कसौटी : बिना काम वाले हो गए साहब Gorakhpur News
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उमेश पाठक, गोरखपुर। एक वक्त था जब शहर के विकास की रूपरेखा तय करने वाले विभाग के एक साहब की चर्चा हर तरफ थी। नियमों को ताक पर रखकर कहीं निर्माण कराए गए हों या विभाग की जमीन पर किसी ने कब्जा कर लिया हो, सबक सिखाने के लिए इन्हीं को भेजा जाता था। साहब भी ठहरे जुझारू, सो परिणाम की चिंता किए बिना काम में जुट जाते थे। विभाग के बाहर हो या भीतर उनका नाम हमेशा चर्चा में रहता था। लेकिन परिस्थितियां बदलीं तो उनकी जिम्मेदारियों पर कैंची चलने लगी। पहले अतिरिक्त बोझ होने के नाम पर कैंची चली, फिर एक-एक काम उनसे हटाया जाने लगा। स्थिति यह हो गई है कि अब वह 'बिना काम वाले साहबÓ बनकर रह गए हैं। अब जो काम है, उसमें उनका मन नहीं लगता। चर्चा है कि उनकी ड्यूटी इन दिनों विभागीय कालोनियों में रहने वालों की समस्या नोट करने में लगी हुई है।
सजा में ज्यादा मजा
लाखों की रकम डकारने के बाद भी मजे हों, तो क्या कहने। मामला घरों में रोशनी करने वाले एक विभाग से जुड़ा है। 'तृतीय के नाम से पहचान रखने वाले साहब के कार्यालय में एक कर्मचारी ने हेर-फेर कर माल गटक लिया। पहले तो उसे गलती सुधारने का मौका मिला, लेकिन वह नहीं सुधरा, तो उसका अपराध सार्वजनिक हो गया। विभाग से निलंबित किया गया और एफआइआर दर्ज करा दी गई। 'द्वितीय साहब के पास इस मामले की जांच है, लेकिन अभी भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। विभाग की लेटलतीफी में गबन करने वाले की सजा मजा में बदल गई है। घर बैठे आधा वेतन मिल रहा है और पुलिस से भी अभयदान मिला हुआ है। विभाग की ओर से भी किसी ने कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई। विभाग की इस दरियादिली की चर्चा इस समय कर्मचारियों के बीच खूब हो रही है।
'ज्ञानचंदों से पीछा छूटे तो काम हो
गर्मी में बिजली का फाल्ट बड़ी समस्या है। शायद ही कोई दिन बिना फाल्ट के बीतता हो। समस्या की सूचना मिलने पर विभाग उसे ठीक कराता है, लेकिन मरम्मत के लिए जाने वाली टीम मोहल्लों के 'ज्ञानचंदों से परेशान है। शहर में घूम लीजिए तो एक दृश्य निश्चित ही नजर आ जाएगा, जिसमें एक व्यक्ति खंभे पर चढ़ा होगा और नीचे चारों ओर से आसमान की ओर देखते लोग खड़े होंगे। दरअसल ऊपर चढ़ा व्यक्ति फाल्ट ठीक कर रहा होता है और नीचे खड़े लोगों में से कई उसे मुफ्त का ज्ञान दे रहे होते हैं। सलाह इतनी अधिक हो जाती है कि बेचारा किसी तरह काम निपटाकर नीचे उतर आता है। सलाह के चक्कर में चूंकि काम ठीक से हो नहीं पाता, सो थोड़ी देर में बत्ती गुल हो जाती है। विभाग के कर्मचारी कहने लगे हैं कि बेहतर काम के लिए 'ज्ञानचंदोंÓ से पीछा छूटना भी जरूरी है।
एक बदलाव से बनेंगे कई काम
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए सरकारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सामाजिक संस्थाएं व लोग भी काम कर रहे हैं। आजकल जरूरतमंद लोगों में मास्क वितरण का काम जोरों पर चल रहा है। पर, अधिकतर संस्थाओं की ओर से एक बार प्रयोग करने वाला मास्क ही दिया जा रहा है। जिस वर्ग को मास्क मिल रहा है, उनमें से अधिकतर उस मास्क के प्रयोग की शर्तों को लेकर शायद जागरूक नहीं होंगे। एक बार प्रयोग होने वाले मास्क की जगह यदि कपड़े वाले मास्क का वितरण हो तो कई मायने में फायदेमंद होगा। जिन्हें मास्क मिलेगा, वे उसे धुलकर बार-बार प्रयोग कर सकेंगे। जिले में बड़ी संख्या में जरूरतमंद महिलाएं इन दिनों कपड़े का मास्क बना रही हैं, उनकी आय बढ़ सकेगी। आय बढ़ेगी तो इस कठिन समय में उनकी राह कुछ आसान होगी। यानी एक बदलाव करने से अप्रत्यक्ष रूप से कई काम बन जाएंगे।