मुसाफिर हूं यारों : न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुरप से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्ताहिक कॉलम मुसाफिर हूं यारों...
प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम फरवरी में साहब के दस्तखत से फिट हुई प्राइवेट खटारा बस ने हाईवे पर जब कई लोगों को असमय काल के गाल में भेज दिया, तो उन्हें मजबूरन निलंबित होना पड़ा, लेकिन वे भी सरकारी मिट्टी के बने हुए हैं, हार कहां मानने वाले। चार माह बाद एक दिन सीना चौड़ा करते हुए विभाग के दफ्तर पहुंच गए। कोर्ट का फरमान दिखाते हुए फिर से प्रशासन वाली कुर्सी पर बैठ गए। जैसे लगा यह कुर्सी सिर्फ उन्हीं के लिए ही बनी है। शासन को भी स्थगन आदेश बताना उचित नहीं समझा। दूसरे दिन मुख्यालय के अधिकारियों को पता चला, तो उनका सिर घूम गया। भले ही कोर्ट ने आदेश दिया है, लेकिन कुर्सी (विशेषकर मलाईदार) पर बैठाने का अधिकार उनके पास सुरक्षित है। जब चाहेंगे, जहां चाहेंगे, वे ही कुर्सी पर बैठाएंगे। गोरखपुर वाले साहब फिलहाल लखनऊ तलब हैं। 15 दिन से कुर्सी पाने के लिए चक्कर लगा रहे हैं।
खतरे में डाल रहे लोगों की जान
बस डिपो परिसर में यात्रियों का टोटा है, लेकिन रोडवेज है कि आपदा को अवसर में बदलने में जुटा है। राप्तीनगर डिपो के अधिकारी और कर्मचारी कोरोना की आड़ में अनफिट बसों को फिट बनाकर दौड़ा रहे हैं। महिलाओं के लिए आरक्षित पिंक एसी बसें तक दुरुस्त नहीं हैं। एक तो वैसे भी लोग बढ़ते संक्रमण के चलते बसों में सफर नहीं कर रहे हैं। जो मजबूरी में बसों में चढ़ रहे हैं, वे भी टूटी सीटें देख सहम जा रहे हैं, ऊपर से गंदगी कोढ़ में खाज का काम कर रही है। बातचीत में कर्मचारी संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी के मन की टीस बाहर आ गई। बोले, नई बात नहीं है। इधर, खेल कुछ ज्यादे बढ़ गया है। अनफिट को फिट नहीं बनाएंगे, तो जेब कैसे भरेगी। अब तो मामला प्रकाश में आने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही। पानी से भी बसें नहीं धुली जा रही हैं।
जांच से पहले फूलने लगी इनकी सांस
लोग जांच कराने से कतराने लगे हैं। कहीं पॉजिटिव आ गए तो प्रशासन के लोग जबरन रेलवे अस्पताल में भर्ती करा देंगे। जहां कोरोना ठीक हो या न हो, गंदगी और अव्यवस्था के चलते फेफड़े और लीवर की बीमारी जरूर पकड़ लेगी। अगर हालत गंभीर हुई, तो मेडिकल कॉलेज पहुंचा देंगे। जहां से अब वापस आना मुश्किल होता जा रहा है। परिवार वालों की फजीहत अलग से है, लेकिन रोडवेज के चालक और परिचालक हैं कि मई से ही जांच की गुहार लगा रहे हैं। बढ़ते संक्रमण के बीच डरे-सहमे बस चला रहे हैं। अधिकतर ऐसे हैं जो बिना जांच के ही सतर्कता बरतने लगे हैं। घर में परिवार से दूर होमक्वारंटाइन रहकर ड्यूटी कर रहे हैं। बातचीत में रोडवेज के एक अधिकारी की पीड़ा बाहर निकल ही गई। बोल पड़े, कोरोना तो बाद में सांस फुलाएगा। यहां हाथ में जांच के लिए आवेदन लेकर दौड़ते-दौड़ते सांस फूलने लगी है।
कारखाने में कोरोना ने फैला लिया पांव
यांत्रिक कारखाने के इंजीनियर बचाव के उपकरण बनाते रहे और कोरोना ने सेंधमारी करते हुए अपना पांव फैला ही लिया। पिछले सप्ताह माहौल की जानकारी लेने मैं भी नियमों का पालन करते हुए कारखाने पहुंच गया। गेट पर किसी ने रोका न टोका। अंदर कर्मचारी संगठन के एक पदाधिकारी मिल गए। उत्सुकतावश पूछ लिया। कोरोना संक्रमण से बचाव के इंतजाम नजर नहीं आ रहे हैं। गेट पर हाजिरी लगाने वाली मशीन व सैनिटाइजर भी नहीं दिख रहा। दूरी बताने वाली अलार्म घड़ी भी हाथ में नहीं है। बताने लगे, अरे साहब, सब हवा-हवाई है। आज तक गेट पर हाजिरी व सैनिटाइजर की ऑटोमेटिक मशीन नहीं लगी। सैकड़ों कर्मचारी होम क्वारंटाइन हैं। जांच तक नहीं हो पा रही है। कहीं भी शारीरिक दूरी का पालन नहीं हो रहा। कर्मचारी दहशत में हैं। कारखाना प्रबंधन उपकरण बनाने के नाम पर सिर्फ ढिंढोरा पीट रहा। सुरक्षा व्यवस्था कागजों में ही चल रही हैं।