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कसौटी - हाथी के दांत, खाने को और..Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से उमेश पाठक का कॉलम कसौटी..

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 02:10 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jan 2020 09:53 AM (IST)
कसौटी - हाथी के दांत, खाने को और..Gorakhpur News
कसौटी - हाथी के दांत, खाने को और..Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। प्रदेश में कई बार सत्ता का स्वाद चख चुकी एक राष्ट्रीय पार्टी अपने ही कार्यकर्ताओं के बीच एक निर्णय के अनुपालन को लेकर इन दिनों खूब चर्चा है। इस पार्टी को उस समय कुछ बदलाव की जरूरत महसूस हुई, जब एक के बाद एक, कई चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा। लगातार हार से पार्टी में जब जाति विशेष के कार्यकर्ताओं को ही लाभ देने के खिलाफ आवाज उठनेे लगी तो पार्टी सुप्रीमो को कुछ खतरे का आभास हुआ। उन्होंने जिले का सबसे बड़ा पद सर्वसमाज से आने वाले किसी भी कार्यकर्ता के लिए मुक्त कर दिया। इस घोषणा से दूसरी जातियों के  कार्यकर्ताओं की बांछें खिल गईं लेकिन आसपास के जिलों में तैनाती के दौरान जब पुरानी जाति को ही तवज्जो दी गई तो ये कार्यकर्ता यह कहते हुए सुस्त पड़ गए कि 'यह तो हाथी के दांत हैं, खाने को और, दिखाने को और'।  

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सोना कितना 'सोना' है?

सोना खरीदना शायद ही किसी को नापसंद हो। घनघोर मंदी के दौर में भी इसका बाजार गुलजार नजर आता है। पूरी तरह विश्वास पर टिके इस व्यवसाय में इन दिनों ठगी भी खूब हो रही है। कुछ दुकानदार विश्वास का गलत फायदा उठाने में लगे हैं। खराब गुणवत्ता के सोने को अधिक गुणवत्ता का बताकर ठगने का काम जोरों पर है। आमतौर पर ग्राहक के पास मानक तय करने वाली देश की एक एजेंसी का चिन्ह ही गुणवत्ता परखने का प्रमुख जरिया है। लेकिन, यह चिन्ह भी सोने की तरह ही अब खरा नहीं रह गया। कई दुकानदार कम गुणवत्ता के सोने पर अधिक गुणवत्ता का निशान लगाकर बेच रहे हैं। यह निशान लगाने के लिए कभी अधिकृत रहे एक केंद्र के तीन नमूने फेल भी हो चुके हैं। इस जालसाजी के बाद ग्राहकों को सोना खरीदते हुए यह जरूर जांच लेना चाहिए कि उनका सोना कितना 'सोना' (खरा) है?  

खुशी ऐसी की मन में न समाए

शहर के विकास की रूपरेखा तैयार करने वाले एक विभाग में इन दिनों चहुंओर खुशी का माहौल है। खुलकर कोई कुछ नहीं कह रहा लेकिन एक खास बात पूछने पर उनके अधरों पर मुस्कान बिखर जा रही है। यह बात विभाग के एक बड़े अधिकारी से जुड़ी है। अधिकारी जब तक विभाग में रहे तब तक उनकी कार्यशैली चर्चा में रही। मातहत कभी देर तक काम करने तो कभी किसी और वजह से साहब को याद करते रहते थे। नए साल पर जब कार्यालय खुला तो बहुत कुछ बदल चुका था। एक-दूसरे को बधाई देने का दौर चल रहा था। लेकिन बधाई देने वालों के शब्दों में उत्साह सामान्य दिनों की तुलना में कुछ ज्यादा ही नजर आ रहा था। नए साल के साथ 'नए समाचार' की खुशी इतनी थी कि उसे भीतर दबा कर रख पाना मुश्किल था, बातों ही बातों में खुशी व्यक्त हो ही जा रही है। 

'बीरबल की खिचड़ी' पकने का इंतजार

कुछ वर्ष पहले विकास करने वाले विभाग ने शहर के सबसे रमणीय स्थल के निकट लोगों को बसाने की योजना बनाई। समाजवादी चिंतक के नाम पर बहुमंजिला इमारतें बनाने का काम शुरू हुआ। दावा था सुंदर और गुणवत्तायुक्त आशियाना उपलब्ध कराने का। भाग्यशाली लोगों को आशियाना आवंटित हुआ। पर, दावे के मुताबिक  काम नहीं दिखा तो आवंटी अधिकारियों के कार्यालय पहुंच गए। वहां बात नहीं बनी तो प्रदेश के मुखिया के दरबार तक गए। मामला तूल पकड़ता गया और धीरे-धीरे यह योजना चर्चा में आ गई। आशियाने की चाह में बैंक के ऋण के साथ कमरे के किराए का बोझ उठा रहे ये आवंटी अब कब्जा चाहते हैं लेकिन पिछले कई महीनों से उन्हें कब्जा नहीं मिल पा रहा है। आए दिन इसकी उम्मीद जग रही है लेकिन फलीभूत नहीं हो रही। कब्जे की तुलना अब 'बीरबल की खिचड़ी' से होने लगी है, जिसके पकने का इंतजार सभी को है।


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