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खरी-खरी : नेताजी को चाहिए वीआइपी ट्रीटमेंट Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से गजाधर द्विवेदी का साप्‍ताहिक कॉलम खरी-खरी...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 05:34 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 05:34 PM (IST)
खरी-खरी : नेताजी को चाहिए वीआइपी ट्रीटमेंट Gorakhpur News
खरी-खरी : नेताजी को चाहिए वीआइपी ट्रीटमेंट Gorakhpur News

गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। एक नेताजी कोरोना पॉजिटिव हैं। उन्हें शहर के एक उच्च चिकित्सा शिक्षा संस्थान में भर्ती कराया गया है। जो ट्रीटमेंट सभी मरीजों को मिल रहा है, समान रूप से उन्हें भी दिया जा रहा है, लेकिन यह उन्हें पसंद नहीं आया। वह वीआइपी ट्रीटमेंट की मांग करने लगे। व्यवस्थापकों ने उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया, तो धमकी देने लगे कि वह आइटी सेल के नेता हैं। सोशल मीडिया पर यहां की खराब व्यवस्था को वायरल कर देंगे। फिर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया। यह देख उनका गुस्सा फूट पड़ा, लेकिन निकालें किस पर? डॉक्टरों पर निकालना खतरे से खाली नहीं था, क्योंकि इलाज तो उन्हीं से कराना था। नेताजी ने एक तरकीब निकाली और चिकित्सा संस्थान के खिलाफ मीडिया संस्थानों में बयान जारी कर दिया, लेकिन वहां तो उन्हें सामान्य ट्रीटमेंट भी नहीं मिला, क्योंकि मीडिया को वहां की व्यवस्था के बारे में पहले से पता था।

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साहब के साथ चला गया आराम

आधी आबादी की स्वास्थ्य सुरक्षा का दावा करने वाले जिले के सबसे बड़े संस्थान के बड़े साहब 30 जून को सेवानिवृत्त हो गए। उनके पद की जिम्मेदारी एक मैडम को सौंपी गई है। मैडम पहले भी बड़े साहब का पद संभाल चुकी हैं, लेकिन इस बार उनके तेवर काफी तीखे हैं। वह दोगुनी सख्ती के साथ लौटी हैं। रोज सुबह आठ बजे अस्पताल पहुंच जाती हैं और वार्डो का राउंड लेना शुरू कर देती हैं। खामियां मिलने पर कर्मचारियों की खैर नहीं। मैडम किसी को छूट देने के मूड में नहीं हैं। उनका कोई मित्र है न शत्रु। उनका पूरा ध्यान गुणवत्तायुक्त कार्य पर है, इसलिए पुराने बड़े साहब के कार्यकाल में आराम फरमा रहे कर्मचारियों के सामने नया संकट आ गया है। वे सहमे हुए हैं। अब उन्हें लगने लगा है कि या तो काम करने की आदत डालनी पड़ेगी अथवा राहत के लिए कोई दूसरा रास्ता देखना पड़ेगा।

गए थे आरओ बनवाने, देने लगे ज्ञान

एक कोविड अस्पताल का आरओ (पानी शुद्ध करने वाली मशीन) खराब हो गया था। वहां कोरोना के मरीज भर्ती हैं, इसलिए मैकेनिक वार्ड में जाने को तैयार नहीं था। बड़े साहब ने उसके साथ जाने के लिए अस्पताल की गुणवत्ता सुधारने वाले एक अधिकारी को तैयार किया। दोनों पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट) किट, ग्लब्स व ग्लास लगाकर वार्ड के अंदर गए। मैकेनिक आरओ बनाने लगा। इस बीच गुणवत्ता सुधारने वाले साहब को मौका मिला, तो वार्ड में मरीजों के पास चले गए और उन्हें कोरोना से बचने व मनोबल बढ़ाने का ज्ञान देने लगे। बात यहीं खत्म नहीं हुई। उन्होंने ज्ञान देते हुए अपना फोटो भी खिंचवाया और वहां से निकलने के बाद सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इसे लेकर बड़े साहब बहुत नाराज हुए। नाराजगी जागरूक करने को लेकर नहीं, सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट को लेकर है। अब ज्ञान देने वाले साहब को जवाब नहीं सूझ रहा।

कोरोना के भय से बंद हुई जांच

शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्तपाल में कोरोना का भय फैल गया है। स्वास्थ्य कर्मियों में संक्रमण न फैले, इसलिए सभी की कोरोना जांच कराई जा रही थी। तीन दिन लगातार जांच में प्रतिदिन एक कर्मचारी पॉजिटिव मिला। पॉजिटिव कर्मचारी कोविड अस्पतालों में भर्ती होने लगे। अस्पताल प्रशासन को लगा कि इस तरह यदि ज्यादा कर्मचारी पॉजिटिव आ गए, तो काम कैसे चलेगा। इसके बाद कर्मचारियों की जांच बंद कर दी गई। इससे स्वास्थ्य कर्मियों में संक्रमण का पता नहीं चलेगा और विभाग अपनी पीठ थपथपा लेगा। व्यवस्थाएं भी प्रभावित नहीं होंगी। सभी मरीजों की देखरेख के लिए कर्मचारी कम नहीं पड़ेंगे। लेकिन यदि कोई कर्मचारी संक्रमित हुआ, तो कर्मचारियों, डॉक्टरों सहित मरीजों व उनके तीमारदारों में भी संक्रमण पहुंचा देगा। यह स्थिति अस्पताल में कर्मचारियों के कम होने से ज्यादा भयावह होगी। भगवान करें, ऐसा न हो, लेकिन हुआ तो भयावहता की कल्पना आसानी से की जा सकती है।


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