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हाल बेहाल : साहब ने मांगा 80 लाख का बिल Gorakhpur News

पढ़ेंं गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्‍ताहिक कालम-हाल बेहाल...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 22 May 2020 05:30 PM (IST)Updated: Fri, 22 May 2020 05:30 PM (IST)
हाल बेहाल : साहब ने मांगा 80 लाख का बिल Gorakhpur News
हाल बेहाल : साहब ने मांगा 80 लाख का बिल Gorakhpur News

दुर्गेश त्रिपाठी, गोरखपुर। लॉकडाउन में कुछ लोग बेहाल हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं, जिनकी लॉटरी खुल गई है। जरूरतमंदों की मदद के नाम पर ऐसा माल पीटना शुरू किया है कि पूछिए मत। कमाऊ पूत रहे पुराने मातहतों की पूछ भी बढ़ गई है। एक दिन की बात है। एक सेठ जी के यहां साहब के मातहत का फोन आया। सेठ जी ने डरते-डरते फोन उठाया कि कहीं कोई फरमान न जारी हो जाए। कंगाली में आटा गीला होने जैसे मुहावरे भी सेठ जी को याद आने लगे। हुआ भी वही, जैसा सेठ जी सोच रहे थे। फर्क इतना था कि फरमान सिर्फ कागजों का पेट भरने के लिए जारी हुआ था। इसके बावजूद सेठ जी कांप उठे। बोले, 80 लाख का बिल, जीएसटी कौन भरेगा। इस पर दोनों हाथ से माल समेटने वाले साहब बोले, जीएसटी की ङ्क्षचता न करो, कैश भेज दे रहा हूं, तुम बस बिल बनाकर दे दो।

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चक्कर काट रहे छोटे माननीय

बड़े अरमान से शहर के छोटे वाले माननीयों ने लिस्ट बनाई। लिस्ट में शहर के उन लोगों के नाम दर्ज थे, जो कोरोना काल में वाकई राशन के हकदार थे। चूंकि लिस्ट बनाने का फरमान जिले के सबसे बड़े साहब के मुखारङ्क्षवद से होते हुए, छोटे वाले माननीयों तक पहुंचा था, इसलिए वह भी आश्वस्त थे कि वार्ड के जरूरतमंदों का पूरे लॉकडाउन कल्याण होगा। एक दिन, दो दिन होते-होते महीना बीत गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। साहब से पूछे तो कौन। कुछ छोटे माननीयों ने अपनी पीड़ा शहर के फायरब्रांड माननीय तक पहुंचाई, तो उन्होंने अपनी लिस्ट से मिलान शुरू कर दिया। यह माननीय भी लिस्ट देखकर चकरा गए, क्योंकि इन्होंने जो नाम भेजे थे, उनका भी कोई भला नहीं हो सका था। खैर, यह माननीय दमदार हैं, तो इनकी लिस्ट पर काम शुरू हो गया, लेकिन छोटे माननीय लिस्ट लेकर मदद की आस में चक्कर काट रहे हैं।

काम कुछ नहीं, बुलाते क्यों हैं

लॉकडाउन में सरकारी कार्यालयों में काम शुरू करने का फरमान हुआ, तो धड़ाधड़ उन कर्मचारियों की लिस्ट बननी शुरू हुई, जिन्हें बुलाया जाना था। नौकरी सरकारी और घर बैठकर तनख्वाह मिले, तो भला इससे अच्छा क्या होगा। घर में रहेंगे तो कोरोना से भी बचेंगे। लिस्ट से बाहर रहने के लिए सभी ने जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया। तरह-तरह के बहाने भी बनाए, लेकिन लिस्ट बनानी थी, तो बनी भी। जिनका नाम आ गया था, उन्हें संदेश भेज दिया गया। भारी मन से वह कार्यालय आने लगे, लेकिन जनता के दर्शन न होने से सिर्फ तनख्वाह का भरोसा देख फिर घर बैठने का जुगाड़ तलाशने लगे। किसी ने नहीं सुनी, तो साहब के सामने हाजिर हुए। पर, साहब भी नहीं माने। अब आते तो रोजाना हैं, लेकिन साहब को मन ही मन भला-बुरा कहते हुए दूसरे साथियों से पूछते हैं कि जब काम नहीं, तो बुलाया क्यों जा रहा है।

मास्क खत्म कर दे रहा पहचान

सच ही कहा गया है कि साहबों की पहचान अर्दली और खुद के अपने चेहरे से होती है। अर्दली गायब हुआ तो साहब का चेहरा देखकर लोग उन्हें पहचान जाते हैं। सालों से यही चला आ रहा है, लेकिन कौन जानता था कि एक समय ऐसा आएगा, जब सभी को अपना चेहरा ढंकना पड़ेगा। कोरोना ने ऐसा कर दिया है कि बिना चेहरा ढंके खुद को संक्रमण से बचाना मुश्किल है। कुछ दिन पहले की बात है। साफ-सफाई वाले महकमे के बड़े साहब को सूचना मिली कि सरकारी जमीन पर कब्जा हो रहा है। हमेशा की तरह साहब खुद मौके पर पहुंच गए। किसी कारणवश अर्दली पीछे रह गया। साहब ने कब्जा करने वालों से बातचीत शुरू की, तो जागरूक टाइप के कुछ लोग उन्हें ही घेरने लगे। एक ने तो परिचय पत्र मांग लिया। इतने में अर्दली पहुंचा तो लोगों को अहसास हुआ कि गलत बयाना हो गया है।


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