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अभी भी अंग्रेजों के जमाने में जी रही है UP पुलिस, अरबी-फारसी में करती है कामकाज

आजादी के 75 साल बाद भी यूपी पुलिस के कामकाज का तरीका बदला नहीं। यहां दस्तावेजों की लिखापढ़ी में अंग्रेजों के जमाने वाले अरबी-फारसी भाषा का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि इसको बदलने के लिए कोर्ट ने भी निर्देश दिया था।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandPublished: Fri, 27 Jan 2023 10:42 AM (IST)Updated: Fri, 27 Jan 2023 10:42 AM (IST)
अभी भी अंग्रेजों के जमाने में जी रही है UP पुलिस, अरबी-फारसी में करती है कामकाज
पुराने ढर्रे पर कामकाज करती है यूपी पुलिस। -जागरण

गोरखपुर, नवनीत प्रकाश त्रिपाठी: 'मैं उप निरीक्षक, अपने हमराहियान सिपाहियान के साथ एक नफर अभियुक्त को गिरफ्तार किया। ....रूबरू संतरी प्रहरी जामा तलाशी ली गई (पहरे पर मौजूद संतरी के सामने उसके कपड़ों की पूरी तलाशी ली गई)। ना बरामद होने सै सिवाय कपड़े (पहने हुए कपड़े के अलावा उसके पास से कुछ नहीं मिला)। अंदर हवालात मर्दाना दाखिल किया (पुरुष बंदीगृह में बंद किया)। हस्ब हुलिया जैल है... (मुलजिम का हुलिया इस प्रकार है)। जिस्म जरवात पाक-साफ व ताजा है (शरीर साफ-सुथरा है और कहीं भी ताजा चोट के निशान नहीं हैं)। हस्ब ख्वाहिश खुराक पूछी गई, गमे गिरफ्तारी खुराक खाने से मुनकिर है (मुलजिम से खाने के बारे में पूछा गया, गिरफ्तारी से दुखी होकर होकर खाना खाने से इंकार किया)।

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ऊपर के पैराग्राफ में न समझ में आने वाले शब्द दरअसल अरबी और फारसी के हैं और कुछ शब्द उर्दू के भी। आजादी के 75 साल बाद भी यूपी पुलिस अपने सभी दस्तावेजों की लिखापढ़ी में ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करती है। दैनिक काम-काज की भाषा में इन शब्दों का प्रयोग अंग्रेजी हुकूमत से चला आ रहा है। उस समय अंग्रेजी समझने वालों की तादात बेहद कम थी, लेकिन अरबी, फारसी और उर्दू के शब्दों का अर्थ लोग समझते थे। मुल्क के आजाद होने के साथ ही सारा तंत्र बदल गया, लेकिन पुलिस ने दैनिक कामकाज की भाषा अंग्रेजों के जमाने वाली ही कायम रखी। इसलिए दस्तावेजों की लिखापढ़ी में अभी भी अरबी और फारसी के शब्दों का प्रयोग चलन में है।

पुलिस वाले भी नहीं समझते अर्थ, हाई कोर्ट ने दिया था बदलाव का निर्देश

सामान्यत: लिखने, पढ़ने तथा बोलने में इस शब्दावली का प्रयोग नहीं होता है और न ही ये शब्द किसी के पल्ले पड़ते हैं। फिर भी यह शब्दावली मामूली बदलावों के साथ पुलिस के रोजमर्रा के कामकाज का हिस्सा बनी हुई है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि नई पीढ़ी के पुलिस वाले सरकारी दस्तावेजों की लिखापढ़ी में इन शब्दों का प्रयोग तो करते हैं लेकिन ठीक-ठीक उनका मतलब उनकी समझ में भी नहीं आता है। करीब तीन साल पहले एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने भी पुलिस की इस शब्दावली पर सवाल खड़े किए थे और कामकाज की भाषा को सहज और सरल बनाने की दिशा में बढऩे का निर्देश दिया था। लेकिन इसकी कोई सार्थक पहल आज तक नहीं हुई।

1861 में किया गया था पुलिस का गठन, तब से चलन में है यही शब्दावली

भारत में पुलिस प्रणाली का गठन अंग्रेजों ने 1861 में पुलिस अधिनियम लागू कर किया था। यह अधिनियम अंग्रेज अधिकारी एचएम कोर्ट की अगुवाई में गठित आयोग की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था। जिस समय यह व्यवस्था लागू की गई उस समय जिन राज्यों को हिंदी भाषी कहा जाता है, उन राज्यों में मुगलिया प्रभाव की वजह से हिंदी के साथ ही उर्दू, अरबी और फारसी शब्दों का भी बोलचाल में खूब प्रयोग किया जाता था। इस मिलीजुली भाषा को अंग्रेजों ने हिंदुस्तानी नाम देकर सरकारी लिखापढ़ी की भाषा के तौर पर स्वीकार किया। आजादी के बाद अन्य विभागों ने तो कामकाज की अपनी भाषा बदल ली लेकिन यूपी पुलिस अभी भी अंग्रेजों की बनाई भाषा से ही चिपकी हुई है।

बदलाव हुए लेकिन पर्याप्त नहीं

देश के आजाद होने के बाद हिंदुस्तानी बोलने और समझने वाले पुलिसकर्मीयों के सेवानिवृत्त होने के साथ ही कामकाज में इस्तेमाल होने वाले उर्दू, अरबी और फारसी के कई कठिन शब्द धीरे-धीरे चलन से बाहर जरूर हो गए, लेकिन शब्दावली में खास बदलाव नहीं आया। यहां तक की विभागीय दस्तावेजों के नाम आज भी उसी भाषा में हैं। मसलन चिक नकल, चिक दस्तअंदाजी, चिक रपट, फर्द आदि शब्द सामान्य बोलचाल में इस्तेमाल नहीं होते, लेकिन पुलिसिया कार्यशैली में इनका प्रयोग सामान्य बात है।

कचहरियों में भी होता है इसी भाषा का इस्तेमाल

सिर्फ पुलिस विभाग में ही नहीं बल्कि कचहरी के कामकाज में भी इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि बहुत पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी कचहरी से संबंधित दस्तावेजों को न तो लिख सकता है और न ही लिखे हुए का ठीक-ठीक मतलब निकाल सकता है।

भाषा में व्यापक बदलाव की जरूरत

पुलिस विभाग में लंबे समय तक सेवारत रहे और डिप्टी एसपी के पद से सेवानिवृत्त हुए शिव पूजन सिंह यादव मानते हैं कि कामकाज की भाषा में व्यापक बदलाव की जरूरत है। वह बताते हैं कि कई ऐसे शब्द अभी भी चलन में हैं जिनका प्रयोग एक पुलिसकर्मी सेवा में आने के साथ ही शुरू कर देता है लेकिन सेवानिवृत्त हो जाने के बाद भी उनका ठीक-ठीक मतलब नहीं समझ पात। पुलिस में इस्तेमाल होने वाले शब्दावली में सुधार के लिए व्यापक स्तर पर काम करने की जरूरत पर जोर देते हैं।


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