बिंब-प्रतिबिंब : स्वयंभू प्रत्याशियों की खयाली योजना Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से राकेश राय का साप्ताहिक कॉलम बिंब-प्रतिबिंब...
गोरखपुर, जेएनएन। देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक दल में इन दिनों शिक्षक एमएलसी के चुनाव को लेकर प्रत्याशिता की जंग छिड़ी हुई है। जंग का लेवल खुद को स्वयंभू प्रत्याशी घोषित करने तक पहुंच चुका है। आत्मविश्वास इस कदर चरम पर है कि दल की घोषणा के इंतजार का धैर्य भी नहीं रहा। कुछ ने अपने पोस्टर-बैनर तक लगाने शुरू कर दिए हैं, तो कुछ अभी से वोट सहेजने में जुट गए हैं। अपना भ्रम बनाए रखने के लिए ऐसे प्रत्याशियों ने शिक्षक संगठनों से तो मुंह मोड़ ही लिया है, दल की उस रणनीतिक टीम से भी दूरी बना रखी है, जिसपर चुनाव संचालन की जिम्मेदारी है। जंग यहीं तक नहीं सिमट रही बल्कि एक-दूसरे को खारिज करने तक बढ़ चली है। बीते दिनों एक स्वयंभू प्रत्याशी सार्वजनिक रूप से प्रतिद्वंद्वी पर भड़क उठे। अपनी मजबूत दावेदारी का बखान इस तरह करने लगे, जैसे उनका प्रत्याशी बनना तय हो चुका है।
नेताजी खुद करा रहे अपना स्वागत
अपने स्वागत का इंतजाम खुद करना पड़े, यह आपको सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है, पर देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल के कुछ स्थानीय नेताओं को कतई नहीं। ऐसा इसलिए कि यही उनकी लोकप्रियता का फंडा जो है और इसी से उनकी टीआरपी बढ़ती है। बीते दिनों इसकी बानगी तब देखने को मिली, जब दल की जिला और महानगर कार्यकारिणी घोषित हुई और उसके साथ ही शुरू हो गया नेताओं के स्वागत के संघर्ष का सिलसिला। हद तो तब हो गई जब एक नेताजी ने अपने स्वागत का इंतजाम खुद के पैसे से फूल-माला मंगाकर घर पर ही कर लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने खुद के स्वागत के लिए कुछ ऐसे वरिष्ठ नेताओं को भी घर बुला लिया, जिन्हें स्वागत का यह तरीका दल की नीति के खिलाफ लगा। मौके पर तो उन्होंने कुछ नहीं कहा, लेकिन वह अपनी व्यथा वरिष्ठ नेताओं से साझा करना नहीं भूले।
फजीहत से डर नहीं लगता साहब
रेलवे बस स्टेशन के पास मौजूद पर्यटकों की सुख-सुविधा के इंतजाम का दावा करने वाले विभाग के एक अफसर का इसे लेकर व्यक्तिगत रूप से हरगिज कोई दावा नहीं है। उनका सिर्फ एक दावा है, वह है समय से घर जाने का। इसके लिए उन्हें कोई भी फजीहत मंजूर है। खुद के दावे की मजबूती के लिए ही वे विभागीय कामों में हाथ नहीं लगाते। विभाग के बड़े साहब ने भी उनकी आदत से आजिज आकर उन्हें छोड़ रखा है। मामला तब फंस गया, जब बीते सप्ताह इन साहब को आला अफसरों की एक मीटिंग में अपने विभाग का प्रतिनिधित्व करना पड़ा। साहब मीटिंग में पहुंच तो गए पर अफसरों ने उनके विभाग के काम की जानकारी मांगी तो पल-पल विभागीय कर्मचारियों को फोन करने लगे। कर्मचारियों को लगा कि साहब लौटकर शर्मिंदगी जाहिर करेंगे, लेकिन उनका फंडा तो क्लीयर था, सारी फजीहत सह लेंगे पर काम हरगिज नहीं करेंगे।
सुंदर ही नहीं मजबूत भी बनाइए साहब
पर्यटकों को लुभाने के लिए राप्ती नदी के शहर के हिस्से के बांध को सुंदर बनाने की जिम्मेदारी गोरखपुर विकास प्राधिकरण से लेकर पर्यटन विभाग को सौंप तो दी गई पर इसकी मजबूती को लेकर बेफिक्री चिंताजनक है। पहले बांध को नदी की ओर से भी बोल्डर पिचिंग से मजबूत किया जाना था, लेकिन बजट बढऩे की वजह से इसे योजना से बाहर कर दिया गया। बिना इसकी फिक्र किए कि बरसात में नदी का पानी हिलोरे मारेगा तो बांध के शहर के हिस्से का सुंदरीकरण कब तक टिक सकेगा। ऐसे मेें जरूरी है कि बांध का सुंदरीकरण करने से पहले उसे नदी की ओर से सुरक्षित किया जाए। बोल्डर पिचिंग से इतना मजबूत किया जाय कि नदी के पानी से शहर तो सुरक्षित रहे ही बांध पर पर्यटकों की आवक भी बनी रहे। वरना बांध की सुरक्षा तो खतरे में रहेगी ही, शहर में बाढ़ की दहशत भी बनी रहेगी।