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बतकही : शाकाहारी थानेदार ने भरा मछली का हर्जाना Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से सतीश पांडेय का साप्‍ताहिक कॉलम-बतकही...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 08 May 2020 04:00 PM (IST)Updated: Fri, 08 May 2020 04:00 PM (IST)
बतकही : शाकाहारी थानेदार ने भरा मछली का हर्जाना Gorakhpur News
बतकही : शाकाहारी थानेदार ने भरा मछली का हर्जाना Gorakhpur News

सतीश पांडेय, गोरखपुर। शहर से सटे उत्तरी क्षेत्र के एक शाकाहारी थानेदार द्वारा मछली का जुर्माना भरने का मामला आजकल सुर्खियों में है। कहानी कुछ ऐसी है, थाने के एक दारोगा मछली के शौकीन हैं। लॉकडाउन में कार्रवाई का भय दिखा विक्रेताओं से मुफ्त में मछली लेकर सिपाहियों के साथ थाने में दावत उड़ा रहे थे। जब विक्रेता नहीं मिले तो उन्होंने एक मछली पालक से थानेदार के नाम पर मछली लेनी शुरू कर दी। उधारी करीब 50 किलो हो गई तो मछली पालक को पैसे की चिंता हुई। उसने दारोगा से पैसे मांगे तो वह कन्नी काटने लगे। मछली पालक ने यह बात ग्राम प्रधान को बताई। फिर दोनों थाने पहुंच गए। प्रकरण सुन आगबबूला थानेदार ने कार्रवाई की बात कह मछली पालक से तहरीर ले ली। इतने में दारोगा भी पहुंच गए और गलती स्वीकारते हुए माफी मांगने लगे। तब खाकी की किरकिरी देख थानेदार ने हर्जाना भरकर मामला शांत कराया।

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दुष्कर्म पीडि़त पर भी नहीं की रहम

शहर से सटे एक थाना क्षेत्र में पिछले दिनों एक बच्ची यौन उत्पीडऩ का शिकार हुई। आरोपित पड़ोस में रहने वाले प्रभावशाली परिवार से थे। पीडि़त परिवार को डरा-धमका कर मामला खत्म करने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। पुलिस ने भी पहले छेडख़ानी का केस दर्ज किया। बच्ची की आपबीती सुनने के बाद पुलिस को दुष्कर्म की धारा बढ़ाकर आरोपितों को जेल भेजना पड़ा। अधिकारियों के निर्देश पर विवेचक ने डीएनए जांच के लिए नमूना तो ले लिया, लेकिन उसे लखनऊ ले जाने के लिए पीडि़ता के घरवालों से ही गाड़ी मांगने लगे। मजदूरी कर आजीविका चलाने वाले लोग दारोगा का फरमान सुन अचंभित हो गए। परिचितों से रुपये लेकर उन्होंने डीएनए का नमूना लखनऊ ले जाने का इंतजाम कर लिया, लेकिन यह बात मीडिया में पहुंच गई। इसकी भनक लगते ही थानेदार हरकत में आ गए। अपने पास से गाड़ी का इंतजाम कर दारोगा को लखनऊ भेजा।

सख्ती पर टूटा दारोगा का थाना प्रेम

दक्षिणांचल के एक थाने में लंबे समय तक तैनात रहे दारोगा के थाना प्रेम की महकमे में खूब चर्चा हो रही है। छह माह में चार बार तबादला होने के बाद भी वह थाने पर बने रहे। इसकी वजह दक्षिणी क्षेत्र के साहब और थानेदार की मेहरबानी थी। यह लोग कमाऊ पूत के रूप में विख्यात दारोगा को काबिल बताकर रोक लेते थे। दक्षिण वाले साहब और थानेदार की कृपा होने की वजह से दारोगा, जनप्रतिनिधि हो या आम जनमानस, किसी को तवज्जो नहीं देते थे। एक जनप्रतिनिधि ने दारोगा का कार्य-व्यवहार ठीक न होने की शिकायत बड़े साहब से कर दी। इसके बाद दारोगा का तबादला कैंट सॢकल के एक थाने में हो गया, लेकिन इस बार भी वह रिलीव नहीं हुए। लंबे समय तक दक्षिण के थाने पर जमे रहे। पिछले दिनों मामला तूल पकडऩे पर बड़े साहब ने सख्ती दिखाई, तब दारोगा ने अपना प्रिय थाना छोड़ा।

संकट में समझदार बनें, गंभीर नहीं

कोरोना और लॉकडाउन ने जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। भागती-दौड़ती जिंदगी आज थम सी गई है। बाजार, शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल, होटल, क्लब, पार्क सब ठहर से गए हैं। मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा, दरगाह, मस्जिद सब बंद हैं। एक बड़ी आबादी घरों में कैद है। लोग बाहरी दुनिया से बस मोबाइल और टीवी के जरिये ही रूबरू हो पा रहे हैं। कोरोना से डर और सावधानियों के बीच लोग हंसी-मजाक के लिए थोड़ा ही समय निकाल पा रहे हैं, लेकिन इस वक्त हंसी-मजाक जिंदगी की अहम जरूरत है। विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि कोरोना से बचाव के लिए समझदार बनें, गंभीर नहीं। लॉकडाउन में लगी इन पाबंदियों का एक नतीजा ऐसा भी निकला है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। सुबह अक्सर नींद अलार्म से नहीं, परिंदों के शोर से खुल रही है, जिनकी आवाज हम भूल चुके थे। नदी तो इतनी साफ कि पूछिए ही मत।


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