साप्ताहिक कालम हाल बेहाल: दो हंसों का जोड़ा बिछुड़ गयो रे Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्ताहिक कालम में इस बार नगर निगम को आधार बनाया गया है। नगर निगम के अधिकारी कर्मचारी सभासद और उनकी कार्य प्रणाली पर रिपोर्ट है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्ताहिक कालम हाल-बेहाल---
गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी। सफाई महकमे में इन्हें हीरा-मोती, राम-श्याम और तो और हंसों का जोड़ा भी कहकर बुलाया जाता था। दोनेां का काम अलग था। सुबह से रात तक महकमे के अफसर जो टास्क देते, दोनों पूरा करके ही चैन लेते थे। अफसरों में इनके लिए प्रशंसा के ही शब्द होते थे। यानी दोनों पर सभी को पूरा भरोसा था। पुराने वाले साहब तो दोनों पर जान न्योछावर करते रहते थे। इनकी दोस्ती ऐसी हो गई थी कि मौका मिलते ही गपशप, हंसी मजाक के बीच दिन भर की थकान मिटा लेते थे। एक दिन अचानक न जाने क्या हुआ हंसों का जोड़ा बिछुड़ गया। किसी ने कहा कि फौज वाली शैली सुई-दवा की जगह सफाई कराने वाले साहब को पसंद नहीं आयी। उन्होंने किसी बात पर कमेंट कर दिया। फौज वाले भी कहां पीछे रहने वाले थे, वह भी शुरू हो गए। तब से आज का दिन है, दोनों गुस्से में हैं।
घरवाली निकलने नहीं दे रही
सफाई महकमे पर कोरोना संक्रमण को मात देने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। अफसर से लगायत कर्मचारी तक सब कोरोना के खिलाफ जंग में जुटे हैं। कहीं सफाई हो रही तो कहीं सोडियम हाइपोक्लोराइट का घोल छिड़का जा रहा है। घाट पर भी इंतजाम दुरुस्त कर मानिटङ्क्षरग की जा रही है लेकिन इस जंग में छोटे वाले माननीयों की कमी अखरने लगी है। कुछ छोटे वाले माननीय कभी-कभी चेहरा दिखाते हैं, लेकिन बाद में अचानक गायब हो जाते हैं। एक छोटे माननीय का महकमे में काफी रुतबा है। वह शेखी भी बघारते रहते हैं। जुबान टाइट है, तो सामने वाला अर्दब में भी आ ही जाता है। इन दिनों वह भी घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। एक साथी ने पूछा, आप क्षेत्र में क्यों नहीं जा रहे, जवाब मिला घरवाली निकलने ही नहीं दे रही है। अब गृह मंत्रालय की मनाही है, तो कर भी क्या सकते हैं।
साहब कस रहे तो होने लगी बुराई
महकमे में पुराने वाले साहब का करीबी होकर मनमानी करने वालों के दिन खराब हो गए हैं। पुराने वाले साहब को पाठ पढ़ाकर तेल पी जाने वाले और वाहनों की मरम्मत के नाम पर लाखों इधर-उधर करने वाले इन दिनों बहुत परेशान हैं। नए वाले साहब को कमजोर नब्ज मिल चुकी है। शुरू में साहब को कोरोना से भयभीत कर कार्यालय से घर में रखने की तमाम कोशिशें भी की गईं, लेकिन साहब भी पुराने काम वाले हैं। उद्योग नगरी में अपनी मेहनत के बल पर तमाम लोगों को पटखनी देने वाले साहब के काम की शैली से जैसे-जैसे कार्यालय के लोग परिचित होने लगे, अपने काम में जुट गए। साहब ने फरमान जारी किया है कि फील्ड से जुड़े लोगों को दिखना भी चाहिए। जिनको कुर्सी तोडऩे की आदत पड़ चुकी थी, उन्हें काम करना पड़ रहा है, तो वह परेशान हैं। उनके चेहरे की रौनक भी गायब है।
जून तक खुली छूट, कर लो मनमर्जी
नंबर दो वाले साहब कोरोना को हराकर लौटे तो पुराने तेवर में थे। साहब बोलते कम करते ज्यादा हैं। पुराने वाले बड़े साहब ने अपने कार्यकाल में सबसे ज्यादा किसी के पर कतरे थे, तो इन्हीं साहब के। बिजली-बत्ती तक समेटकर रख दिया था। साहब ने परिस्थितियां विपरीत होने के बाद भी कहीं आह नहीं भरी। जो भी जिम्मेदारी मिली उसी में काम को आगे बढ़ाते रहे। भला हो पुराने वाले ही साहब का, जाते-जाते कई बड़ी जिम्मेदारियां या यूं कहें पुरानी वाली जिम्मेदारियां देते गए। चार्ज वाले साहब के समय साहब संक्रमित हो गए थे, लेकिन अब पूरे फार्म में वापस लौटे हैं। पुराने मातहत दूसरे दरबारों से लौटकर फिर साहब के दरबार में खड़े हो गए हैं। साहब भी निराश नहीं कर रहे हैं, जमकर दस्तखत और काम कर रहे हैं। साल के बीच वाले महीने में साहब को नौकरी वाले बंधन से आजाद जो हो जाना है।