोको पायलट, गार्ड और कोट वाले भाई साहब भी रास्ता भूल गए थे। चमक भी फीकी पडऩे लगी थी। प्लेटफार्म एक की खुशी में दो से लगायत नौ नंबर तक शामिल हो गए। सोचा, चलो स्टेशन पर चहल-पहल तो बढ़ी। लेकिन कुछ दिन बाद ही उन्हें प्लेटफार्म एक की खुशी से जलन भी होने लगी कि हमारी तरफ तो कोई देखता ही नहीं। शायद, उनके मन की आवाज ऊपर वाले ने सुन ली। ठीक दस दिन बाद प्रवासियों की भीड़ बढ़ी तो प्लेटफार्म नंबर एक ही नहीं दो और नौ भी गुलजार हो गए। हजारों प्रवासियों के साथ अब प्लेटफार्म झूम उठे हैं।
एक लाख में एक भी अनफिट नहीं
चंडीगढ़ से चली ट्रेन से उतरे श्रमिक संजय के कदम गोरखपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर डगमगा रहे थे। घर पहुंचने की खुशी में पीले पड़ चुके चेहरे पर मद्धिम सी मुस्कान थी। इतने में सवाल उसके कानों तक पहुंचा, तुम्हारे पैर तो लड़खड़ा रहे हैं। इतना सुनते ही वह चैतन्य हो गया। बोला, अभी तो जांच कराया हूं। इसके साथ ही वह अपनी जेब से फिट होने का प्रमाण पत्र भी निकाल लिया। चंडीगढ़ स्थित राजकीय अस्पताल ने भी शरीर का तापमान नापकर फिट टू ट्रेवल का प्रमाण पत्र जारी किया था। श्रमिक जहां से चल रहे हैं, वहां भी फिट और जहां उतर रहे वहां भी फिट। गोरखपुर में ही अभी तक एक लाख से अधिक प्रवासी ट्रेनों से उतर चुके हैं, लेकिन एक भी अनफिट नहीं पाए गए हैं। लगातार थर्मल स्कैनिंग हो रही है। इसके बावजूद पूर्वांचल में प्रतिदिन कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं।
इनकी फिक्र भी जरूरी है भाई
इनकी न अपनी मंजिल है, न ही कोई ठिकाना है, लेकिन दिल में सेवा का भाव कूट-कूट कर भरा है। इसी जज्बे के साथ यह प्रवासियों की सेवा में दिन-रात जुटे हैं। हम बात कर रहे हैं रोडवेज के उन चालकों-परिचालकों की, जो अपनी मेहनत के बूते प्रवासियों की उम्मीदों को पंख लगा रहे हैं। अपने घर-परिवार की चिंता छोड़ चालक-परिचालक उन प्रवासियों को मंजिल तक पहुंचा रहे हैं, जो अपना आंगन देखने की आस छोड़ चुके थे, लेकिन इन कोरोना योद्धाओं की सुधि लेने वाला शायद कोई नहीं है। गोरखपुर, देवरिया, बस्ती ही नहीं रुहेलखंड, बरेली, हाथरस, मुरादाबाद और अलीगढ़ आदि डिपो की सैकड़ों बसें लेकर रेलवे स्टेशन पहुंचे चालकों-परिचालकों की दशा यह है कि कुछ मिल गया, तो खा लेते हैं और फुर्सत के पलों में सड़क किनारे पेड़ की छांव में गमछा बिछाकर झपकी मार लेते हैं। ऐसे योद्धाओं के बारे में भी थोड़ी फिक्र जरूरी है।