कसौटी : गंगा मइया की शरण में साहब Gorakhpur News
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उमेश पाठक, गोरखपुर। कोरोना महामारी के बीच जिलेवासियों को बाढ़ का डर भी सता रहा है। आमतौर पर बाढ़ से बचाने का दावा करने वाला विभाग इन दिनों सुसुप्तावस्था में नजर आ रहा है। बड़े-बड़े दावे करने वाले विभाग के बड़े साहब का तबादला हाल ही में हो गया। उनकी जगह नए साहब ने जिम्मेदारी संभाल ली, लेकिन नए साहब के आते ही सिर मुड़ाते ओले पडऩे वाली कहावत चरितार्थ होने लगी। जिले की नदियां अपना रौद्र रूप दिखाने लगीं और साहब के माथे पर पसीना आने लगा। मातहतों ने बाढ़ बचाव की तैयारियों से रूबरू कराया, तो सहसा इन तैयारियों पर साहब को विश्वास नहीं हुआ। विभाग की इज्जत बचाने के लिए इधर-उधर सिर खपाने की बजाय साहब ने सीधे गंगा मइया की शरण में जाना बेहतर समझा। एक तटबंध पर पहुंच साहब वैदिक मंत्रो'चार के बीच गंगा मइया को मनाने लगे। लगता है, उनका टोटका कुछ काम कर भी गया है।
सर जी, हमसे न हो पाएगा
पैसा है तो कोरोना संक्रमण के बाद भी आराम से रहने का विकल्प सरकार दे चुकी है। इसके लिए शहर के कुछ प्रतिष्ठित होटलों को चुना गया है। जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो आराम से होटल में रहने के बारे में भी पूछा जाता है। कुछ लोगों ने सरकारी व्यवस्था की बजाय अ'छे से होटल में रहना स्वीकार किया। संक्रमितों को जैसे ही होटल में पहुंचाया गया, उनसे डरकर कुछ लोग भागने लगे। बात-बात में पता चला कि इनमें से कुछ को सेवा की जिम्मेदारी मिलने वाली थी, लेकिन संक्रमित मरीज देख उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और घर जाने में ही भलाई समझी। अपने प्रबंधन को उन्होंने बता दिया कि 'यह सब हमसे न हो पाएगा सर।Ó ऐन मौके पर उनके हाथ खड़े कर देने के बाद उन होटलों में भी प्रशासन को ही आनन-फानन अपने स्तर से संक्रमितों की सेवा के लिए लोगों की व्यवस्था करनी पड़ी।
बड़े साहब की परेशानी
घरों को रोशन करने वाले विभाग के बड़े साहब खासे परेशान हैं। उनकी परेशानी व्यक्तिगत नहीं बल्कि कार्यालय में बैठने के बावजूद काम न हो पाने को लेकर है। महामारी के इस दौर में जैसे-तैसे साहब रोज कार्यालय पहुंच रहे हैं, लेकिन वहां आने के बाद उन्हें अकेलेपन का बोध होने लगता है। कोई फाइल निपटानी हो या ऊपर से कुछ पूछताछ हुई हो, साहब की अंगुली घंटी बजाने को उठ जाती है। आज्ञापालक कक्ष में आता है। साहब किसी का नाम लेकर बुलाने को कहते हैं, तो आज्ञापालक न में सिर हिलाता है, दूसरे का नाम पुकारने पर भी वही जवाब। साहब एक-एक कर आधा दर्जन कर्मचारियों के नाम पूछते हैं, पता चलता है, सबकी तबीयत खराब है। साहब सिर पर हाथ रखकर कहते हैं 'मेरी परेशानी अब कौन समझेÓ। कुछ देर परेशानी जताने के बाद बिना नाम लिए वह कहते हैं, ठीक है, जो हो उसे ही बुलाओ।
फिजिकल डिस्टेंसिंग रखिए, भावनात्मक नहीं
कोरोना संक्रमण के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। आए दिन किसी न किसी की स्थिति बिगड़ रही है। लोग ठीक होकर भी आ रहे हैं। ठीक होकर आने वाले अपने अनुभव भी साझा कर रहे हैं। सरकारी व्यवस्थाओं से इतर उनकी कोई पीड़ा है, तो सामाजिक व्यवहार को लेकर। मरीजों व उनके परिजनों के साथ फिजिकल डिस्टेंङ्क्षसग रखने की कोशिश में लोग भावनात्मक दूरी भी बनाने लगते हैं। यह स्थिति मरीजों व उनके परिजनों पर गलत प्रभाव डाल रही है। ठीक होकर घर लौट रहे लोगों की बातों में उनका दर्द भी छलक रहा है। माना कि कोरोना से बचने के लिए दूर रहना जरूरी है, लेकिन दूर रहकर भी इससे प्रभावित अपने मित्रों, शुभङ्क्षचतकों का हौसला बढ़ाते रहना होगा। जो लोग अस्पताल में हैं, होटल या घर में आइसोलेट हैं, उन्हें फोन करिए, उनका हालचाल जानिए। मोहल्ले में यदि कोई पॉजिटिव मिलता है, तो उसके प्रति भी संवेदना रखिए।