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बिंब-प्रतिबिंब : हम करजा लिहले हईं का? Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से डा. राकेश राय का साप्‍ताहिक कालम-बिंब-प्रतिबिंब...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Wed, 01 Jul 2020 05:21 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 05:21 PM (IST)
बिंब-प्रतिबिंब : हम करजा लिहले हईं का? Gorakhpur News
बिंब-प्रतिबिंब : हम करजा लिहले हईं का? Gorakhpur News

डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। शहर को छुट्टा पशुओं से निजात दिलाने के लिए पशुपालन विभाग को इन दिनों सभी पशुओं की टैगिंग करने का टास्क मिला हुआ है, लेकिन विभाग का यह टास्क पशुपालकों के गले नहीं उतर रहा है। नतीजतन विभागीय डॉक्टरों और कर्मचारियों को टास्क पूरा करना भारी पड़ रहा है। उन्हें किसानों के ऐसे-ऐसे सवालों का सामना कर पड़ रहा, जिसका जवाब उनके पास नहीं है। एक डॉक्टर साहब बीते सप्ताह एक पशुपालक के घर उसके पशुओं की टैङ्क्षगग के लिए पहुंचे तो विरोध के तर्क सुन परेशान हो गए। पशुपालक का पूरी दमदारी से कहना था कि अइसन कार त परसासन तब करेला जब केहू करजा लिहले रहेला, हम कउनो करजा लिहले हईं का? ना लगवाइब कउनो टैग-वैग। डॉक्टर साहब और उनके साथ गए कर्मचारियों ने उसे लाख समझाने की कोशिश की, लेकिन सफलता हाथ नहीं लग सकी। अंत में उन्हें वहां से बिना टैगिंग किए ही वापस लौटना पड़ा।

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मार्केटिंग के नशे में स्पॉट भूले नेताजी

फूल वाली पार्टी के कुछ स्थानीय नेताओं को खुद की मार्केटिंग का इतना नशा है कि कई बार वह इस नशे में पार्टी के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का भी मजाक बना देते हैं। इनमें से एक नेताजी का कुछ ऐसा ही नशा बीते दिनों पार्टी की वर्चुअल रैली में देखने को मिला। रैली में महिलाओं की हिस्सेदारी के लिए एक स्पॉट बनाया गया था। वहां पर एक बड़ी एलईडी स्क्रीन इसलिए लगाई गई थी कि महिलाएं रैली के मंच से होने वाले राष्ट्रीय स्तर के नेता का संबोधन सुन और देख सकें। रैली में संबोधन का समय आया तो नेताजी का नशा जाग उठा और बिना इसपर विचार किए कि वह स्पॉट महिलाओं के लिए है, उन्होंने सबसे आगे अपनी कुर्सी जमा ली। हद तो तब हो गई जब आगे बैठे होने के बावजूद उनका पूरा ध्यान संबोधन की बजाय इसपर लगा रहा कि मीडियाकर्मी उनकी तस्वीर ले रहे या नहीं।

सहूलियत का हथियार बनती फिजिकल डिस्टेंसिंग

लॉकडाउन से राहत मिलने के बाद शहर में आयोजनों का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है। इन आयोजनों में आयोजकों की ओर से फिजिकल डिस्टेंसिंग की दोहाई तो बहुत दी जा रही है, लेकिन वह हकीकत में कहीं नजर नहीं आ रही। अलबत्ता कुछ लोगों ने इसे अपनी सहूलियत का हथियार जरूर बना लिया है। बीते दिन एक आयोजन में इसकी बानगी देखने को मिली। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद ग्रुप फोटो की बारी आई तो आयोजक संस्था के एक महत्वपूर्ण सदस्य मौके पर नहीं थे। पता चलने पर जबतक वह भाग कर आते फोटोग्राफी शुरू हो चुकी थी। पहले तो उन्होंने खुद को कैमरे के फ्रेम में लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब बात नहीं बनी तो फिजिकल  डिस्टेंसिंग के उल्लंघन को लेकर शोर मचाने लगे। शोर सुनकर कुछ संजीदा लोग वहां से हटे, तो उन्होंने तत्काल मुस्कुराते हुए फ्रेम में खुद की जगह बना ली।

विधायक के सगे हैं, ऐंठन तो रहेगी

रेलवे बस स्टेशन के ठीक सामने मौजूद सैलानियों को घूमने-फिरने में सहूलियत दिलाने का दावा करने वाले विभाग में एक अफसर का अराजक व्यवहार इन दिनों वहां के कर्मचारियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। वह अफसर एक तो दफ्तर आते नहीं और आ भी गए तो इसे लेकर अपने बड़े अफसरों और कर्मचारियों पर एहसान जताते हैं। खुद की रसूखदारी का अपने मुंह से बखान करने वाले यह अफसर एक विधायक के नजदीकी रिश्तेदार होने की धौंस जमाते हैं। न आने को लेकर पूछताछ करने पर वह तत्काल विधायक का नाम लेकर पूछने वाले का मुंह बंद करा देते हैं। बात यहीं नहीं खत्म होती, वह बिना आए ही दफ्तर में अपना अधिकार जताने से भी बाज नहीं आते। बीते दिनों जब एक कर्मचारी ने हल्के अंदाज में उनसे इस अराजक व्यवहार की वजह जाननी चाही, तो बड़े बेतकल्लुफी से बोले, विधायक का सगा हूं, ऐंठन तो रहेगी ही। 


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