साप्ताहिक कालम कसौटी : आपदा में बटोर रहे संपदा Gorakhpur News Gorakhpur News
कोरोना महामारी की भयावह स्थिति ने आम आदमी को अंदर से हिलाकर रख दिया है। स्वयं एवं स्वजन के स्वास्थ्य को लेकर हर कोई सशंकित है। सेवा का संकल्प लेकर आए साहबों को ऐसे ही लोगों का संबल बनने के लिए जिम्मेदारी दी गई है।
गोरखपुर, उमेश पाठक। आपदा की इस घड़ी में लोगों की गंभीर हालत देखकर जहां मन द्रवित हो रहा है, वहीं कुछ ऐसे लोग हैं जो आपदा के समय संपदा बटोरने में जुटे हैं। व्यवसाय को प्राथमिकता देने वाले यह लोग अब अस्पतालों को भी ठीके पर लेने लगे हैं। यह ऐसे लोग हैं, जो चिकित्सा क्षेत्र से भले न जुड़े हों लेकिन पैसा बनाने में माहिर हैं। सरकार के तमाम प्रतिबंधों के बीच भी ये लोग महामारी की चपेट में आए व्यक्ति के स्वजन से मनमाना पैसा वसूल ले रहे हैं। शहर में कई अस्पताल संचालक ऐसे हैं, जो डाक्टर नहीं हैं। ऐसे संचालकों के अस्पतालों को ही इन लोगों ने ठीके पर लेना शुरू कर दिया है। महीने में एक निश्चित रकम संचालकों तक पहुंचाने का वादा किया है। संसाधनों की कमी और जान बचाने की मजबूरी के कारण मरीज इन ठीकेदारों के चंगुल में न चाहते हुए भी फंस रहे हैं।
छोटे साहबों के फोन क्वारंटाइन
कोरोना महामारी की भयावह स्थिति ने आम आदमी को अंदर से हिलाकर रख दिया है। स्वयं एवं स्वजन के स्वास्थ्य को लेकर हर कोई सशंकित है। सेवा का संकल्प लेकर आए साहबों को ऐसे ही लोगों का संबल बनने के लिए जिम्मेदारी दी गई है। जिले में तैनात इन साहबों के फोन नंबर भी लोगों में बांटे गए हैं, लेकिन जिम्मेदारी से परेशान कई साहब लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने फोन से दूरी बना ली है। ऐसा लगता है कि महामारी के इस दौर में उन्होंने फोन को भी क्वारंटाइन कर दिया है। यदि गलती से किसी जरूरतमंद का फोन उठ भी गया, तो मामला सबसे बड़े साहब को हस्तांतरित करने में देर नहीं लगती। बड़े साहब मीङ्क्षटग में व्यस्त न हों तो उनकी ओर से इस समय अधिकतर फोन काल को तवज्जो मिल रही है और मदद भी। पर, इससे अधीनस्थ साहबों की निङ्क्षश्चतता और बढ़ती जा रही है।
अवज्ञा करने वालों की बल्ले-बल्ले
गांव की सरकार चुनने का जब पहला चरण था, तो महामारी धीरे-धीरे अपने पांव पसार रही थी। प्रशासनिक अमले का जोर प्रत्याशियों की किस्मत बक्शे में बंद करवाने की प्रक्रिया पूरी करने पर था। गोरखपुर जिले में बड़े पैमाने पर सरकारी सेवा वाले लोगों को यह प्रक्रिया पूरी कराने की जिम्मेदारी दी गई। कोई ना-नुकुर न करे, इसके लिए रोज ऐसे कड़े पत्र जारी किए गए कि मानो अवज्ञा करने पर सेवा ही समाप्त हो जाएगी। जब प्रक्रिया पूरी कराने वालों का गांवों में जाने का नंबर आया, तो कई ने अवज्ञा कर ही दी। देर रात तक चेतावनी जारी होती रही। पर, गायब हुए लोग मौके पर नहीं आए। बीमार लोगों के सहारे जैसे-तैसे प्रक्रिया पूरी हुई तो अमला भी शांत हो गया। चेतावनियां ठंडे बस्ते में गईं और अवज्ञा करने वालों की बल्ले-बल्ले हो गई। हालांकि इस रवैये से प्रक्रिया पूरी कराने वाले ठगे महसूस कर रहे हैं।
बिल्कुल ऐसी ही सतर्कता चाहिए
पहले लहर की तुलना में कोरोना महामारी की भयावहता करीब 30 गुना अधिक है। सरकार का जोर जान के साथ जहान बचाने पर भी है। यही कारण है कि पूर्ण लाकडाउन की जगह साप्ताहिक बंदी व रात्रिकालीन कोरोना कफ्र्यू जैसे उपाय किए जा रहे हैं। बगल के जिलों में पंचायत चुनाव चल रहे हैं, इसलिए यहां पुलिसकर्मियों की संख्या सीमित है। सीमित संख्या के कारण चौराहों पर हर समय पुलिस कर्मी उपस्थित नहीं रह सकते। इसके बावजूद लोगों ने स्वत: स्फूर्त सतर्कता बरती है। साप्ताहिक बंदी के दिन बिना किसी आवश्यक कार्य के लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे। जिस दिन बाजार खुले रह रहे हैं, उस दिन भी भीड़ न के बराबर ही रह रही है। मास्क पहनकर निकलने वालों की संख्या 90 फीसद से ऊपर पहुंच गई है। ऐसी ही सतर्कता बनाए रखने की जरूरत है। सतर्कता बनी रही तो यकीन मानिए जल्द ही कोरोना परास्त होगा।