साप्ताहिक कॉलम बिंब प्रतिबिंब-अगली बार मानव भेजिएगा प्लीज Gorakhpur News
पढि़ए गोरखपुर से राकेश राय का साप्ताहिक कॉलम बिंब-प्रतिबिंब
गोरखपुर, जेएनएन। देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल के खास वर्ग के प्रदेश स्तरीय नेता को भाषण का बहुत शौक है। कई बार इस रौ में उन्हें यह अंदाजा भी नहीं मिल पाता कि उनकी बातें कार्यकर्ताओं तक पहुंच भी रही हैं या नहीं। बीते दिनों यह नेता पड़ोस के जिले में एक बैठक के लिए बतौर मुख्य अतिथि गए। अतिथि भाव से मंत्रमुग्ध नेताजी ने बैठक के दौरान एक घंटे भाषण दिया। पहले तो कार्यकर्ताओं को लगा नेताजी भाषण से उनके राजनीतिक ज्ञान को समृद्ध करेंगे, लेकिन जल्द ही पोल खुल गई। मतलब के अलावा सभी बातें थीं भाषण में। नतीजतन वह हास्य का पात्र बन गए। अगले दिन एक कार्यकर्ता ने दल के एक बड़े पदाधिकारी को फोन करके बोला, भाई साहब! अगली बार कोई मानव भेजिएगा प्लीज। बड़े नेता तो उनकी आदत से वाकिफ थे, सो बात को समझने में उन्हें देर नहीं लगी और उन्होंने यह सुनकर जोरदार ठहाका लगाया।
जयकारे की लत से परेशान नेताजी
देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक दल के कुछ स्थानीय पदाधिकारियों को भारत माता का जयकारा लगाने की कुछ ऐसी लत है कि वह न तो मौका देखते हैं और न दस्तूर। कई बार तो उनकी इस लत से आयोजनों में असहज स्थिति पैदा हो जाती है। बीते दिनों शहर में एक ऐसा ही वाक्या हुआ। लत वाले एक नेताजी एक स्कूल के आयोजन में अतिथि बन कर गए। आयोजन के समापन पर परंपरागत तौर पर राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् का गायन हो रहा था। गीत अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि नेताजी की लत ने उफान मार दिया और वह अतिथि की जिम्मेदारी भूल 'भारत माता की जयÓ का नारा लगा बैठे। एक बारगी लोग सकपका गए लेकिन जो लोग नेताजी की इस आदत से पहले से वाकिफ थे, वह पहले तो मुस्कुराए और फिर माहौल को सहज बनाने में जुट गए।
उनसे बड़ा है मेरा प्रोटोकॉल
बीते दिनों शहर के रामगढ़ ताल किनारे बन रहे चिडिय़ाघर के मौका-मुआयना को जंगली जानवरों की रक्षा की गारंटी लेने वाले विभाग के आला अफसर आए। करीब दो घंटे तक उन्होंने पूरे परिसर में घूम-घूम कर निर्माण कार्य का बिंदुवार जायजा लिया। इस दौरान चिडिय़ाघर के अफसर से लेकर कर्मचारी तक पूरी शिद्दत से उनके साथ लगे रहे। सीन तब बदल गया जब जानवरों के आला अफसर का मुआयना समाप्त होते-होते गोरखपुर प्रशासनिक मंडल के एक आला अफसर भी चिडिय़ाघर का मुआयना करने पहुंच गए। इस पर चिडिय़ाघर के अफसर और कर्मचारी उनके साथ लग लिए। यह बात जानवरों वाले अफसर को पहले तो अच्छी नहीं लगी। बात तब और बिगड़ गई जब किसी ने उन्हें मंडल के आला अफसर से मिलने की सलाह दे डाली। खफा होकर वह बोल पड़े, मैं क्यों जाऊं उनके पास। मेरा प्रोटोकॉल उनसे बड़ा है। उल्टे उन्हें ही मेरे पास आ जाना चाहिए।
...अब काहे की देरी
नक्षत्रों की दुनिया की सैर कराने वाले सेंटर के दायरे में बीते दो बरस से पूर्वांचल के बच्चों को खेल-खेल में विज्ञान सिखाने के लिए विज्ञान वाटिका बनाने की कवायद चल रही है। एक जनप्रतिनिधि का जोरदार प्रयास भी इस कवायद की महत्वपूर्ण कड़ी बना है। बीते दिनों कवायद तब पूरी होती नजर आई, जब इसके लिए धन की मंजूरी से जुड़ी शासन की एक चिट्ठी सेंटर को मिली। सेंटर की ओर से भी तत्काल वाटिका का मुकम्मल खाका शासन को भेज दिया गया। बावजूद इसके चिट्ठी मिले दो महीने से ऊपर हो गए, अबतक धन नहीं मिला। यह बात न सेंटर के लोगों के गले उतर रही और न उससे जुड़े लोगों के। सबकी जुबां पर एक ही सवाल है, धन मिलने का रास्ता साफ हो गया तो अब देर काहे की? दरअसल सबको इसका इंतजार है कि गोरखपुर जल्द देश के विज्ञान वाटिका वाले शहरों में शुमार हो।